पंचेश्वर बांध’’ में अब टिहरी बाँध की तरह पुनर्वास और विस्थापन का फंस सकता है पेंच !

- परियोजना के लिए भारत की कुल 9100 हेक्टेयर भूमि का होना है अधिग्रहण
- प्रभावित होंगे उत्तराखण्ड के तीन जनपद अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ!
- तीन जनपद के 31023 परिवार होंगे सर्वाधित प्रभावित !
- भूमि के मुआवजे का 84 प्रतिशत केवल 23 गांव को ही मिलेगा
- हकीकत में पंचेश्वर बांध से कुल 134 से कई और सैकड़ों गांव हो रहे हैं प्रभावित
प्रेम पंचोली
उत्तराखण्ड के कुमांऊ क्षेत्र से लगे नेपाल सीमा पर स्थित भारत नेपाल की संयुक्त जलविद्युत परियोजना ‘‘पंचेश्वर बांध’’ को लेकर अब पुनर्वास और विस्थापन का पेंच फंस सकता है। बताया जा रहा है कि काली नदी की इस विशाल जलराशि से जो विद्युत उत्पादन होगा वह स्थानीय लोगो को ताउम्र सालता रहेगा। इसलिए की लोगो को उचित मुआवजे से हाथ धोना ही पड़ेगा और पुर्नवास एवं विस्थापन की भी उनकी समस्या टिहरी बाँध से उपजी पुर्नवास एवं विस्थापन जैसी समस्या सदैव के लिए बनी रहेगी जैसे की हालात बनते दिखाई दे रहे हैं।
ज्ञात हो कि उत्तराखंड सरकार ने सिंचाई विभाग को 5040 मेगावाट पंचेश्वर बहूउद्देश्यीय परियोजना की पुनर्वास योजना को तैयार करने की जिम्मेदारी दी है। इस ओर सिंचाई विभाग ने भी युद्धस्तर पर कार्य आरम्भ कर दिया है। यह कटुसत्य है कि सरकारी कागजो में दर्ज जमीन का ही लोगो को मुआवजा मिलेगा। पर ऐसा कौन बतायेगा कि आज भी उत्तराखण्ड के गांव के गांव की जमीन लोगो के नाम नहीं है। अब पंचेश्वर बांध की पुनर्वास व्यवस्था ऐसे जख्मो को एक बार फिर से हरा करने में लगी है। अब लोग व्यंग्यात्मक ढंग से कह रहे हैं कि वह बेचारे कर्मचारी करें भी तो क्या, उन्हे जैसा फरमान सुनाया गया है वे वैसे ही करेंगे वर्ना, उन्हे भविष्य में अपनी सरकारी नौकरी को पुनर्वास की भेंट चढानी होगी क्या? इधर सरकारी आंकड़ो के मुताबिक सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना के लिये भारत की कुल 9100 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होना है। इसमें उत्तराखण्ड के तीन जनपद अल्मोड़ा, चम्पावत व पिथौरागढ के 31023 परिवार सर्वाधित प्रभावित होंगे।
गौरतलब हो कि समाचार रिपोर्टों के अनुसार पंचेश्वर बांध परियोजना, प्रभावित परिवारों की भूमि को बाजार या सर्किल दाम का चार गुना (जो प्रस्तावित है) नहीं बल्कि 6 गुना मुआवजा देगी। क्या यह घोषणा तर्कसंगत लग रही है। मगर लोगो का मानना है कि यह जमीन को जल्दी से अधिग्रहण करने का एक प्रकार का झुनझुना है। परियोजना प्रभावित असंमजस में है कि जब उन्हे 10 रूपये के बदले 40 या 60 रूपये मिल जायेगे तो वे खुशी-खुशी अपनी जमीन को बांध बनाने के वास्ते सौंप देंगे।
अर्थात परियोजना के निर्माण में लगे जिम्मेदार कर्मचारी तो बाकायदा सभी समस्याओं को हल के रूप में बताते जा रहे है। चूंकि वास्तविकता में अगर पंचेश्वर बांध से संबधित मुआवजे के आंकड़ों को बारीकी से देखें तो इससे दो तथ्य स्पष्ट रुप से सामने आ रहे हैं। पहला, केवल एक ही गांव में निजी जमीन के कुल मुआवजे की 65 प्रतिशत राशि खर्च होनी है। दूसरा, कुल प्रभावित परिवारों में से 80 प्रतिशत अधिग्रहित होने वाली उपजाऊ और सम्पन्न भूमि के बदले बहुत ही कम मुआवजा मिलेगा।
महाकाली लोक संगठन के सदस्यों का कहना है की इस तरह की पुनर्वास की व्यवस्था से स्पष्ट हो रहा है कि यह परियोजना विस्थापित होने वाले हजारों परिवारों को गरीबी और आर्थिक संकट की ओर धकेल रही है। कुछ लोगो का मानना है कि जब लोगो की पुश्तैनी आजीविका के साधन बांध के पानी में समा जायेंगे तो ऐसे वक्त में लोगो को एक व्यवस्थित विस्थापन नीति की दरकरार है। कहते हैं कि मौजूदा समय में पंचेश्वर बांध के सभी प्रभावितो के लिए कम से कम टिहरी बांध की जैसे पुनर्वासवास नीति अपनानी चाहिए, तब तक जब तक राज्य अपनी कोई पुनर्वास एवं विस्थापन की नीति नहीं बनाती। अच्छा होता कि पंचेश्वर बांध के कारण इस आपदाग्रस्त राज्य में व्यवस्थित पुनर्वास एवं विस्थापन की नीति बननी चाहिए।
