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!!राजदण्ड सेंगोल’ प्राचीन भारत के समृद्ध गौरव का प्रतीक!!

(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

राजदंड सेंगोल भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रतीक है। जब अंग्रेजों ने भारत की आजादी का एलान किया था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रुप में सेंगोल का इस्तेमाल किया गया था।…

भारत के नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर विपक्ष का सियासी संग्राम जारी है। संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में ‘राजदंड’ सेंगोल के स्थापन को लेकर से अनेक चर्चाएं होने लगी है। आइए जानते हैं राजदंड सेंगोल से जुड़ा इतिहास कि भारत के नये संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में इसे क्यों स्थापित किया गया है।

‘राजदंड’ सेंगोल भारत की स्वतंत्रता से जुड़ा एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रतीक है। कहा जाता है कि जब अंग्रेजों ने भारत की आजादी का एलान किया था तो सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल किया गया था। अंग्रेज शासक लॉर्ड माउंटबेटन ने 1947 में सत्ता के हस्तांतरण करते हुए ‘राजदंड’ सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में उस समय के मनोनीत प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू को प्रदान किया गया था।

सेंगोल का इतिहास सदियों पुराना है,इतिहासकारों की मानें तो इसका रिश्ता चोल साम्राज्य से रहा है। चोल साम्राज्य में राजदंड सेंगोल का प्रयोग सत्ता के हस्तांतरण के लिए किया जाता था। कहा जाता है कि जब कोई चोल साम्राज्य का राजा अपना उत्तराधिकारी घोषित करता था तो सत्ता हस्तांतरण के तौर पर उस राजा को सेंगोल दिया जाता था।

राजदण्ड सेंगोल को सत्ता की पावर का केंद्र माना जाता है। कहा जाता है कि भारत के दक्षिणी राज्यों में इसको आज भी खास महत्व दिया जाता है। सेंगोल संस्कृत देववाणी संस्कृत के ‘संकु’ शब्द से लिया गया है,जिसका सामान्य शाब्दिक अर्थ शंख से है। सनातन धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मंदिरों और घरों में आरती के दौरान शंख का इस्तेमाल आज भी किया जाता है।

सत्ता हस्तांतरण के समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा तमिलनाडु के अधिनाम के माध्यम से राजदण्ड सेंगोल को स्वीकार किया। जिसके बाद इसका इस्तेमाल सत्ता हस्तांतरण के लिए किया गया।

राजदण्ड सेंगोल शिव भक्ति की एक परंपरा का चिन्ह है, इसलिए इसे एक हिंदू प्रतीक चिन्ह के रूप में विपक्षियों द्वारा देखा जा रहा है तथा भारत एक पंथ-निरपेक्ष गणराज्य की संसद के प्रतीक चिन्ह के रूप में इसकी उपयोगिता पर लगातार प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं।
बता दें कि जहां सेंगोल का अर्थ संपन्नता से है,जिसे सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक के रूप में माना जाता है। इसे नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान मदुरै के 293वें प्रधान पुजारी हरिहर देसिका स्वामीगल पीएम मोदी को यह सेंगोल राजदंड प्रदान करेंगे।

देश का कोई भी विपक्षी दल यह नहीं चाहेगा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हमारा देश अर्थ सम्पन्न राष्ट्र बिकसित हो जिस कारण देश का सम्पूर्ण विपक्ष नये संसद भवन के उद्घाटन को लेकर भारत सरकार के अधिकारों पर लगातार अपनी आपत्तियां विरोध स्वरूप सार्वजनिक करता आ रहा है जो कि जो कि एक स्वस्थ भारत के लिए के लिए सम्पूर्ण विपक्ष का विरोध एक संवैधानिक रचनात्मक भूमिका के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

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