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पूरे शहर का सीवर ढो रही है सुसवा नदी
- दूधली क्षेत्र में केंसर के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही
- इन नदियों में खतरनाक रासायनिक तत्वों में वृद्धि हो रही दर्ज
- राजधानी क्षेत्र के भू जल में भी दूषित तत्वों की भरमार
देहरादून । स्पेक्स संस्था के सचिव डा. बृजमोहन शर्मा ने कहा हे कि स्पेक्स, जाॅय एवं दूधली ग्रामवासियों के संयुक्त तत्वावधान में बिन्दाल, रिस्पना एवं सुसवा नदी के पानी के 24 नमूने अलग-अलग जगहों से एकत्रित किये गये, जिनका रासायनिक परीक्षण स्पेक्स की लेब में किया गया, जिसमें बहुत घातक रसायन जैसे क्रोमियम, आयरन, लेड, मैग्नीज तथा आॅयल एण्ड ग्रीस, क्लोराइड, फाॅस्फेट, सल्फेट, नाईट्रेट तथा टोटल एवं फीकल काॅलीफाॅम मानकों से कई गुना अधिक पाये गये, जो कि मिट्टी, जनजीवन एवं जलीय पर्यावरण, कृषि एवं पालतु-जंगली जानवरों के लिए घातक हैं।
उनका कहना है कि सुसवा नदी पूरे शहर का सीवर ढो रही है लेकिन अभी तक सरकार व जिला प्रशासन की ओर से सुसवा नदी बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किये गये। पत्रकारों से बातचीत करते हुए डा. बृजमोहन शर्मा ने कहा कि अब दूधली क्षेत्र में केंसर के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि स्पेक्स गत् तीन वर्षों से लगातार रिस्पना, बिन्दाल एवं सुसवा नदी के पानी का परीक्षण कर रहा है जिसमें प्रत्येक वर्ष लगातार इन खतरनाक रसायनिक तत्वों में वृद्धि दर्ज हो रही है। उनका कहना है कि एक तरफ से रिस्पना, दूसरी तरफ से बिंदाल नदी पूरे देहरादून शहर का सीवर लेकर आगे बढ़ती है। इतना ही नहीं क्लेमेंटाउन की तरफ से आने वाले गधेरे भी शहर के शेष हिस्से का सीवर लेकर सुसवा में ही मिलते हैं।
उनका कहना है कि कहने को कारगी चैक के निकट बिंदाल नदी में और दून विश्वविद्यालय के निकट रिस्पना नदी में एक-एक सीवर शोधन प्लांट स्थापित किए गए हैं। लेकिन ये प्लांट आज तक काम करते हुए नहीं देखे गए हैं। इस तरह पूरे देहरादून शहर का सीवर, गंदगी, घरों तथा फैक्टिरियों का पानी रिस्पना, बिंदाल, क्लेमेंटाउन नालों के माध्यम से सुसवा तक पहुंचता है। इसकी वजह से यह एक पूर्ण नदी तंत्र जो बाद में सौंग से मिलकर गंगा में समाहित होता है, पूरी तरह से प्रदूषण से बदहाल होता चला जा रहा है।
उनका कहना है कि कभी सुगंधित युक्त बासमती चावल उत्पादन की पहचान रखने वाली दूधली घाटी के लिए यह नदी तंत्र बरदान हुआ करता था, लेकिन अब यह देहरादून शहर की गंदगी ढोने वाली गंदी नाली बन गई है। उनका कहना है कि दूधली घाटी की सिंचाई व्यवस्था को तो इसने सीधे तौर पर सालों से बरबाद कर दिया है, अब इस पूरी घाटी में पेयजल व्यवस्था को भी दूषित कर दिया है। इस घाटी के ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति भूमि जल से की जाती है।
उनका कहना है कि भू जल में भी दूषित तत्वों की भरमार हो गई है। जिसकी वजह से क्षेत्र में चर्म रोग, स्वांस रोग तथा जल प्रदूषण से संबंधित अनेक बीमारियों से लोगों का जीना दूभर हो गया है। तीन तरफ से जंगलों से घिरी एक हरी भरी घाटी के जीवन तंत्र में जल प्रदूषण बिष घोल रहा है। दूधली घाटी के ग्रामीणों के आग्रह पर स्पेक्स संस्था के ब्रजमोहन शर्मा ने घाटी के गांवों से पानी के सेंपल लेकर इन्हें अपनी लेबोरोटरी में परीक्षण कराया है, जिसमें चैंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। घाटी के ग्रामीण जो पानी पी रहे हैं वह किस कदर दूषित है, स्पेक्स की रिपोर्ट में आंखें खुल जाएंगी। उनका कहना है कि सुसवा में आयरन, क्रोमियम, लेड मानकों से बहुत अधिक, क्लोराइड, नाइट्रेट व सल्फेट भी बहुत अधिक पाये गये हैं। पानी में आक्सीजन की मात्रा कम है व टोटल व फीक्ल काॅलीफार्म 1600 व 1200 गुणा पाये गये। उनका कहना है कि उपरोक्त नदी के पानी के नमूनों से अनुमान लगता है कि इन इलाकों में पेट के रोग, त्वचा रोग, अल्सर, बाल झड़ना, भूख कम लगना व हड्डी के रोग, कैंसर सम्भव हैं। इस अवसर पर स्पेक्स, जाॅय संस्था के सदस्य एवं ग्रामवासी मौजूद थे।