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राष्ट्र के महापुरुषों का सम्मान हमारी समृद्ध विरासत

स्वतंत्रता के उपरांत पिछली सरकारों द्वारा इण्डिया गेट पर जार्ज पंचम की प्रतिमा लगाए रखना देश को गुलाम बनाए रखने वालों की विरासत को ही कायम रखा। वर्तमान मोदी सरकार द्वारा उस स्थान पर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा लगाकर देश की समृद्ध विरासत को संजोए रखने का काम किया है।

कमल किशोर डूकलान 
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दिल्ली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करने के केंद्र सरकार के निर्णय को संक्रीण नजरिए से देखना
यह न केवल विचित्र है,बल्कि हास्यास्पद भी है। जिस फैसले पर ममता बनर्जी को खुश होना चाहिए था,उस पर वे मीन-मेख ही निकाल रही है। शायद उनके इसी रवैये के कारण कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा सांसद अजरुन सिंह को नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से रोका। राष्ट्र के नायकों और अन्य महापुरुषों के सम्मान के मामले में इसी संक्रीणता के चलते कांग्रेस ने सत्ता में रहते देश के हमारे उन तमाम राष्ट्र नायकों को वांछित सम्मान प्रदान करने से इन्कार किया। यह किसी से छिपा नहीं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल से लेकर लालबहादुर शास्त्री तक की किस तरह उपेक्षा हुई?
एक ओर जहां कांग्रेस शासनकाल में नेहरू-गांधी परिवार के लोगों के नाम पर देश भर में तमाम संस्थान एवं स्मारक बनाए गए, वहीं दूसरी ओर अन्य नायकों को विस्मृत सा कर दिया गया। इतना ही नहीं,उन्हें वे सम्मान भी नहीं दिए गए,जो नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों को उनके सेवाकाल में ही दे दिए गए। ऐसा करके यही संदेश दिया गया कि देश को आजादी दिलाने और स्वतंत्रता के उपरांत उसे आगे ले जाने का काम परिवार विशेष के लोगों ने ही किया। यही कारण रहा कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर के निकट नए सर्किट हाउस का उद्घाटन करते हुए यह कहा कि आजादी के बाद कुछ परिवारों के लिए ही नए निर्माण किए गए। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने देश को इस संकुचित सोच से बाहर निकाला। यह एक तथ्य है कि पिछले सात वर्षो में इस दिशा में अनेक काम किए गए हैं और इस क्रम में भूले-बिसरे नायकों को यथोचित सम्मान प्रदान किया गया है।
इण्डिया गेट पर आजादी के बाद लम्बे समय तक जार्ज पंचम की प्रतिमा लगाए रखना इससे पीछे का भाव यह सहज रूप से समझा जा सकता है कि कहीं न कहीं ब्रिटिश राज की विरासत को बनाए रखने की इच्छा थी। भारत सरकार द्वारा उसी स्थान पर नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मूर्ति को लगाना देश की आजादी में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के पराक्रम का स्मरण करना है। इससे भी अजीब यह है कि कुछ लोगों को यह रास नहीं आ रहा कि अंग्रेजों के बनाए स्थल पर प्रज्वलित अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में विलीन करने का फैसला लिया गया।

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