वीरपुर खुर्द वीरभद्र में परमार्थ निकेतन के स्वामी मुनि चिदानंद ने गंगा नदी के किनारे आरक्षित वन क्षेत्र की करीब 35 बीघा जमीन पर किया है कब्जा!
कोर्ट ने राजस्व और वन सचिव, डीएफओ हरिद्वार सहित संबंधित विभागों को दिए आदेश
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नैनीताल : परमार्थ निकेतन के मुनि चिदानंद की ओर से किए गए अतिक्रमण को हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि गंगा नदी के किनारे 35 बीघा आरक्षित वन भूमि को तुरंत कब्जे से मुक्त कराया जाए । हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने राजस्व और वन सचिव, डीएफओ हरिद्वार सहित संबंधित विभागों को यह आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए छह जनवरी की तिथि नियत की है। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। हरिद्वार निवासी अर्चना शुक्ला ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि ऋषिकेश के निकट वीरपुर खुर्द वीरभद्र में परमार्थ निकेतन के स्वामी मुनि चिदानंद ने गंगा नदी के किनारे आरक्षित वन क्षेत्र की करीब 35 बीघा जमीन पर कब्जा किया है।
इस जमीन में आठ हेक्टेयर पर 52 कमरे, एक बड़ा हॉल और गोशाला का निर्माण किया जा चुका है। मुनि चिदानंद के रसूखदारों से संबंध होने के कारण वन विभाग व राजस्व विभाग की ओर से इसकी अनदेखी की जा रही है।
याचिका में यह भी कहा कि इस अतिक्रमण के कारण सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाया जा रहा है। पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राजस्व और वन सचिव, डीएफओ हरिद्वार सहित संबंधित विभागों को आदेश दिए हैं कि वे मुनि चिदानंद द्वारा वन भूमि पर किए गए अतिक्रमण को खाली कराएं। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को होगी।