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तो क्या जनरल बिपिन रावत होंगे देश के पहले चीफ ऑफ़ डिफेन्स CDS !

ज. बिपिन रावत का इसी दिसंबर में हो रहा है कार्यकाल समाप्त

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘गुड बुक’ में शामिल होने  का मिल सकता है ईनाम !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

विश्व के देशों में पहले से ही लागू है CDS सिस्टम
भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने  भले ही अपनी तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिए CDS सिस्टम की घोषणा अभी 15 अगस्त को स्वतंत्रतादिवस पर की हो, लेकिन दुनिया के तमाम देशों में सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने और उन्हें एकरूपता देने के लिए ये व्यवस्था पहले से ही लागू है। अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम, जापान और नॉटो देशों की सेनाओं में ये पद पहले से लागू है। इसे एकीकृत रक्षा प्रणाली का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वैसे तो कई महत्वपूर्व घोषणाएं की हैं लेकिन जिस घोषणा पर सबसे ज्यादा चर्चा कल से लेकर आज तक और आगे जब तक कोई व्यक्ति उस पद के लिए घोषित नहीं हुआ तब तक चलती रहेगी वह है देश की तीनों सेनाओं का एक चीफ ऑफ डिफेंस (सीडीएस) का पद। हालांकि बदलती सैन्य जरूरतों को देखते हुए यह पद जरूरी भी है। शायद मोदी जी ने इसे देखते हए जल्दी ही यह व्यवस्था करने का निर्णय लिया और इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि इससे तीनों सेनाओं को शीर्ष स्तर और एक नेतृत्व मिलेगा जिसके नीचे तीनों सेना मिलकर अभियानों को अंजाम देंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे तीनों सेनाओं में तालमेल बढ़ेगा और वे सफलतापूर्वक रक्षा तैयारियां को और सशक्त कर सकेंगी।

ऐसा नहीं कि इस पद की अभी प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मात्र घोषणा की गयी है ,इसकी काफी लंबे समय से जरूरत भी महसूस की जा रही थी। वर्ष 1999 के दौरान और कारगिल युद्ध के बाद से देश के सुरक्षा विशेषज्ञ इसकी मांग करते रहे हैं। कारगिल के बाद तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में बने ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GOM) ने भी तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिए CDS की सिफारिश की थी। GOM ने अपनी सिफारिश में कहा था अगर कारगिल युद्ध के दौरान ऐसी कोई व्यवस्था होती और तीनों सेनाएं और बेहतर तालमेल से युद्ध के मैदान में उतरतीं तो हमारी सेना को काफी कम नुकसान होता।

हालांकि बीते दिन प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से लगभग 20 साल इस पद को लेकर बात शुरू की है। हालांकि तत्कालीन समय में अटल सरकार के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा घोषित सीडीएस व्यवस्था लागू न हो पाने के पीछे सबसे बड़ी वजह वायुसेना बताया जा रहा है। क्योंकि उस दौरान वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी ने इस पद का विरोध किया था। जबकि तत्कालीन थल सेना सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह और नेवी प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने इस व्यवस्था का समर्थन किया था। यहां तक कि ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GOM) की सिफारिश पर उस वक्त की कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीए) ने भी जरूरतों को देखते हुए इस पद के लिए मंजूरी दी थी।

प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद अब आने वाले समय तीनों सेनाओं का प्रमुख एक ही व्यक्ति होगा। लेकिन भविष्य में इस पद पर कौन आसीन होगा यह अभी भी साफ़ नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद लोगों ने अनुमान लगाना भी शुरू कर दिया है कि यह महत्वपूर्ण पद पर किसे आसीन किया आयेगा को लेकर चर्चाओं के बाज़ार में इस पद के लिए सबसे बड़े दावेदार के रूप में जनरल बिपिन रावत का नाम आ रहा है। सेना के नियम के अनुसार जनरल बिपिन रावत का कार्यकाल इसी दिसंबर में समाप्त होने जा रहा है। क्योंकि उन्हें इस पद पर 3 साल पूरे हो जाएंगे। सेना के नियनियमों से कोई भी व्यक्ति देश के सेनाध्यक्ष के पद पर तीन साल या 62 वर्ष की उम्र तक ही बना रह सकता है। बिपिन रावत का तीन साल का कार्यकाल दिसंबर में खत्म हो जाएगा।

अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि जिस तरह से भारतीय सेना ने जनरल रावत के नेतृत्व में सर्जिकल स्ट्राइक्स को अंजाम दिया गया और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ कई अभियान चलाकर कश्मीर घाटी से आतंकवाद और आतंकवादियों का सफाया किया, उसके बाद देश में बिपिन रावत की अलग ही छवि निखरकर सामने आई है। इतना ही नहीं उनकी सेनाध्यक्ष के पद पर ताजपोशी तमाम अहर्ताओं को रखने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘गुड बुक’ में शामिल होने के चलते मिली। इसी चर्चा से इस बात को भी बल मिलता है कि थल सेनाध्यक्ष के रूप में कार्यकाल समाप्त होने के बाद कहीं प्रधानमंत्री और GOM उन्हें तीनों सेनाओं का मुखिया बना सकता है।

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