- जबरन बंद कराई दुकानें कई जगह पथराव और हुआ लाठीचार्ज
- जानिए SC/ST एक्ट आखिर है क्या और क्यों मचा हुआ है देश भर में बवाल
देहरादून : एससी-एटी एक्ट को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के हालिए फैसले के विरोध में दलित संगठनों के भारत बंद का सोमवार को मिला जुला असर दिखायी दिया कई जगह-जगह जमकर उग्र प्रदर्शन हुए। वहीँ देहरादून, ऋषिकेश व हरिद्वार में कई स्थानों पर जबरन दुकानें बंद कराई गई। जबकि हरिद्वार के बहादराबाद में प्रदर्शनकारियों ने कुछ दुकानों में तोड़फो़ड़ भी की। यहाँ पर पुलिस ने लाठियां भी फटकारी। वहीँ रुड़की में आरक्षण समर्थकों और पुलिस के बीच जोरदार पथराव भी हुआ।
देहरादून में दलित समाज के लोगों ने जुलूस निकालकर जबरन शहर के प्रमुख बाजार पल्टन बाजार को बंद कराया। वहीं, अनुसूचित जाति जनजाति संघर्ष समिति के आरक्षण के समर्थन में आयोजित बंद को देखते हुए ऋषिकेश में पुलिस प्रशासन ने नगर के 17 संवेदनशील क्षेत्रों में फोर्स तैनात किया गया है। आरक्षण समर्थक संगठनों के सदस्य वाल्मीकि नगर स्थित गांधी प्रार्थना मंदिर में एकत्र हुए।
अनुसूचित जाति जनजाति संघर्ष समिति के आह्वान पर भारत बंद के समर्थन में समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं ने नगर में जुलूस निकालकर व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जबरन बंद करा दिया। रेलवे रोड वाल्मीकि नगर से जुलूस शुरू हुआ। पूरे बाजार में जुलूस में शामिल प्रदर्शनकारियों ने जो भी दुकानें खुली मिली उन के शटर गिरवा दिए।कुछ व्यापारियों के साथ अभद्रता भी की गई। देहरादून रोड स्थित रामा पैलेस सिनेमा घर में कुछ प्रदर्शनकारी घुस गए। थिएटर मालिक ने पहले से ही चैनल बंद करा रखा था।
इस कारण प्रदर्शनकारी थिएटर के भीतर नहीं घुस पाए। इन्होंने गेट में ताला जड़ दिया। प्रदर्शनकारियों के जाने के बाद सिनेमा हॉल को खोल दिया गया। जिसमें शो जारी है। बाजार में घूमने के बाद प्रदर्शनकारी तहसील परिसर पहुंचे जहां उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर आरक्षण के समर्थन में प्रदर्शन किया। जुलूस में बड़ी संख्या में महिला युवा व अन्य लोग शामिल थे।
उधर आईडीपीएल और बापू ग्राम क्षेत्र में भी संघर्ष मोर्चा के सदस्य पंचायत घर में एकत्र हुए हैं। यहां से यह लोगों ने क्षेत्र में जुलूस निकाला। रुड़की में दलित समाज के लोग सड़कों पर उतर आए। रामपुर गांव में युवकों ने दिल्ली देहरादून राजमार्ग पर प्रदर्शन किया। वहीं नारसन में दिल्ली देहरादून राजमार्ग पर पुलिस चौकी के सामने हाईवे पर जाम लगाया। साथ ही मांग उठाई कि कानून में संशोधन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भगवानपुर में बीडी इंटर कॉलेज के खेल मैदान में बड़ी संख्या में रविदास सेना, भीम आर्मी समेत कई संगठनों के कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की। वहीं पुलिस प्रशासन की ओर से भी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। एसपी देहात मणिकांत मिश्रा ने बताया कि सभी जगह अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। रुड़की में प्रदर्शन हिंसक हो गया प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच पथराव और फायरिंग में कई पुलिसकर्मी और पत्रकार घायल हुए। हरिद्वार के प्रमुख कार्य स्थल ज्वालापुर बाजार को पूरी तरह बंद करा दिया। जुलूस की शक्ल में घूम रहे हैं आरक्षण समर्थकों शहर के सभी बाजारों को बंद कराने का ऐलान किया।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण खत्म किए जाने के विरोध में दलित समाज के लोगों ने बहादराबाद ब्लॉक से रैली निकाली। इसके बाद बीएचईएल तिराहा पहुंचकर बेरियर लगाकर नारेबाजी करते हुए जाम लगाने का प्रयास किया। पुलिस ने प्रदर्शनकरियों को समझाबुझाकर जाम खुलवाया। इसके बाद दलित समाज के लोग जिलाधिकारी हरिद्वार को ज्ञापन देने के लिए रोशनाबाद गए।
