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युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए स्वामी विवेकानंद के विचार प्रासंगिक

लक्ष्यविहीन आज का भारतीय युवा भौतिक सुख के पीछे भागते हुए मानसिक तनाव और थकान झेल रहा है स्वामी विवेकानंद द्वारा सुझाया गया आध्यात्मिक संधान से शांति,समृद्धि और आनंद की प्राप्ति की जा सकती है।
कमल किशोर डुकलान
भारत सहित दुनिया के युवाओं को प्रभावित करने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद का नाम चिरस्मरणीय है। विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में उनके द्वारा 1893 में दिए गए भाषण ने जहां उन्हें भारतीय दर्शन और अध्यात्म का अग्रदूत बना दिया। तब से लेकर आज तक उनके विचार युवाओं को प्रभावित करते रहे हैं। आज के दौर में जब युवा नई-नई समस्याओं का सामना कर रहे हैं,नए लक्ष्य तय कर रहे हैं और अपने लिए एक बेहतर भविष्य की आकांक्षा रख रहे हैं ऐसे में स्वामी विवेकानंद के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।
विवेकानंद का मानना था कि भारतीय युवा का जीवन सफल होने के साथ-साथ सार्थक भी होना चाहिए, जिससे उसके मस्तिष्क,हृदय और आत्मा का संपोषण भी होता रहे। सार्थक जीवन के विषय में उनके विचारों को शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक संधान के रूप में समझा जा सकता है।
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अधिकतर युवा सफल और अर्थपूर्ण जीवन तो जीना चाहते हैं, लेकिन उनको लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वे शारीरिक रूप से तैयार होना पड़ेगा। वे कहते थे कि सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है। कभी भी यह मत सोचो कि तुम कमजोर हो। उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। वह हमेशा मानसिक रूप से सशक्त होने के साथ-साथ शारीरिक रूप से मजबूत होने की बात भी कहते थे।
स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि युवा अधिक से अधिक संख्या में सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों, जिससे न केवल समाज बेहतर बनेगा, बल्कि इससे व्यक्तिगत विकास भी होगा। उन्होंने सामाजिक सेवा के साथ आध्यात्मिकता को भी जोड़ा और मनुष्य में मौजूद ईश्वर की सेवा करने की बात कही। उनके अनुसार समाज सेवा से चित्तशुद्धि भी होती है। उन्होंने समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों की सेवा करके एक नए समाज के निर्माण की बात कही।
युवाओं से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि बाकी हर चीज की व्यवस्था हो जाएगी,लेकिन सशक्त,मेहनती,आस्थावान युवा खड़े करना बहुत जरूरी है। ऐसे 100 युवा दुनिया में एक नई क्रांति कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं में शारीरिक शक्ति और समाज सेवा का भाव होने के साथ-साथ बौद्धिक संधान पर भी बल दिया ताकि युवा दोनों प्रकार की दुनिया को भलीभांति समझ सके। उन्होंने सभी के लिए शिक्षा की बात करते हुए कहा, शिक्षा कोई जानकारियों का बंडल नहीं जो दिमाग में रख दिया जाए और जिंदगी भर परेशान करते रहे। हमें तो ऐसे विचारों को संजोना है जो समाज निर्माण,व्यक्ति निर्माण,चरित्र निर्माण करे।
उन्होंने एक राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था की बात कही जिसमें भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देश के लोगों के हाथों में हो और राष्ट्रीय चिंतन के आधार पर हो। उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण में शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आम जनता की मदद करे और वह जीवन में संकटों से निपटने में मददगार बने, चरित्र निर्माण करे,परोपकार का भाव जगाए और सिंह की भांति साहस प्रदान करे।
