नरेंद्र चौधरी
क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म *26 दिसंबर 1899 को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव* में हुआ था. बचपन में उनका नाम शेर सिंह रखा गया था. छोटी उम्र में में ही माता-पिता का साया उठ जाने से उन्हें और उनके बड़े भाई मुक्तासिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. यहीं उन्हें उधम सिंह नाम मिला और उनके भाई को साधु सिंह 1917 में साधु सिंह भी चल बसे. इन मुश्किलों ने उधम सिंह को दुखी तो किया, लेकिन उनकी हिम्मत और संघर्ष करने की ताकत भी बढ़ाई. 1919 में जब जालियांवाला बाग कांड हुआ तो उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला कर लिया. तब तक वे मैट्रिक की परीक्षा पास कर चुके थे.
1924 में उधम सिंह गदर पार्टी से जुड़ गए. अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों ने 1913 में इस पार्टी को भारत में क्रांति भड़काने के लिए बनाया था.
पैसा जुटाने के मकसद से उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की. भगत सिंह के कहने के बाद वे 1927 में भारत लौट आए. अपने साथ वे 25 साथी, कई रिवॉल्वर और गोला-बारूद भी लाए थे. जल्द ही अवैध हथियार और गदर पार्टी के प्रतिबंधित अखबार गदर की गूंज रखने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चला और उन्हें पांच साल जेल की सजा हुई.
जेल से छूटने के बाद भी पंजाब पुलिस उधम सिंह की कड़ी निगरानी कर रही थी. इसी दौरान वे कश्मीर गए और गायब हो गए. बाद में पता चला कि वे जर्मनी पहुंच चुके हैं. बाद में उधम सिंह लंदन जा पहुंचे. यहां उन्होंने ड्वॉयर की हत्या का बदला लेने की योजना को अंतिम रूप देना शुरू किया. उन्होंने किराए पर एक घर लिया. इधर-उधर घूमने के लिए उधम सिंह ने एक कार भी खरीदी. कुछ समय बाद उन्होंने छह गोलियों वाला एक रिवॉल्वर भी हासिल कर लिया. अब उन्हें सही मौके का इंतजार था. इसी दौरान उन्हें 13 मार्च 1940 की बैठक और उसमें ड्वायर के आने की जानकारी हुई. वे वक्त से पहले ही कैक्सटन हाल पहुंच गए और मुफीद जगह पर बैठ गए. मीटिंग के तुरन्त बाद उन्होंने अपनी पुस्तक में रखी पिस्तौल से डायर को गोली मार दी।
उधम सिंह सर्व धर्म समभाव में यकीन रखते थे. और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर मोहम्मद आज़ाद सिंह रख लिया था जो तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है. वे न सिर्फ इस नाम से चिट्ठियां लिखते थे बल्कि यह नाम उन्होंने अपनी कलाई पर भी गुदवा लिया था.
संयोग देखिए कि 31 जुलाई को ही उधम सिंह को फांसी हुई थी और 1974 में इसी तारीख को ब्रिटेन ने इस क्रांतिकारी के अवशेष भारत को सौंपे. उधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित उनके गांव लाई गईं जहां आज उनकी समाधि बनी हुई है.
इन्ही के नाम पर उत्तराखंड में एक जिले का नाम *उधमसिंह नगर* रखा गया है।
*इस महान वीर की जयन्ती पर उन्हें नमन!!*
*हार्दिक श्रद्धांजलि!!*
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