RTI निगरानी के औजार की तरह नहीं हो इस्तेमाल: कोर्ट
पारदर्शी और जवाबदेह बनाने हेतु भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) office को माना Public Office
नई दिल्ली, प्रेट्र : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दूरगामी परिणाम वाला अहम फैसला सुनाते हुए कहा है देश की सर्वोच्च अदालत का ‘सुप्रीम’ दफ्तर (सीजेआइ कार्यालय) आरटीआइ के दायरे में आएगा। कोर्ट ने अपने यहां की व्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआइ) के दफ्तर को आरटीआइ के तहत पब्लिक ऑफिस माना है। इसका अर्थ है कि अब आरटीआइ के तहत अर्जी दाखिल कर मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर से सूचना मांगी जा सकती है। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया है कि गोपनीयता, स्वायत्तता और पारदर्शिता का संतुलन होना जरूरी है। आरटीआइ को निगरानी के औजार की तरह नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
17 नवंबर को रिटायर होने जा रहे सीजेआइ रंजन गोगोई की अगुआई में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सीजेआइ दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने के दिल्ली हाई कोर्ट के 2010 के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। कोर्ट ने फैसले में निजता के कानून और सूचना के अधिकार कानून के बीच संतुलन की भी बात कही है।
पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की याचिका निपटाते हुए फैसला सुनाया है। यानी सुप्रीम कोर्ट की याचिका को ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। पीठ में सीजेआइ रंजन गोगोई, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना शामिल रहे।
पीठ में वर्तमान सीजेआइ रंजन गोगोई के अलावा भविष्य में वरिष्ठता के हिसाब से सीजेआइ बनने वाले तीन न्यायाधीश जस्टिस रमना, जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस खन्ना शामिल हैं। फैसले के बाद प्रतिक्रिया देते हुए आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने कहा कि यह फैसला दूरगामी प्रभाव वाला व व्यवस्था में पारदर्शिता कायम करने वाला है।