हाथियों की चुनौती से निबटने को मंथन शुरू
- हाथियों का स्वछंद विचरण बुरी तरह हुआ है प्रभावित
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। देश की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर गजराज के अंतिम पड़ाव उत्तराखंड में हाथियों का स्वछंद विचरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। न सिर्फ हाथी, बल्कि दूसरे वन्यजीव भी एक से दूसरे जंगल में जाने में बिदक रहे हैं। वजह है आवाजाही के संकुचित होते परंपरागत गलियारे (कॉरीडोर)। इन कॉरीडोर में कहीं मानव बस्तियां उग आई हैं तो कहीं रेल व सडक़ मार्गों ने राह में बाधाएं खड़ी कर दी हैं। राज्यभर में चिह्नित 11 गलियारों का सूरतेहाल कुछ ऐसा ही है। हालांकि, अब इस चुनौती से निबटने के लिए मंथन शुरू हो गया है।
उत्तराखंड में यमुना से लेकर शारदा नदी तक फैला हाथी बाहुल्य क्षेत्र देश में हाथियों के लिए उत्तर पश्चिमी सीमा का अंतिम पड़ाव है। शिवालिक एलीफेंट रिजर्व के रूप में घोषित इस क्षेत्र से एक दौर में हाथियों का विचरण बिहार तक होता था। वन्यजीव विभाग के अभिलेख इसकी तस्दीक करते हैं। अब यह सब बीते दौर की बात हो चली है। वर्तमान में हाथियों को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से राजाजी रिजर्व में आने-जाने को तमाम बाधाओं से गुजरना पड़ रहा है।
राजाजी टाइगर रिजर्व को ही देखें तो यहां चीला-मोतीचूर कॉरीडोर की राह में मानव बस्ती के साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे लाइन ने दिक्कतें खड़ी की हैं। ऐसी ही स्थिति कांसरो-बडक़ोट, मोतीचूर- गौहरी, मोतीचूर-बडक़ोट-ऋषिकेश, रवासन-सोनानदी (वाया लैंसडौन वन प्रभाग), किलपुरा-खटीमा-सुरई समेत अन्य पांच गलियारों की भी है।
सूरतेहाल, हाथियों के स्वछंद विचरण पर ग्रहण लगा है। न सिर्फ हाथी, बल्कि दूसरे वन्यजीव भी गलियारे बाधित होने के कारण एक से दूसरे जंगल में जाने से बिदक रहे हैं। हालांकि, पिछले 18 साल से परंपरागत गलियारों को खोलने की बात तो कही जा रही, मगर गंभीरता से पहल अभी तक नहीं हो पाई है। परिणामस्वरूप जहां हाथी दड़बों में सिमटे हैं, वहीं उनकी लंबी प्रवास यात्राएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। इस सबके चलते हाथी समेत दूसरे वन्यजीवों और मनुष्य के बीच संघर्ष भी बढ़ा है।
यमुना से लेकर शारदा तक के क्षेत्र में पडऩे वाले संरक्षित व आरक्षित क्षेत्र इसके उदाहरण हैं। हाल में हरिद्वार वन प्रभाग की खानपुर रेंज में हाथी की हत्या भी उस क्षेत्र में की गई, जो हाथियों की आवाजाही का परंपरागत रास्ता रहा है। इस घटना के बाद अब इन गलियारों को निर्बाध करने की ओर विभाग और सरकार का ध्यान गया है। इसके लिए रणनीति तैयार की जा रही है और इसमें उन चुनौतियों पर फोकस किया जा रहा है जो इस राह में बाधा बनती आई हैं।
ये हैं चुनौतियां ……
-राज्यभर में हाथी गलियारों के आसपास उगी हैं मानव बस्तियां।
-सडक़ व रेल मागरें पर फ्लाईओवर व आरओबी का धीमी गति से निर्माण।
-वन क्षेत्रों पर तीव्र गति से जैविक व विकासात्मक दबाव।
-हाथियों के दड़बों में सिमटने से उनके व्यवहार में तब्दीली।
वन्यजीव प्रतिपालक मोनीष मलिक ने बताया राज्य में हाथी, बाघ जैसे वन्यजीवों की संख्या में इजाफा होने के मद्देनजर विभाग की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है। इसे देखते हुए वासस्थल विकास के साथ ही वन्यजीवों के परंपरागत गलियारों को निर्बाध करने पर फोकस किया जा रहा है। इसके लिए रणनीति बनाई जा रही है। साथ ही शासन को पत्र भी भेजा जा रहा है।