स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी सभ्यता की सराहना तो की,परंतु भारतीय दर्शन और अध्यात्म के प्रेम में वे वशीभूत थे। उन्होंने भारतीय युवाओं से कहा कि पश्चिमी सभ्यता में बहुत कुछ सीखने को है, परंतु भारत की आध्यात्मिक थाती का कोई सानी नहीं है। इसलिए युवाओं को अपने जीवन में आध्यात्मिकता का भाव अवश्य रखना चाहिए। कहा कि पश्चिम का विचारवान युवा, भारतीय आध्यात्म में एक नई उमंग प्राप्त कर रहा है और जिस आध्यात्मिक भूख व प्यास की तलाश में वे हैं, वो उन्हें यहां मिल रही है।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं में शारीरिक शक्ति और समाज सेवा का भाव होने के साथ-साथ बौद्धिक संधान पर भी बल दिया ताकि युवा दोनों प्रकार की दुनिया को भलीभांति समझ सके। उन्होंने सभी के लिए शिक्षा की बात करते हुए कहा, शिक्षा कोई जानकारियों का बंडल नहीं जो दिमाग में रख दिया जाए और जिंदगी भर परेशान करते रहे। हमें तो ऐसे विचारों को संजोना है जो समाज निर्माण, व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण करे।
उन्होंने एक राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था की बात कही जिसमें भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देश के लोगों के हाथों में हो और राष्ट्रीय चिंतन के आधार पर हो। उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण में शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आम जनता की मदद करे और वह जीवन में संकटों से निपटने में मददगार बने, चरित्र निर्माण करे, परोपकार का भाव जगाए और सिंह की भांति साहस प्रदान करे।
स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी सभ्यता की सराहना तो की, परंतु भारतीय दर्शन और अध्यात्म के प्रेम में वे वशीभूत थे। उन्होंने भारतीय युवाओं से कहा कि पश्चिमी सभ्यता में बहुत कुछ सीखने को है, परंतु भारत की आध्यात्मिक थाती का कोई सानी नहीं है। इसलिए युवाओं को अपने जीवन में आध्यात्मिकता का भाव अवश्य रखना चाहिए। कहा कि पश्चिम का विचारवान युवा,भारतीय आध्यात्म में एक नई उमंग प्राप्त कर रहा है और जिस आध्यात्मिक भूख व प्यास की तलाश में वे हैं, वो उन्हें यहां मिल रही है।
विवेकानंद ने युवाओं को आध्यात्मिक संधान पर जाने की बात कही, जिससे न केवल उन्हें अपना लक्ष्य पाने में आसानी होगी, बल्कि वे जीवन में महानतम लक्ष्य बना सकें। उन्होंने साफ कहा कि जीवन बहुत छोटा है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है, इसलिए अपने जीवन को एक बड़े लक्ष्य की प्राप्ति में लगा दो। एक बार जीवन की कठिनाइयों पर भाषण करते हुए उन्होंने कहा कि त्याग और सेवा के आदर्शो को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना चाहिए, जिससे ये युवाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन सकें।
स्वामी विवेकानंद ने चार क्षेत्रों में युवाओं से संधान करने के लिए कहा। इसके माध्यम से वे व्यक्ति और राष्ट्र की सामूहिक चेतना को जगाना चाहते थे। उन्होंने इस भारत के सभ्यतागत मूल्यों पर पूरी आस्था बनाए रखी और युवाओं से राष्ट्र पुनर्निर्माण की अपील की। उनके सपनों का भारत एक ऐसी भूमि और समाज था, जहां मानव मात्र का सम्मान और स्वतंत्रता होने के साथ-साथ प्रेम, सेवा और शक्ति का भाव भी हो।
स्वामी विवेकानंद एक कर्मयोगी थे। उन्होंने सिर्फ शिक्षा और उपदेश नहीं दिए, बल्कि उन्हें अपने जीवन में सबसे पहले उतारा। योगी होने के साथ-साथ उन्होंने समाज के सबसे कमजोर तबके को अपना भगवान माना और उनकी सेवा करते रहे। अपनी आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ अपनी सामाजिक चेतना को भी जाग्रत रखा और समाज का काम करते रहे।
स्वामी विवेकानंद अपने विचारों, आदर्शो और लक्ष्यों की वजह से आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। उन्होंने युवाओं को शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक संधान के माध्यम से इन्हें प्राप्त करने का तरीका बताया। आज का युवा इनमें से किसी एक भी मार्ग पर चलकर शांति, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति कर सकता है।

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