यहां अब देखने वाली बात यह है कि भूमि के मुआवजे का 84 प्रतिशत केवल 23 गांव को ही मिलेगा। जबकि पंचेश्वर बांध से हकीकत में कुल 134 से कई और सैकड़ों गांव प्रभावित हो रहे हैं। ‘वेपकास’ कम्पनी द्वारा बनायी गयी सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट के अनुसार पंचेश्वर बांध व रुपालीगाड़ बांध के लिये कुल 3735 हेक्टेयर निजी भूमि का अधिग्रहण होना है। इधर महाकाली लोक संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा पिथौरागढ़ जिले के 23 गांवों के मुआवजे की राशि का विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण में मजीरकांडा, दूत्तीबगड़, किमखोला, दूंगातोली, ज्योग्यूरा, बगड़ीहाट और भलिया गांवो को भी शामिल किया गया है। इन 23 गांवों को मात्र 5452 करोड़ रुपये मिलने की सम्पूर्ण संभावना निर्माण करने वाली कम्पनी ने जताया है। अतः यहां बताया जा रहा है कि यह धनराशी कुल प्रस्तावित मुआवजा राशि 65201 करोड़ का 84 प्रतिशत है। सवाल उठ रहे हैं कि बाकि 16 प्रतिशत लोगो को मुआवजा नहीं बल्कि उन्हे परियोजना बनने तक एक फिनोमिना दिखाया जायेगा और परियोजना पूर्ण होने के बाद उन्हें डण्डो के बल पर हटाया जायेगा, जैसा की टिहरी बांध से हटाये गये लोगो के साथ हुआ था। लोग यह भी बता रहे हैं कि यदि पंचेश्वर बांध बनने से मानवाधिकारो का हनन हुआ तो अब सिद्ध हो जायेगा कि बांध लोक एवं देशहित में नहीं बजाय सत्ता और कम्पनीयों के हित में बनाये जा रहे है।
उल्लेखनीय हो कि पंचेश्वर बांध से कुल प्रभावित होने वाले 31023 परिवारों में से केवल 7102 परिवारों को कुल मुआवजे का 84 प्रतिशत मिलेगा। बाकि अन्य परिवारो को पंचेश्वर बांध परियोजना 16 प्रतिशत के दायरे में रख रही है। इसी परियोजनान्र्तगत 23 परिवार ऐसे हैं जिन्हें सर्वाधिक मुआवजा मिलेगा और 111 परिवार ऐसे भी हैं जिन्हे अधिकतम मुआवजा मिलेगा। इस प्रकार कह सकते हैं कि 31023 प्रभावित परिवारों में से मात्र 134 परिवार ही सम्पूर्ण प्रभावितो के दायरे में आये हैं। ऐसे में मुआवजा और विस्थापन पर सवाल उठने लाजमी हैं। यानी एक चैथाई से कम परिवार इन 23 गांवों में हैं जिनको अधिकतर मुआवजा आंवटित होना है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि इस बांध परियोजना में मुआवजे और विस्थापन के आंवटन में एक गम्भीर असमानता होने वाली है। प्राथमिक कारण यह दिखता है कि अलग-अलग गांवों की स्थिति और सड़क व बाजारों से निकटता के आधार पर निजी भूमि का सर्किल दामों में इतना अधिक अन्तर क्यों है?
मिसाल के तौर पर सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट के अनुसार पिथौरागढ़ जिले के मजिरकांडा गांव की 1279.21 हेक्टेयर निजी भूमि परियोजना के लिये अधिग्रहित होनी है। यह कुल अधिग्रहित होने वाली निजी भूमि का 34 प्रतिशत है। यहां यह भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि इतनी बड़ी परियोजना में कैसे एक ही गांव की इतनी अधिक भूमि आ रही है। पुनर्वास योजना के अनुसार इस गांव में निजी भूमि के अधिग्रहण के लिये 4221.39 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे जो कि कुल मुआवजे राशि का 65 प्रतिशत है। आंकड़ो की बानगी देखें तो मुआवजे की राशी को देखकर सत्ता के गलियारो में बैठे अफसरान एक बारगी के लिए चैंक जायेंगे।
बता दें कि यहां औसतन मुआवजा 6.6 लाख प्रति नाली बताई जा रही है। यानि एक हेक्टेयर में 50 नाली जमीन होती है। जो कि सर्किल दाम का चार गुना है। कुलमिलाकर यह आंकड़े चैंकाने वाले ही हैं। मगर बांध के कारण भविष्य में लोगो को जो पीड़ा होने वाली है उसके लिए बांध परियोजना में कोई विशेष मरहम पट्टी दिखाई नहीं दे रही है। यदि इस बांध से लोगो का विधिवत पुनर्वास हो जाता है तो आने वाले समय में उत्तराखण्उ में बांध का विरोध सिर्फ पर्यावरणीय सवालो के लिए होंगे। जिसे वैज्ञानिक भी कई बार स्वीकार कर चुके हैं कि उत्तराखण्ड में प्राकृतिक संसाधनो पर बन रही बड़ी-बड़ी परियोजनाऐं अनियोजित व अवैज्ञानिक ढंग से बनाई जा रही है।