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रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति के प्रेम सम्बन्धों का अनमोल धागा!!

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति के प्रेम सम्बन्धों का अनमोल धागा!!
(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)

रक्षाबंधन का पर्व आज न केवल एक परिवार या धार्मिक पर्व नहीं है,बल्कि यह पर्व वैश्विक समाज को जोड़ने वाला एक अद्भुत सांस्कृतिक सूत्र बंधन बनता जा रहा है। यही है “वसुधैव कुटुंबकम्” सनातन संस्कृति की विशेषता।….

भारतीय संस्कृति में रक्षाबंधन का पर्व न सिर्फ आनंद और उल्लास का पर्व है,बल्कि यह पर्व मानवीय रिश्तों की गरिमा,स्नेह,विश्वास सद्भावना का प्रतीक भी है। रक्षाबंधन का भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का पर्व है,जिसे प्रतिवर्ष वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है “रक्षा का बंधन। सनातन संस्कृति में ‘रक्षा’ और ‘बंधन’ दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं।

‘रक्षा’ का अर्थ केवल शारीरिक सुरक्षा नहीं, बल्कि भावनात्मक,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रक्षा से भी है। वहीं ‘बंधन’ किसी को बाधित करने वाला नहीं,बल्कि प्रेम,विश्वास,सद्भावना और मर्यादा से जुड़ा आत्मिक संबंध है।

रक्षाबंधन का मूल बहुत प्राचीन है। रक्षाबंधन पर्व पर बहनें अपने भाई की कलाई पर रेशम का एक पवित्र धागा बाँधती हैं। यह मात्र एक धागा नहीं, बल्कि इसके माध्यम से बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख जीवन और समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन को जीवन भर रक्षा करने और उसके हर सुख-दुःख में साथ खड़े रहने का वचन देता है।

रक्षाबंधन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है और इसका उल्लेख हमारे पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित अट्ठारह पुराणों में श्रीमद भागवत पुराण में इंद्र और इंद्राणी की कथा का उल्लेख आता है। देवासुर संग्राम के दौरान जब देवराज इंद्र असुरों से पराजित होने लगे, तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने उनकी विजय के लिए उनके हाथ पर एक पवित्र धागा बाँधा। इस धागे के प्रभाव से इंद्र देवासुर संग्राम में विजयी हुए।

देवासुर संग्राम की कथा यह दर्शाती है कि एक पत्नी का अपने पति के लिए विश्वास और सुरक्षा का बंधन कितना शक्तिशाली हो सकता है। महाभारत काल में द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा: महाभारत काल में जब शिशुपाल का वध करते समय भगवान श्रीकृष्ण की उंगली कट गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बाँध दी थी। द्रौपदी के इस निःस्वार्थ प्रेम से अभिभूत होकर श्रीकृष्ण ने आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन दिया,जिसे उन्होंने कौरव-पाण्डवों की द्यूतक्रीडा के समय द्रोपदी के चीर हरण होते समय इसे निभाया।

रक्षाबंधन पर्व का महत्व अगर राजनीतिक सन्दर्भ में देखे तो रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूँ को रक्षासूत्र समूह में अपने राज्य की रक्षा का अधिकार दिया था। यह घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि प्रेम और कृतज्ञता का बंधन रक्त संबंध से भी बढ़कर हो सकता है। ये कथाएँ दर्शाती हैं कि रक्षाबंधन मात्र एक लोकपर्व नहीं, बल्कि प्रेम,त्याग,विश्वास,सुरक्षा और कर्तव्य जैसे सनातन मूल्यों का प्रतीक भी है। यह पर्व केवल रक्त संबंधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज में सुरक्षा, सहायता, सद्भावना और सम्मान जैसे मानवीय मूल्यों को भी स्थापित करता है।

