Uttarakhand

44 होटल-रिजॉर्ट का कार्बेट के आसपास सरकारी भूमि पर है अवैध कब्जा

  • मुख्यसचिव ने दिया हाई कोर्ट में हलफ़नामा 
  • कार्बेट पार्क में कोसी नदी में कब्जा कर रिसोर्ट का किया निर्माण
  • हिमालयन युवा ग्रामीण विकास समिति ने दी थी जनहित याचिका 
  • वन अपराध दर्ज हैं रिजॉर्ट मालिकों पर 2010 से डीएफओ कार्यालय में 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट नेशनल पार्क की सीमा में स्थित रिसार्ट पर नैनीताल उच्च न्यायालय में लगायी गयी एक जनहित याचिका के बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि मौके पर जाकर पार्क सीमा अतिक्रमण का जायजा लेने के बाद पांच मार्च तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। इसके बाद प्रदेश शासन हरकत में आया और सूबे के मुख्य सचिव ने हाई कोर्ट के आदेश का संज्ञान लेते हुए तुरंत जांच करते हुए 44 होटल और रिसोर्ट जिन्होंने कॉर्बेट पार्क क्षेत्र में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है की रिपोर्ट उच्च न्यायालय में  प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट के प्रस्तुत होने के बाद अतिक्रमणकारियों में हड़कंप मचा हुआ है। इससे पूर्व में कोर्ट ने रामनगर एसडीएम से हलफनामा मांगा था। एसडीएम के हलफनामे से संतुष्ट नहीं होने पर मुख्य सचिव से शपथ पत्र दाखिल करने को कहा गया था। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को मामले में दो सप्ताह में प्रतिशपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत की गई है।

गौरतलब हो कि एक NGO  हिमालयन युवा ग्रामीण विकास समिति के अध्यक्ष मयंक मैनाली ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। जिसका संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने यह जानकारी चाही थी। NGO ने उच्च न्यायलय में दाखिल याचिका में कहा कि कार्बेट पार्क के प्रवेश द्वार रामनगर में में कोसी नदी में कब्जा कर रिसोर्ट का निर्माण किया गया है। जिससे वन्य जीवों को खतरा पैदा हो गया है और इतना ही नहीं रिजॉर्ट का सीवर बिना ट्रीटमेंट के नदी में बहाया जा रहा है। याचिकाकर्ता ने  ऐसे रिसार्ट मालिकों को चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश केएम जोसफ व न्यायमूर्ती शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि अब तक अतिक्रमणकारियों पर क्या कार्रवाई हुई है। इसके अलावा पार्क की कितनी भूमि पर रिसार्टअथवा होटल स्वामी काबिज हैं। 

हाई कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार की ओर से मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की ओर से हाई कोर्ट में दाखिल हलफनामे में दी गयी जानकारी से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार रामनगर में कार्बेट नेशनल पार्क (सीटीआर) के आसपास करीब 44 होटल-रिजॉट्र्स द्वारा सरकारी व वन भूमि पर कब्जा कर व्यावसायिक हित साधे जा रहे हैं। मुख्य सचिव की ओर से यह भी बताया गया कि कोर्ट के आदेश के अनुपालन में सात अप्रैल को जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा रामनगर के रिसॉर्ट का भौतिक निरीक्षण किया गया था। जिसमें पता चला कि 44 होटल-रिजॉट्र्स द्वारा सरकारी जमीन, वन विभाग की भूमि, वन भूमि, सरकारी बंजर जमीन, वर्ग तीन व वर्ग चार की जमीन पर कब्जा किया गया है। यह भी बताया है कि इन रिजॉर्ट मालिकों पर 2010 से डीएफओ कार्यालय में वन अपराध दर्ज हैं। 13 रिजॉर्ट सार्वजनिक संपत्ति पर कब्जा कर व्यावसायिक हित साध रहे हैं। इससे संबंधित वाद एसडीएम कोर्ट में लंबित हैं। सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए होटल-रिजॉर्ट पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है।

राज्य सरकार द्वारा हाई कोर्ट में दी गयी रिपोर्ट में जिन  होटल-रिजॉर्ट ने  कब्जा किया हुआ है उनके नाम बताये गए हैं जिसमें  रेंजेज व्यू बोहराकोट, माइरिका आनंद वन ढिकुली, क्यारी इन, तरंगी रिजॉर्ट, इनफिनिटी रिजॉर्ट, कार्बेट रिवर साइड, वाइल्ड क्रस्ट, कार्बेट वाइल्ड रीवर वन्यां, टाइगर ट्रैक रिजॉर्ट ढिकुली, कार्बेट गेटवे आमोद, कृष्णा रिट्रीट रिजॉर्ट, टाइगर कैंप, कार्बेट रामगंगा रिजॉर्ट मरचूला, होटल सोल्लुना मरचूला, होटल रीवर व्यू रिट्रीट, कार्बेट हाइडवे, कार्बेट रिवर, स्केप कार्बेट। अन्य होटल रिजॉर्ट का एसडीएम कोर्ट में वाद लंबित है।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »