NATIONAL

निर्भीक पत्रकारिता के लिए याद किए गए स्व.आलोक तोमर

  • बिना लाग लपेट के लोगों के सत्यता को सामने रखना ही पत्रकार का धर्म

नयी दिल्ली : अपने समय के निर्भीक पत्रकार स्व.आलोक तोमर याद किए गए। स्व.आलोक तोमर को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी याद में सत्यातीत पत्रकारिता भारतीय संदर्भ में जैसे विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया और इसमें आनंद प्रधान, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, राजदीप सरदेसाई, पुण्य प्रसून वाजपेयी और राम बहादुर राय ने अपने विचार रखे।

विषय पर दृढ़ता के साथ केन्द्रीय वक्ताओं ने भारतीय मीडिया में आ रहे बदलाव, समय के बदलाव और सरकार के प्रतिमान में आ रहे बदलाव तथा समाज के बदलते परिदृश्य पर अपनी राय रखी। राम बहादुर राय ने अपनी 2008 से जारी मीडिया कमीशन की मांग को जारी रखा। उन्होंने तमाम उतार-चढ़ाव, बदलाव के दौर से गुजर रही पत्रकारिता के लिए पचास के दशक, फिर सत्तर के दशक में लाए गए प्रेस आयोग का जिक्र करते हुए इसे एक बार फिर मौजूं बताया। कार्यक्रम का संचालत कर रहे रमाकांत ने अंत में गांधी जी को याद करते हुए स्वतंत्र पत्रकारिता की आवश्यकता पर बल दिया।

इस परिचर्चा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि आनंद प्रधान ने विषय की प्रस्तावना रखी। प्रधान की प्रस्तावना को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने इसे एक आधारभूत ढांचा दिया। अस्सी के दशक की पत्रकारिता से लेकर आज की पत्रकारिता के पड़ाव को उजागर करते हुए आ रहे बदलाव को रेखांकित किया। उर्मिलेश द्वारा रखी गई विचार की नींव को आगे बढ़ाते हुए राजदीप सरदेसाई ने आज की पत्रकारिता की मजबूरियों को गढ़ते हुए न्यूज रूप से लेकर अन्य प्रतिबद्धताओं की याद दिलाई। 

इसे पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बेहद रोचक ढंग से आगे बढ़ाया। सामाजिक सरोकार के प्रति केन्द्रित पत्रकारिता के पक्षधर पुण्य प्रसून ने पत्रकारिता के मौजूदा विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। जरूरत और हकीकत के फर्क को श्रोताओं के सामने रखा और पुण्य द्वारा रखे गए विषय वस्तु समेत अन्य वक्ताओं के विचार को समेटते हुए राम बहादुर राय इस पर अपने विचार रखा।

सबका सार यही रहा कि जो दिखता है उसे बिना किसी लाग लपेट के लोगों के सामने रखना ही पत्रकार का धर्म है। राम बहादुर राय ने कहा कि इस पत्रकारिता का भला तभी हो सकता है, जब पत्रकार अपना दायित्व, कर्तव्य दोनों ईमानदारी के साथ समझे। उसे निभाए। वह संसद भवन में राज्य सभा सदस्य बनकर प्रवेश करने का सपना देखना छोड़ दे। पत्रकारिता और लोकतंत्र दोनों का भला हो जाएगा।

(साभार अमर उजाला)

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »