तराई में बढ़ेगा बेहड़ का कद
राजनीतिक दलों के चरित्र को लेकर छिड़ी बहस
भाजपा जिन कांग्रेसियों को भ्रष्ट बताती रही अब उन्हीं के सहारे सत्ता तक पहुंचने की जुगत में
देहरादून । ऊधमसिंह नगर में अब कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है। कांग्रेस हाईकमान अब ऊधमसिंह नगर में बागी नेताओं की सीट पर दमदार प्रत्याशियों की खोज में जुट गई है। कांग्रेस चाहती है कि ऊधमसिंह नगर में कुछ सीटों पर हैवी वेट प्रत्याशी उतारे जाएं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस हाईकमान ने प्रत्याशियों की सूची घोषित करने से पहले एक बार फिर स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक बुलाई है। तराई में कांग्रेस में मची भगदड़ को ध्यान में रखकर अब कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है। सूत्रों की मानें तो भाजपा से टिकट की उम्मीद लगाए बाजपुर के एक नेत्री ने कांग्रेस से संपर्क साधा है। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो वह कांग्रेस में शामिल हो सकती हैं।
गौरतलब है कि जिले की नौ विधानसभा सीटों में जिन तीन सीटों पर कांग्रेस के विधायक चुने गए थे, वह तीनों अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। दलित नेता की छवि बनाए यशपाल आर्य के भाजपा में जाने से कांग्रेस की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई। यानि फिलवक्त में भाजपा ने कांग्रेस का सूपफड़ा सापफ कर दिया है। अब कांग्रेस का पूरा ध्यान ऊधमसिंह नगर पर है। कांग्रेस अब यहां फूंक फूंक कर कदम रख रही है। जिले में नए सिरे से प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस जिले की कुछ सीटों पर हैवी वेट प्रत्याशी उतार सकती है। खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत ऊधमसिंह नगर जिले की किसी सीट से चुनाव लड़ कर भाजपा को चुनौती दे सकते हैं।
सूत्र बता रहे हैं कि बाजपुर में भाजपा से टिकट की उम्मीद लगाए बैठी एक भाजपा नेत्री ने बगावत के सुर अलापने शुरू कर दिए हैं। बताया जा रहा है कि वह देहरादून को रवाना हो चुकी हैं। यह माना जा रहा है कि वह कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर सकती हैं। हालांकि उन्होंने इसकी विधिवत घोषणा नहीं की है। सब ठीक ठाक रहा तो वह आज ही कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करके अपनी दावेदारी को पक्का करेंगी। ऐसे में जहां यशपाल आर्य के भाजपा में जाने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है, उसकी कापफी हद तक भरपाई हो सकती है।
वहीँ यशपाल आर्य के पाला बदलने के बाद अब पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहड़ का अब कांग्रेस में कद बढ़ेगा। राजनीतिज्ञों का मानना है कि वह तराई में कांग्रेस के मजबूत नेता बन कर उभरेंगे। बेहड़ की पहचान तराई में बड़े कद के नेता के रूप में होती है। हालांकि पिछले पांच सालों में बेहड़ को अपनी ही सरकार के बावजूद कई बार आंदोलनात्मक रुख अपनाना पड़ा। दरअसल, यशपाल आर्य ऊधमसिंह नगर में अपना एक छत्र साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। श्री आर्य और श्री बेहड़ के बीच 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं था। रुद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस में दो गुट हो गए थे। एक गुट बेहड़ समर्थक और दूसरा गुट आर्य समर्थक। कुछ नेता ऐसे भी थे जो दोनों गुटों में दिखाई देते थे, यानि तटस्थ की भूमिका में। अब आर्य के कांग्रेस छोड़ जाने से बेहड़ का कद बढना तय माना जा रहा है।
वहीँ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से बगावत करने वालों को भाजपा में शामिल करने के बाद भी भाजपा के लिए मिशन 2017 पफतह करना आसान नहीं है। भाजपा जिन कांग्रेसियों को भ्रष्ट बताती रही उन्हीं के सहारे सत्ता तक पहुंचने की जुगत में हैं। इससे आम आदमी में राजनीतिक दलों के चरित्र को लेकर बहस छिड़ गई है। सूबे में भाजपा को खून पसीने से सींचने वाले भाजपा नेतृत्व से नाराज हैं। जिन्हें मनाने की जिम्मेदारी भाजपा नेताओं की है।
भाजपा नेतृत्व नाराज नेताओं को चुनाव बाद सरकार बनने पर आयोग और निगमों में समायोजन का लालच दे सकता है। फिलहाल आम आदमी के बीच जो बहस छिड़ी है उसमें यही मुद्दा प्रमुख है कि भाजपा कैसे ईमानदारों की सरकार बनाएगी। बहस कांग्रेस में भी हो रही है, कि कांग्रेस की गंदगी भाजपा में चली गई है। लिहाजा कांग्रेस के नाम पर बट्टा लगाने वाले अब भाजपा की शाख पर बट्टा लगाएंगे।
आम आदमी में भी यही बहस हो रही है कि भाजपा ने कांग्रेस के जिन बागियों को चुनाव मैदान में उतारा है उनकी क्या गारंटी कि वे भाजपा से बगावत नहीं करेंगे। चुनाव जीतने के बाद वे पाला क्यों नहीं बदल सकते हैं? बहस इस बात पर भी हो रही है कि जिन कांग्रेसियोंको भाजपा बेइमान बताती थी वे या भाजपा में आकर ईमानदार हो गए? मुद्दा यह भी है कि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं के मुकाबले बागियों को तवज्जो देना बेहतर क्यों समझा? सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस से गंदगी साफ हुई है तो फिर से हरीश रावत को मौका क्यों न दिया जाए? इस तरह का संदेश आम आदमी के बीच जाता है तो भाजपा उत्तराखंड में सरकार बनाना जितना आसान समझ रही है उतना हकीकत में है नहीं।
इन सीटों पर सबसे ज्यादा हैं असंतोष के सुर………
पौड़ी : कोटद्वार, यमकेश्वर, चौबट्टाखाल
चमोली : कर्णप्रयाग
टिहरी : नरेंद्रनगर, प्रतापनगर, देवप्रयाग, धनोल्टी
रुद्रप्रयाग: केदारनाथ, रुद्रप्रयाग
उत्तरकाशी : गंगोत्री, यमुनोत्री, पुरोला
हरिद्वार : रुड़की, कलियर
देहरादून : डोईवाला, मसूरी
पिथौरागढ़ : धारचूला
बागेश्वर : बागेश्वर
नैनीताल : नैनीताल
अल्मोड़ा : जागेश्वर, सोमेश्वर
रानीखेत : रानीखेत
ऊधमसिंहनगर : बाजपुर