बहादराबाद में दलित समाज के भेल तिराहे पर हो रहे प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने किया पथराव। सड़क किनारे खड़े वाहनों को तोड़ा। स्थिति को काबू करने के लिए पुलिस ने लाठियां फटकारी। मोके पर एसएसपी हरिद्वार, सीओ सदर, सीओ कनखल, पीएसी के आलावा कई थानो की पुलिस पहुंंची। इसके बाद एसएसपी के निर्देश के बाद एलाउंस कर बाजार में दुकाने बंद कराई गई।
नैनीताल में संगठनों के भारत बंद का बाजार में भले ही बेअसर हो मगर उन्होंने तल्लीताल अंबेडकर भवन में बैठक कर फैसले के खिलाफ आरपार के संघर्ष का ऐलान किया। सभा में वक्ताओं ने एक्ट में संशोधन का विरोध करते हुए एकजुटता का आह्वान किया है।
सभा में पूर्व विधायक सरिता आर्य, शिल्पकार सभा के रमेश चंद्रा, कमल कटियार, दीपा, राजेन्द्र व्यास,समेत दर्जनों लोग थे। सभा के बाद इन संगठनों द्वारा कलेक्ट्रेट तक मौन जुलूस निकाला और डीएम के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा गया।
- जानिए SC/ST एक्ट आखिर है क्या और क्यों मचा हुआ है देश भर में बवाल
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट 1989(एससी/एसटी एक्ट) से जुड़ा एक अहम फैसला दिया था। इस फैसले में ईमानदार सरकारी अधिकारियों को इस एक्ट के जरिए झूठे केसों में फसाने से संरक्षण देने की बात कहते हुए एक्ट के प्रावधानों को नरम कर दिया गया था। कोर्ट ने अनुसार इस एक्ट के जरिए सिविल सेवकों को ब्लैकमेल करने के बढ़ते मामलो को देखते हुए तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधन को नरम किया गया था। इसके बाद देश भर में दलित संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। दलित समुदायों ने 2 अप्रैल को भारत बंद का ऐलान किया था, जिसका असर आज देश के अलग-अलग स्थानों पर देखने को भी मिल रहा है। कई जगहों से हिंसक आंदोलन की भी खबरें आ रही है।
सुभाष काशीनाथ महाजन केस से शुरू हुआ था मामला
यह मामला 2009 में महाराष्ट्र के सरकारी फार्मेसी कॉलेज में एक दलित कर्मचारी की तरफ से प्रथम श्रेणी के दो अधिकारियों के खिलाफ कानूनी धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराने का है। डीएसपी स्तर के पुलिस अधिकारी ने मामले की जांच की और चार्जशीट दायर करने के लिए अधिकारियों से लिखित निर्देश मांगा। संस्थान के प्रभारी डॉ सुभाष काशीनाथ महाजन ने लिखित में निर्देश नहीं दिए। इसके बाद दलित कर्मचारी ने सुभाष महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। सुभाष महाजन ने हाईकोर्ट में उस एफआईआर को रद्द करने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। महाजन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाजन के खिलाफ एफआईआर हटाने के निर्देश दिए थे। और एससी एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने यह दिया था फैसला
इस मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि एससी-एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। कोर्ट के अनुसार एक्ट के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत को मंजूरी दी जाए। उच्चतम न्यायलय ने कहा था कि एससी एसटी एक्ट के अंतर्गत मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के बजाए पुलिस को 7 दिनों तक जांच करनी होगी और उस जांच के आधार पर एक्शन लेगी। इसके अलावा सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी उच्च अधिकारी (अपॉइंटिंग अथॉरिटी के स्तर) की मंजूरी के बिना नहीं हो सकेगी।
दलित संगठनों का यह है पक्ष
देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे दलित संगठनों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार और बढ़ जाएगा। 1989 के अनुसूचित जाति /जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का हवाला देते हुए दलित संगठनों ने कहा कि यदि अग्रिम जमानत मिल जाएगी, तो अपराधियों के बचने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। कोर्ट के इस फैसले से जातिगत भेदभाव एक बार फिर से बढ़ जाएगा।