भ्रष्टाचार की पर्याय बनी सांसद निधि पर अब सर्जिकल स्ट्राइक होना है जरूरी
बुद्धिजीवियों की आम राय : शुचिता लाने के लिए भ्रष्टाचार की पर्याय बनी सांसद निधि पर सर्जिकल स्ट्राइक जरुरी
इससे मिलेगा मोदी के प्रयास को भारी बल तो वहीं सरकारी खजाने को मिलेगी एक बड़ी राहत
कई सांसदगण सांसद निधि से मिले चंदे का इस्तेमाल सियासी खर्च में हैं करते
कमल किशोर डुकलान
केंद्र सरकार ने कोविड-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए सांसद क्षेत्र विकास निधि के तहत होने वाले कार्यों को अगले दो वर्षों के लिए बंद कर दिया है,परंतु आने वाले समय में इस मामले में कोई दो टूक निर्णय लेना पड़ेगा। यानी इसे दोबारा शुरू किया जाए या हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए। कई अनेकों सांसदों,नेताओं तथा संस्थानों ने इसे हमेशा के लिए बंद करने के पक्ष में समय-समय पर अपनी राय दी है। याद रहे कि इस निधि के उपयोग में गड़बड़ियां लाख कोशिशों के बावजूद दूर नहीं हो पाती हैं। इसके कारण राजनीति, राजनेता और सरकारी अधिकारियों की साख दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। इसका दुष्परिणाम सरकार के अन्य कामों पर भी पड़ रहा है। अपवादों को छोड़कर इससे अनाप-शनाप दामों पर चीजें खरीदी जाती हैं। हालांकि इसके व्यय को लेकर सरकार के दिशा-निर्देश मौजूद होने के बाबजूद इसे कानूनी रूपरेखा प्रदान कराने की है।
अदालतें,कैग,केंद्रीय सूचना आयोग और पूर्ववर्ती योजना आदि समय-समय पर सांसद निधि के दुरुपयोग के खिलाफ टिप्पणियां कर चुके हैं।प्रशासनिक सुधार आयोग ने तो 2007 में ही इसकी समाप्ति की सिफारिश कर दी थी। इसमें कहा था कि सुशासन के लिए यह जरूरी है कि सांसद निधि को पूरी तरह बंद कर दिया जाए। हालांकि लोक लेखा समिति एवं अनेकों दलों के तमाम सांसद यह चाहते हैं कि सांसद निधि की सालाना राशि को पांच करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दिया जाए। शुक्र है कि ऐसा कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो नहीं होने दिया,किंतु इस निधि को समाप्त करने की मांग भी अभी पूरी नहीं हुई है। हां,इस बीच इसके भविष्य पर विचार-विमर्श करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति जरूर बना दी गई है। वैसे राजनीतिक हलकों में आम धारणा यह है कि अधिकांश सांसद इसे समाप्त करने के सख्त खिलाफ हैं। जो सांसद गण इस निधि को लेकर अपनी बदनामी से बचना चाहते हैं,वे विश्वविद्यालय या फिर किन्हीं प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं को एकमुश्त राशि दे देते हैं।आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवत: इस निधि को लेकर कोई कड़ा कदम उठा सकतें हैं, क्योंकि वह इसके दुरुपयोग या फिर कम उपयोग की खबरों से अनभिज्ञ नहीं हैं। साथ ही वे राजनीति और प्रशासन में शुचिता लाने के लिए दिन-रात प्रयत्नशील हैं।
सांसद निधि के इस्तेमाल को लेकर आए दिन मिल रही शिकायतों के बारे में अगर विचार करें तो इस निधि को लेकर केंद्र सरकार ने एक नोडल एजेंसी भी बनाई। इसका काम राज्य एवं जिला स्तर पर समन्वय बनाए रखना है। जांच से पता चला है कि आमतौर पर कोई समन्वय नहीं हो पाता। सांसद निधि के खर्चे की जब कैग ने जांच की तो उसे 90 प्रतिशत योजनाओं के कार्यों में अनियमितता नजर आई। तत्कालीन योजना आयोग ने तो यहां तक कह दिया था कि इस निधि के खर्चे की निगरानी का काम बहुत कमजोर है। लोक लेखा समिति कहती हैं कि सांसद निधि में जितनी निधि उपलब्ध होती है,उसकी आधी राशि ही खर्च हो पाती है।खर्चे का हिसाब एवं प्रगति रिपोर्ट भी समय पर उपलब्ध नहीं होती। इनमें पारदर्शिता का अभाव है। याद रहे कि सांसद निधि में कमीशन लेने के कारण एक राज्यसभा सदस्य की सदस्यता तक जा चुकी है। इसके अलावा विधायक निधि मंजूर करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप अनेकों राज्यों में लग चुके हैं।
अगर अपवादों को छोड़ दे तो सांसद-विधायक निधि को लेकर जो आम चर्चाएं रहती हैं,वे स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रशासन के लिए बहुत चिंता पैदा करती हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस सांसद निधि में भ्रष्टाचार की आम चर्चा होती है,उसे रोकने के लिए जनप्रतिनिधियों को सामूहिक रूप से आवाज उठानी चाहिए। विडंबना यह है कि कुछ बड़े नेता जब विपक्ष में रहते हैं तब तो वे इस निधि के खिलाफ खूब बोलते हैं, किंतु जब सत्ता में आते हैं तो शांत हो जाते हैं।
सांसद निधि की शुरुआत 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने की थी। उन्होंने इसकी सालाना राशि एक करोड़ रुपये रखी थी। यह तब हो रहा था, जब राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह विदेश दौरे पर थे। बाद में उन्होंने कहा कि ‘यदि मैं तब देश में होता तो इस सांसद क्षेत्र विकास योजना की शुरुआत ही नहीं होने देता।’ याद रहे कि सांसद निधि से मिले चंदे का इस्तेमाल अनेक सांसदगण सियासी खर्चे पर भी करते हैं। कुछ अन्य सांसद उसका उपयोग कुछ और काम में भी करते हैं। हर वित्तीय वर्ष में सांसद निधि की राशि बढ़ती ही जा रही है।
बहरहाल इस पर फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब करना होगा जब निधि स्थगन के दो साल की अवधि पूरी हो जाएगी। हालांकि एक बात तो तय है कि सांसद निधि की राशि नहीं बढ़ेगी,परंतु शासन में शुचिता लाने के लिए इसको पूरी तरह समाप्त करने का काम होगा या नहीं? तब तक यह यक्ष प्रश्न कायम रहेगा। वैसे देश के तमाम विवेकशील लोगों की राय है कि भ्रष्टाचार की पर्याय बनी सांसद निधि पर जरूर सर्जिकल स्ट्राइक होना चाहिए। इससे शासन में शुचिता लाने के लिए मोदी के प्रयास को भारी बल मिल जाएगा। साथ ही सरकारी खजाने को भी एक बड़ी राहत मिलेगी।