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तो इस बार श्रेय लेने से चूक गए राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी !

ढाई साल पुरानी फेसबुक पोस्ट से श्रेय लेने की कोशिश में बलूनी

विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षितों को नौकरी के लिए मान्यता मिलने का मामला

सीएम त्रिवेंद्र भी लगातार करते रहे हैं अपनी ओर से पैरवी

निशंक ने नहीं लगने दी किसी को फैसले की भनक

मीडिया में आने के बाद ही बता चला इसका फैसला

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

ताज का हकदार कौन ? निशंक, बलूनी या त्रिवेंद्र !

उत्तराखंड के 16 हजार विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षित अध्यापकों को मान्यता

अविकल थपलियाल  की फेसबुक वाल से
उत्तराखंड के 16 हजार विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षित शिक्षकों को मान्यता का मसला श्रेय की भूल भुलैया में लटक गया। वास्तव में लम्बे समय से लटके विशिष्ट बीटीसी अध्यापकों का मसला राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने मुकाम तक पहुंचाया या फिर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक या फिर मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने। यह चर्चा अब जोर पकड़ गयी है। शुरुआती रुझान में निशंक व अनिल बलूनी के बीच सेहरा पहनने की होड़ मची है।
दरअसल, शुक्रवार की सुबह केंद्रीय मंत्री निशंक के हवाले से विशिष्ट बीटीसी शिक्षकों को मान्यता मिलने की खुशखबरी मिली। कमोबेश सभी अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से स्थान दिया। दोपहर सवा बजे के आसपास राज्यसभा अनिल बलूनी ने फेसबुक में इस बाबत पूर्व में किये गए प्रयासों की झलक पेश की। बलूनी ने फेसबुक में 14 नवंबर 2018 सांय 4 बजकर 49 मिनट पर पोस्ट की गई अपनी कोशिशों को फिर से आज शेयर किया। इस पोस्ट में राज्यसभा सदस्य बलूनी तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को 16 हजार विशिष्ट बीटीसी शिक्षकों की मान्यता सुलझाने सम्बन्धी ज्ञापन दे रहे है (देखें चित्र)। यही नही बलूनी ने मार्कर से 2018 की तारीख को चिन्हित भी किया।
आज की पोस्ट में बलूनी ने मामला सुलझने पर 16 हजार शिक्षकों को बधाई भी दी है। इसमें कोई दोराय नही कि राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी ने यह मामला अपने स्तर पर उठाया था। लेकिन तत्काल कोई निर्णय नही हो पाया था। हालांकि, जनवरी 2019 में राज्यसभा में एक्ट संशोधित हो गया था। लेकिन मई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भी यह मसला लंबे समय तक लंबित रहा। इस बीच, राज्य सरकार की कोशिशें भी जारी रही। लेकिन सही मायने में 15 मई की सुबह ही इन शिक्षकों के बहुप्रतीक्षित मामले के होने की जानकारी मिली। इस खबर के साथ केंद्रीय मंत्री निशंक का फोटो बयान छपते ही श्रेय की होड़ में तेजी देखी जाने लगी।
इधर, राज्य के शिक्षा सचिव मीनाक्षी सुंदरम ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अन्य राज्यों को भी ऐसी राहत दी गयी है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी कर दी। बधाइयों के दौर के बीच सांसद अनिल बलूनी की पोस्ट से यह सवाल भी खड़े हो गए हैं कि आखिर इस समस्या को सुलझाने वाला असली नायक कौन है ? ताज किसके सिर पर सजाया जाय। केंद्रीय मंत्री निशंक, सांसद बलूनी या फिर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ?
देहरादून। सूबे के 16 हज़ार 608 विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण को नौकरी के लिए मान्यता मिलने का समाचार आते ही सांसद अनिल बलूनी ने भी इसका श्रेय लेने की कोशिश शुरू कर दी। बलूनी ने ढाई साल पुरानी एक फेसबुक पोस्ट को शेयर किया और बताने का प्रयास किया कि वे ही इस काम में लगे थे।
अहम बात यह है कि केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस फैसले की किसी को भनक भी नहीं लगने दी। लेकिन श्रेय लेने की होड़ में राज्य सभा सांसद ने  इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसके लिए क्या और कितने प्रयास किए।

 

विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षितों को नौकरी के लिए मान्यता मिलने का मामला बहुत पुराना है। अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने इस कोर्स को नौकरी के लिए मान्य कर दिया है। विभागीय मंत्री निशंक ने इस फैसले के बाद मीडिया को इसकी जानकारी दी। समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में यह समाचार पूरे देश में वायरल हो गया। इसके बाद अचानक सांसद अनिल बलूनी भी सक्रिय हो गए। उन्होंने अपनी ढाई साल पुरानी एक फेसबुक पोस्ट शेयर की। इसमें बताया गया कि उन्होंने तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जाड़वेकर के साथ इस मुद्दे पर बात की थी।
अहम बात यह है कि केंद्रीय मंत्री का बयान आने के बाद भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले पर अभी तक कुछ नहीं कहा। उनकी या उनकी टीम की ओर से भी इस बारे में किए गए प्रयासों की पुरानी तस्वीरे या खतो-किताबत को वायरल नहीं किया गया, और न कहीं श्रेय ही लेने की कोई कोशिश ही की गई। यहां बता दें कि त्रिवेंद्र की ओर से इस बारे में केंद्रीय मंत्री से बातचीत के साथ ही पिछले तीन सालों से तमाम पत्र भी भेजे गए थे।
इस मामले में खास बात यह है कि एचआरडी मिनिस्टर दफ्तर ने इस फैसले के बारे में किसी को कानों-कान खबर नहीं होने दी। शायद यदि प्रकाश जावड़ेकर भी यदि एचआरडी मंत्री होते तो वे भी इसका शायद इस मामले का श्रेय किसी और को नहीं देते।
गौरतलब हो कि इससे पहले भी उन्हें कई मामलों में राज्य सभा सांसद को पहले ही जानकारी मिल जाती थी और वे सोशल मीडिया में उस फैसले को वायरल करके वाहवाही लूटने की कोशिश करते थे। इस बार ऐसा नहीं हो सका तो उन्होंने ढाई साल पुरानी फेसबुक पोस्ट को ही माध्यम बना लिया।

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