- गैरपंजीकृत एसोसियेशन से विंटर गेम करवाने पर उठे सवाल !
- विंटर गेम एसोसियेशन खेल मंत्रालय से नहीं है सम्बद्ध!
- ओलिंपिक एसोसियेशन से भी नहीं है पंजीकृत !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड में खेलों का बहुत ही बुरा हाल है जो खेल राज्य में कराये जा सकते हैं उन पर राज्य सरकार के खेल मंत्रालय का ध्यान नहीं और वहीँ जिस खेल को वह यहाँ करवा रही है उसको आयोजित करने वाली संस्था ही कहीं पंजीकृत नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार का खेल विभाग खिलाडियों के भविष्य के साथ ही खेल नहीं खेल रहा तो और क्या कर रहा है इतना ही नहीं खेलों के आयोजन के बाद जो प्रमाणपत्र खेलों की प्रतिस्पर्धाओं में भाग ले चुके खिलाडियों को दिए जायेंगे वे कितने विश्वसनीय होंगे यह विचरणीय है ।
बता दें कि राज्य का खेल मंत्रालय इन 17 सालों में कोई भी राष्ट्रीय खेल सूबे की धरती पर आयोजित नहीं करा सका है वहीँ सरकार विंटर गेम एक ऐसी संस्था से करवाने जा रही है जो ना तो देश के ओलिंपिक एसोसियेशन से ही मान्यता प्राप्त है और न ही भारत सरकार के खेल मंत्रालय से।अब सबसे बड़ा सवाल यह खडा होता है कि आखिर उत्तराखंड सरकार क्यों, कैसे और किसके दबाव में बिना मान्यता प्राप्त विंटर गेम एसोसियेशन पर मेहरबान है। जो अभी तक कथित तौर पर गैर पंजीकृत एसोसियेशन से विंटर खेल करवाने के एवज में करोड़ों रूपये दे रही है।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड के अस्तित्व में आये हुए 17 साल हो चुके हैं लेकिन राज्य में आज तक किसी भी तरह के राष्ट्रीय खेलों का आयोजन अभी तक नहीं हो पाया है इस बार राज्य को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी का मौक़ा मिला था लेकिन गोवा के दबाव में यह भी राज्य के हाथों से फिसल गया।इतना ही नहीं राज्य सरकार के खेल विभाग की तरफ से भी इसके लिए कोई पहल नहीं की गयी और राज्य में पैसे की कमी का रोना रोते हुए सरकार अभी तक राज्य में नवनिर्मित हल्द्वानी और देहरादून स्टेडियम को ही पूर्ण रूप से राष्ट्रीय खेलों के अनुरूप ही बना पायी है।बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती प्रदेश में राष्ट्रीय खेलों के लिए राज्य सरकार के खेल मंत्रालय का खेल गांवों के लिए अभी तक दिया गया आश्वासन भी पूरा इसलिए नहीं हो पाया है कि सरकार ने अभी तक इसके लिए भूमि का आवंटन ही नहीं किया है।तो ऐसे में अगले राष्ट्रीय खेलों के लिए उत्तराकह्न्द राज्य को मेजबानी का मौक़ा मिलेगा इसमें भी संदेह है।वहीँ राज्य के खेल मंत्री राज्य में होने वाले खेलों के प्रति कितने गंभीर है इस बात का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है जब केंद्र व राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है और राज्य का खेल मंत्रालय पैसे की कमी का रोना रोकर दो-दो ,चार-चार मजदूरों के सहारे हल्द्वानी और देहरादून स्टेडियम का कार्य करवा रही है वहीँ दूसरी तरफ गोवा राज्य से अपने यहाँ राष्ट्रीय खेलों के लिए पहली खेप में जहाँ 200 करोड़ रुपये की केंद्र सरकार से व्यवस्था करवा दी वहीँ अब 125 करोड़ रुपये की और मांग कर दी है जिसे देने के लिए केंद्र सरकार राजी भी हो गयी है .वहीँ दूसरी तरफ उत्तराखंड के खेल मंत्री सूबे की एसोसियेशनों को एक करने का प्रयास करने की बात कह रहे है जो उनके बस की बात नहीं क्योंकि मामले न्यायालय के विचाराधीन चल रहे हैं।
वहीँ दूसरी तरफ राज्य सरकार जनवरी में aaऔली में विंटर गेम करवाने पर आमादा है लेकिन जिस संस्था से सरकार विंटर गेम करवाना चाहती है वह देश के खेल मंत्रालय से न तो पंजीकृत है और न ही ओलिंपिक एसोसियेशन से ही पंजीकृत है ऐसे में विंटर खेलों के बाद खिलाडियों को जो प्रमाण पत्र दिए जायेंगे उनपर ही सवालिया निशान लग जायेंगे कि जो संस्था पंजीकृत नहीं है वह कैसे खिलाडियों को प्रमाण पत्र दे सकती है यानी यहाँ भी खिलाडियों के भविष्य के साथ खेल किया जा रहा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य सरकार जिस विंटर गेम एसोसियेशन से aऔली में विंटर खेल करवा रही है वह न तो विंटर गेम फेडरेशन से ही मान्यता प्राप्त है और न ही देश की ओलिंपिक एसोसियेशन से और न ही भारत सरकार के खेल मंत्रालय से।वहीँ एक जानकारी के मुताबिक विंटर गेम एसोसियेशन के पंजीकरण पर दिल्ली उच्च न्यायालय का स्टे है और यही कारण है कि विंटर गेम एसोसियेशन को ओलिंपिक संघ के चुनाव से भी बाहर रखा गया था।सूत्रों के अनुसार हालाँकि 10 जनवरी को इस चर्चित एसोसियेशन का चंडीगढ़ में चुनाव होना बताया जा रहा है लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश के बाद भी यह प्रतिबंधित रहेगी और यह न्यायालय के निर्णय के बाद ही वैध संस्था के रूप में पंजीकृत हो सकती है लेकिन फिलहाल यह संस्था अवैध ही मानी जा सकती है।