DEHRADUNUTTARAKHAND

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर भड़का जनाक्रोश — धन सिंह रावत के प्रतीकात्मक पुतले की शवयात्रा, भिलंगना में प्रवाहित कर जताया रोष

अनीता राजेंद्र जोशी

टिहरी गढ़वाल के घनसाली क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की दुर्दशा अब जनता के सब्र का बांध तोड़ चुकी है। दो निर्दोष महिलाओं — अनीशा रावत और रवीना कठैत — की प्रसव के बाद मौत ने लोगों के दिलों में ऐसी पीड़ा भरी है, जिसने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया है। कभी शांत रहने वाली घाटियां अब नारों से गूंज रही हैं — “धन सिंह रावत मुर्दाबाद!”, “घनसाली को न्याय दो!”

पिलखी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 25 अक्टूबर से घनसाली स्वास्थ्य जन संघर्ष मोर्चा का अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है। वहीं 27 अक्टूबर से सर्वदलीय स्वास्थ्य संघर्ष समिति ने घनसाली बाजार में मोर्चा खोल दिया है। दोनों ही संगठन एक ही मांग पर अडिग हैं — “स्वास्थ्य सुविधाएं सुदृढ़ करो, घनसाली में उप जिला चिकित्सालय खोलो।”

लेकिन गुरुवार को आंदोलन ने ऐसा प्रतीकात्मक मोड़ लिया जिसने पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। सर्वदलीय स्वास्थ्य संघर्ष समिति के बैनर तले कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत के पुतले की शवयात्रा निकाली। लकड़ी के ताबूत में रखे पुतले को फूल-मालाओं से सजाया गया, और शोकगीतों के बीच उसे पूरे बाजार से होकर ले जाया गया। भीड़ में कई लोगों की आंखें नम थीं, कई ने पुतले से लिपटकर कहा — “धन सिंह चला गया…” मानो वे किसी वास्तविक विदाई में शामिल हों।

जब शवयात्रा भिलंगना नदी के तट पर पहुंची, तो वहां प्रतीकात्मक रूप से पुतले को नदी में प्रवाहित कर दिया गया। लहरों के साथ बहता ताबूत सरकार के प्रति जनता के अविश्वास और असंतोष की गवाही दे रहा था।

इस बीच, प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी यही आक्रोश पनपने लगा है। अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया में 2 अक्टूबर से ही स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की दुर्दशा के खिलाफ आंदोलन जारी है। भुवन सिंह कठायत के नेतृत्व में शुरू हुआ यह संघर्ष अब सीमाओं को पार कर चुका है — लोग चौखुटिया से देहरादून तक पैदल यात्रा पर निकल पड़े हैं, ताकि सरकार को आमजन के दर्द का एहसास हो सके। वरिष्ठ पत्रकार हेम कांडपाल का कहना है कि “यह अब केवल एक क्षेत्र का आंदोलन नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की आवाज बन चुका है।”

लोगों का कहना है — “अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो यह आंदोलन केवल सड़कों तक नहीं रहेगा, बल्कि राजधानी तक गूंजेगा।”

टिहरी की पहाड़ियों से लेकर चौखुटिया के मैदानों तक, एक ही स्वर सुनाई दे रहा है —
👉 “स्वास्थ्य है अधिकार, न कि उपकार!”
👉 “डॉक्टर दो, दवा दो, अस्पतालों में जीवन का हक दो!”

उत्तराखंड की जनता अब उम्मीद कर रही है कि ये आवाजें सिर्फ नारों में नहीं गूंजेंगी, बल्कि नीतियों में सुनाई देंगी।

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