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रामायण-महाभारत और जानलेवा कोरोना

कोरोना के इम्तहान में तो फेल हो गए जी आप!

चिलमन की ओट में छुपे बैठे हैं ‘वो’

मौत से बेपरवाह कोरोना योद्धाओं को बारम्बार सलाम

अविकल थपलियाल की फेस बुक वाल से साभार
हिंदुस्तान में कोरोना, रामायण और महाभारत की रील साथ -साथ दौड़ रही है। कोरोना न आता तो नई पीढ़ी को महाभारत और रामायण के पालन योग्य विस्तृत इतिहास का पता न चलता। खैर, यहां पर मुद्दा नई पीढ़ी के रामायण व महाभारत धारावाहिक से रूबरू होने का नहीं है।
मुद्दा तो नेतृत्व, निष्ठा व प्रेम का है। मुद्दा, परस्पर विश्वास और मरते दम तक साथ निभाने और जीने का है। साथ इस सीमा तक निभाना कि जान भी चली जाय तो कोई गम नहीं। रामायण और महाभारत में एक बात बिल्कुल साफ थी कि दोनों पक्षों में कुशल लीडरशिप की कोई कमी नही थी। राम-रावण व पांडव-कौरव खेमे के बड़े से बड़े लीडर अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय कर रहे थे। जीवन पर मंडराते आसन्न व गंभीर संकट के बावजूद दोनो खेमों के योद्धा अपने महलों व सैन्य छावनी में कैद नही रहे बल्कि अपने-अपने हथियारों के साथ रणभूमि में डटे थे। रामायण व महाभारत के वीर योद्धा अपना निश्चित अंत बूझने के बाद भी अपने सैनिकों का हौसला बुलंद कर रहे थे। मौत के आसन्न संकट के बावजूद रावण समेत अन्य महारथी मैदान में डटे रहे। और अपनी प्रजा के दिलों में हरपल आशा की किरण जगाए रहे व मनोबल बढ़ाते देखे गए।
कमोबेश यही कुछ बिंदु महाभारत के पात्रों पर भी खरे उतरते है। महाभारत में भी हर खेमे के योद्धा ने अपनों के प्रति नेतृत्व, निष्ठा व समर्पण के उच्च उदाहरण पेश किये।
इन दोनों काल के पात्रों ने अपने-अपने नेतृत्व का बखूबी साथ दिया। पता था कि हार निश्चित है और मौत भी । लेकिन रावण व कौरवों के महारथियों ने मरते दम तक साथ नहीं छोड़ा। रणभूमि में डटे रहे…मौत का आलिंगन करते रहे …और मृत्यु का वरण कर समूचे संसार को अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा भी मनवा गए। इतिहास के पन्नों में दर्जनों सत्य घटनाएं दर्ज है जब वीर नेतृत्व ने सामने नाच रही मौत की परवाह न कर अपने कर्तव्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
इधर, भारत में कोरोना संकट के मंडराते ही विभिन्न विचारधारा, वर्गों व संस्थाओं के कई प्रमुख सेनानी चिलमन की ओट में चले गए। बेशक, कोरोना ने सभी के चेहरे को मास्क पहना दिया हो लेकिन कुछ खास चेहरों पर चढ़ा दिखावे के नकाब भी हटा दिया। समूचे भारतवर्ष की जनता स्वंय देख रही है कि मौत की इस जंग में कौन कहाँ खड़ा है। और कौन छिपा बैठा है। उनका लीडर घर में लॉकडौन हो गया या फिर गली मोहल्लों में जरूरतमंद की सेवा में जुटा है। या फिर अखबार व टीवी में मुंह दिखाई कर अपना कर्तव्य निभा रहा है।
कोरोना कोप से पहले बड़ी-बड़ी बातें करने वाले कई चमकदार लीडर अब खामोश है। छोटी-छोटी बातों के बड़े-बड़े प्रेस नोट भेजने वाले कहाँ दुबक गए। देश व प्रदेशों के कई बड़े पदकधारी प्रकृति और इंसान के रिश्तों की कभी खिचड़ी व कभी पुलाव बना अपना हक अदा कर रहे हैं। lockdown के एक महीने बीतने के बाद इनकी खामोश पदचाप गली-कूचों में चर्चा का विषय बन चुका है।
हालांकि, विभिन्न दलों, सामाजिक संस्थाओं व व्यक्तिगत स्तर पर हजारों लोग सिर पर कफन बांध रणभूमि में उतरे हैं। पंचायत-वार्ड स्तर तक के कुछ नेता बहुत सक्रिय भी हैं। स्वास्थ्य, सफाई, पुलिस-प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी मौत से जमीनी जंग में उलझे हुए है। कुछ की कोरोना से मौत की खबर भी आ रही है। ऐसे योद्धाओं को बारम्बार सलाम। सामाजिक, स्वंयसेवी व निजी स्तर पर मददगार व्यक्तित्वों को भी प्रणाम। लेकिन जिनके कंधों में इस मौत से लड़ने का सबसे अधिक दारोमदार है। वो सड़क पर नहीं दिखते। सोशल मीडिया में हर रोज कुछ सन्देश देने वाले देश व प्रदेशों से जुड़े लोग गुपचुप पतली गली से निकल जा रहे हैं।
हे! कुछ वीरों, lockdown के इस लंबी अवधि में किसी झुग्गी-झोपड़ी में राशन बांटते हुए ही दिख जाते। मजदूरों के पत्तल में खिचड़ी डालने ही रणभूमि में उतरते। सामाजिक दूरी बनाते हुए कहीं सेनेटाइजर का छिड़काव करते ही फुटवा खिंचवा लेते। अपने-अपने दलों की रसोई से ही खिचड़ी बंटवा निर्धनों के दर्द को ही सहला लेते। कलफ लगे कपड़े थोड़ा खराब ही तो होते। त्राहिमाम कर रही जनता को भी लगता कि रामायण व महाभारत के वीरों की तरह उनका ये अपना भी मौत की परवाह न करते हुए दुख-दर्द दूर कर रहा है। बात-बात पर प्रेस नोट भेज और फिर बेहतर कवरेज के लिए फोन करने वालों तुम कहाँ छुप गए ? कोरोना संकट में कुछ तो महाभारत व रामायण काल के लीडर से सीख ले लेते। कोरोना काल तो गुजर ही जायेगा। स्व-अनुशासन से जनता कोरोना वॉर में विजइहोगी ही लेकिन इस मौत की जंग में बेनकाब हो चुके ‘वीरों’ आपका क्या होगा। छिपकर जो नौटंकी कर रहे हो वो बहुत भारी पड़ेगी। ये पब्लिक है जो सब जानती तो थी ही और अब बहुत कुछ पहचान भी गयी। मौत की चल रही धूल भरी आंधी ने कथित वीरों की भी पगड़ी उड़ा दी। बहरहाल, बात-बात पर खीसे निपोरने वालों हे कथित छपासी वीरों!कोरोना के इम्तहान में तो आप फेल हो ही गए हो। पास होने का यही तो एक इकलौता मौका था……दूजा मौका फिर न मिलेगा,,तुम देखते रहियो….
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( lockdown के एक महीने बीतने पर यह टिप्पणी उन ज्ञात-अज्ञात जिम्मेदार कर्णधारों को समर्पित जो कोरोना से डरे-सहमे दुबके बैठे हैं। और जो इस मौत के मंजर में भी अपनी ड्यूटी का सौ फीसदी दे रहे हैं, उन्हें सलाम ही सलाम।)

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