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कांवड़ यात्रा का सामाजिक व धार्मिक महत्व, पढ़िए…

!!कांवड़ यात्रा का सामाजिक व धार्मिक महत्व!! 

(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

 

प्रतिवर्ष भगवान शिव का प्रिय मास श्रावण मास में चलने वाली कांवड यात्रा का संदेश प्रतीकात्मक तौर पर

इतना भर है कि जीवनदायिनी नदियों के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करना वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा जल संचय की अहमियत को उजागर करती है।….

प्रतिवर्ष श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडि़ये सुदूर क्षेत्रों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव/ शहर की ओर वापस लौटते हैं इस यात्रा को कांवड़ यात्रा कहाँ जाता है। श्रावण मास की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने आसपास शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक भर आयोजन है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार मनुष्य की आवाजीविका से भी जुड़े हैं।

कांवड यात्रा के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी भगवान शिव की आराधना के लिए हैं। पानी आम आदमी के साथ साथ प्राणी जगत में पेड पौधों,पशु – पक्षियों,धरती में निवास करने वाले हजारों लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक है। परन्तु उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है इसलिए मैदानी क्षेत्रों में नदियों की स्वच्छता के लिए भारत सरकार द्वारा समग्र स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है।

कावड़ यात्रा का अगर सामाजिक महत्व देखा जाए तो नदियों से दूर-दराज रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है। हालांकि वर्षा काल में मानसून काफी हद तक इनकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारह मासी नदियों का ही आसरा होता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेष्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश करता रहा है। लेकिन आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट बड़े रूप में उभर कर आया है।

कांवड़ यात्रा को धार्मिक संदर्भ में देखे तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से भगवान शिव को रूष्ट किया है। प्रतिवर्ष कांवड यात्रा का आयोजन होना अति सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता को भी समझना होगा। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटे भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक करने जा रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं।

धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव भी सहज ही प्रसन्न होंगे।

प्रतिवर्ष आयोजित कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व तभी है,जब हम अपनी स्वार्थपरख नियति को छोड़ेंगे एवं निस्वार्थ भाव से जल की अहमियत को समझेंगे वर्तमान समय में जिस तरह से पर्यावरण में हवा-पानी का असंतुलन हो रहा है उसको ध्यान में रखते हुए इस प्राणी जगत पर्यावरण में पानी की उपलब्धता करानी होगी।

-रुड़की, हरिद्वार (उत्तराखंड)

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