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संभावित मुख्यसचिव का जनता में बढ़ रहा विरोध !


 देहरादून। जनांदोलन और शहादत से राज्य लेने वाली उत्तराखंड की जनता की जागरूकता काबिले-तारीफ है। जहाँ उत्तराखंड की जनता ने वर्तमान मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिह का भाजपा सरकार बनते ही ताजपोशी का स्वागत किया था लेकिन प्रदेश की जनता गलत काम की भनक लगते ही उसका विरोध भी शुरू करती रही है। ताजा मामला नए मुख्य सचिव की ताजपोशी की चर्चाओं को लेकर है। जैसे ही सत्ता के गलियारों से लेकर उत्तराखंड की घाटियों और पहाड़ों तक यह चर्चा तेज हुई कि अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश इस पद पर ताजपोशी पाने की कोशिश में हैं या वे स्वतः ही वरिष्ठता सूची में पहले नम्बर पर है, तो उनका व्यापक जन विरोध शुरू हो गया है। सोशल मीडिया में ओमप्रकाश को चर्चित और विवादित बताकर उनकी ताजपोशी का विरोध हो रहा है।
देहरादून। जनांदोलन और शहादत से राज्य लेने वाली उत्तराखंड की जनता की जागरूकता काबिले-तारीफ है। जहाँ उत्तराखंड की जनता ने वर्तमान मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिह का भाजपा सरकार बनते ही ताजपोशी का स्वागत किया था लेकिन प्रदेश की जनता गलत काम की भनक लगते ही उसका विरोध भी शुरू करती रही है। ताजा मामला नए मुख्य सचिव की ताजपोशी की चर्चाओं को लेकर है। जैसे ही सत्ता के गलियारों से लेकर उत्तराखंड की घाटियों और पहाड़ों तक यह चर्चा तेज हुई कि अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश इस पद पर ताजपोशी पाने की कोशिश में हैं या वे स्वतः ही वरिष्ठता सूची में पहले नम्बर पर है, तो उनका व्यापक जन विरोध शुरू हो गया है। सोशल मीडिया में ओमप्रकाश को चर्चित और विवादित बताकर उनकी ताजपोशी का विरोध हो रहा है।  अपर मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग, स्वास्थ्य और खनन जैसे मामलों को लेकर चर्चा में रहे हैं। इन्हीं विभागों के कई विवादित फैसले उनके नाम बताए जा रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर देहरादून में चला अतिक्रमण विरोधी अभियान भी तमाम विवादों में रहा है, अस्थायी राजधानी के लोगों में चर्चा है कि जो अधिकारी खुद ही सरकारी जमीन पर किये गए अतिक्रमण को खाली करके नज़ीर पेश न कर सका हो उसके हवाले ही अतिक्रमण हटाने का जिम्मा स्वयं में विवादित फैसला है। इतना ही नहीं जब हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार को उन अफसरों की लिस्ट तैयार करनी थी, जिनकी तैनाती के समय में यह अतिक्रमण हुआ। इस मामले में कई आईएएस और पीपीएस अफसरों का नाम जब सामने आया तो इस आदेश को ही उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी ने ठंडे बस्ते में डाल दिया, यह विषय भी अपने आप में चर्चा का विषय बना हुआ है।
अपर मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग, स्वास्थ्य और खनन जैसे मामलों को लेकर चर्चा में रहे हैं। इन्हीं विभागों के कई विवादित फैसले उनके नाम बताए जा रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर देहरादून में चला अतिक्रमण विरोधी अभियान भी तमाम विवादों में रहा है, अस्थायी राजधानी के लोगों में चर्चा है कि जो अधिकारी खुद ही सरकारी जमीन पर किये गए अतिक्रमण को खाली करके नज़ीर पेश न कर सका हो उसके हवाले ही अतिक्रमण हटाने का जिम्मा स्वयं में विवादित फैसला है। इतना ही नहीं जब हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार को उन अफसरों की लिस्ट तैयार करनी थी, जिनकी तैनाती के समय में यह अतिक्रमण हुआ। इस मामले में कई आईएएस और पीपीएस अफसरों का नाम जब सामने आया तो इस आदेश को ही उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी ने ठंडे बस्ते में डाल दिया, यह विषय भी अपने आप में चर्चा का विषय बना हुआ है। वहीं वर्ष 2012 में हरिद्वार में ओनिडा कंपनी में हुए अग्निकांड में 11 लोगों की जलकर हुई मौत के मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर नैनीताल हाइकोर्ट ने राज्य सरकार, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश और सीबीआई समेत आईपीएस केवल खुराना और एसएचओ रवींद्र डंडियाल को नोटिस भेज कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा था यह मामला भी अभी ठन्डे बस्ते में है जबकि याचिकाकर्ता रविन्द्र सिंह अभी भी न्यायालय के चक्कर काटते -काटते थक चुका है लेकिन ऊँची पहुँच के चलते मामले को दबाये जाने की जांच अभी भी फाइलों में कहीं दफ़न है। लेकिन मामले में रविन्द्र सिंह एक बार फिर हाई कोर्ट की तरफ रुख कर चुका है, जबकि उच्चतम न्यायालय यह मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय वापस कर चुका है।
वहीं वर्ष 2012 में हरिद्वार में ओनिडा कंपनी में हुए अग्निकांड में 11 लोगों की जलकर हुई मौत के मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर नैनीताल हाइकोर्ट ने राज्य सरकार, अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश और सीबीआई समेत आईपीएस केवल खुराना और एसएचओ रवींद्र डंडियाल को नोटिस भेज कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा था यह मामला भी अभी ठन्डे बस्ते में है जबकि याचिकाकर्ता रविन्द्र सिंह अभी भी न्यायालय के चक्कर काटते -काटते थक चुका है लेकिन ऊँची पहुँच के चलते मामले को दबाये जाने की जांच अभी भी फाइलों में कहीं दफ़न है। लेकिन मामले में रविन्द्र सिंह एक बार फिर हाई कोर्ट की तरफ रुख कर चुका है, जबकि उच्चतम न्यायालय यह मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय वापस कर चुका है। Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.