रक्षाबंधन का पर्व यह एक ऐसा पर्व है जो कर्तव्यबोध, नारी सम्मान,सामाजिक समरसता, सामाजिक सद्भावना और पारिवारिक एकता को प्रेरित करता ही है,साथ ही धर्म, समाज और आत्मीयता के बीच एक सेतु का काम भी करता है। आज जब समाज में आत्मीय मित्रता ढ़ांचे ढाये जा रहे हैं,तब भारत सरकार का रक्षा मंत्रालय हमें यह स्मरण कराता है कि रक्षा का अर्थ केवल सुरक्षा से नहीं है,बल्कि रक्षा का अर्थ सम्मान,विश्वास और स्नेह का संवाहन भी है।

मित्रता पर आधारित भारत का एक पारंपरिक पर्व है, लेकिन इसका प्रभाव और महत्व अब न केवल भारत तक ही सीमित है, बल्कि प्रवासी भारतीयों की संख्या के कारण आज यह पर्व सांस्कृतिक निजीकरण,वैश्विक भाईचारे और उद्देश्य के प्रतीक के रूप में उभर रहा है और अब एक सांस्कृतिक जुड़ाव-सजावट का माध्यम बन रहा है। सांस्कृतिक विद्वानों, भारतीय दूतावासों और मठों के माध्यम से भी इसे आज मनाया जाने लगा है। भारत सरकार के इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस (आईसीसीआर) जैसे संस्थान,रक्षा बंधन जैसे पर्वों को विदेशी धरती पर मनाकर भारत की “सॉफ्ट पावर” को मजबूत करते हैं।

वैश्विक मानवतावाद से साम्यता होने के कारण अनेकों अंतरराष्ट्रीय संगठन और स्कूल इसे ब्रदरहुड डे या यूनिवर्सल बॉन्ड डे की तरह मनाते हैं। यूनेस्को का एक सुंदर उदाहरण जिसे भारत की सांस्कृतिक विरासत (अमूर्त सांस्कृतिक विरासत) के रूप में भी देखा जाता है। योग,आयुर्वेद,और दीपावली की तरह रक्षाबंधन भी विश्व पटल पर भारत की पहचान बनता जा रहा है।

आज की युवा पीढ़ी,जो प्रौद्योगिकी,वैश्वीकरण और आधुनिक नैतिकता के बीच बढ़ रही हो, उसके लिए रक्षा मंत्रालय एक संभावना और चुनौती है दोनों ही बन गए हैं – अकेले अपने रिश्तों से जुड़ने की,और चुनौती इन आश्रम को अपने व्यस्त जीवन में छोड़ने की। हालाँकि कई बार साथ-साथ जीवन और दूरियाँ होती हैं क्योंकि भाई-बहन एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं, लेकिन रक्षाबंधन के दिन अनेकों संचार माध्यमों से इस पर्व को दोस्ती की भावना अब भी जीवित है।

आज की पीढ़ी रक्षाबंधन को केवल भाई द्वारा रक्षा की जिम्मेदारी के रूप में ही नहीं देखा जा रहा है,बल्कि इसे बधिरता और एकता सम्मान के रूप में देखा जा रहा है। आज का युवा वर्ग अब रक्षाबंधन पर्व को सामाजिक सीमा से ऊपर के मित्र,गुरुओं और यहां तक कि सैनिकों तक भी फैलाया जा रहा है। इससे यह पर्व केवल पारिवारिक बंधन तक सीमित न होकर एक व्यापक सामाजिक भावना का प्रतीक बनता जा रहा है।

फ्रेंड्स का असली संदेश – “रक्षा, विश्वास और प्रेम” – आज भी दोस्ती ही निकलती है, लकड़ी वह पारंपरिक अनुरोध में बंधा हो या डिजिटल संदेश में। रक्षाबंधन अब केवल एक परिवार या धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि वैश्विक समाज को जोड़ने वाला एक अद्भुत सांस्कृतिक सूत्र बंधन बन गया है। यही है “वसुधैव कुटुंबकम्” सनातन संस्कृति की विशेषता।

-ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर, सुमन नगर, बहादराबाद (हरिद्वार)

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