एसडीएम की दबंगई और क़ानून का डंडा

- आयोग की परीक्षा पास करके, ये लठैतों जैसा बर्ताव!
- धमका कर तो लोक की सेवा हो नहीं सकती !
- अंग्रेजी में आप जैसे अफसरान की श्रेणी को कहा जाता है-ब्यूरोक्रेट
- नौकरशाह. शब्द पर गौर करियेगा.इसमें नौकर पहले शाह बाद में
इंद्रेश मैखुरी
सुनते हैं कि उत्तराखंड के यमकेश्वर ब्लाक के एक गाँव में ग्रामीणों द्वारा शराब का विरोध करना, एक एस.डी.एम. यानि उपजिलाधिकारी को इस कदर नागवार गुजरा कि वो ग्रामीणों को देख लेने और पी.ए.सी.लगा कर भी शराब की दुकान खुलवाने की चुनौती देने लगे.सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कमलेश मेहता नाम के ये अफसर खुलेआम ग्रामीणों पर चिल्लाते और उन्हें धमकाते देखे जा सकते हैं.
तो एस.डी.एम प्यारे,आपका ताव देखा, गर्मी भी देखी और शराब वालों का मुनाफा कायम रखने के लिए गुंडई की हद तक उतर जाने की उतावली भी देखी.इस उतावली और ताव को थोड़ा नियंत्रण में रखो. ये पब्लिक जिसे आप शराब वालों के लठैत की तरह धमका रहे हो, पहले यह समझ लो कि आप इस पब्लिक पर लठैती करने के लिए नहीं रखे गये हो.आप नियुक्त किये गये हो,इसकी सेवा करने के लिए. जिस आयोग की परीक्षा पास करके, आप ये लठैतों जैसा बर्ताव कर रहे हो ,उसका नाम है लोक सेवा आयोग यानि लोक की सेवा करनी है.और जाहिर सी बात है कि धमका कर तो सेवा हो नहीं सकती ! परीक्षा पास करने पर गुमान तो बड़ा हुआ होगा आपको ! पर आयोग का नाम बुद्धि में बैठा नहीं आपके ! और बात सिर्फ आयोग के नाम की नहीं है.आप जैसे अफसर जो समझने लगते हैं कि वे जनता के ऊपर राज करने के लिए हैं,उन्हें थोडा कानून भी जान लेना चाहिए.
इस देश में 1860 में एक कानून बना.नाम था-आई.पी.सी. यानि भारतीय दंड संहिता.उसकी धारा 21 में विस्तार से बताया गया है कि आप जैसे अफसर लोक के सेवक होंगे.ये कमाल है कि जो अंग्रेज,इस देश में साहब और साहबी की संस्कृति ले कर आये,उन्होंने भी आप जैसे अफसरों को लोक का सेवक ही होने को कहा.ये कानून लार्ड टी.बी.मैकाले ने बनाया था.वही मैकाले जिसने कहा था कि वो अंग्रेजी शिक्षा के जरिये भारत में भारतीयों की ऐसी नस्ल तैयार करना चाहता है,जो रक्त से तो भारतीय होगी,लेकिन पसंद,राय,नैतिकता और बौद्धिकता से अंग्रेज होगी.
एस.डी.एम. बाबू लगता है कि मैकाले की यह अंग्रेजियत तो आपके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई है.लेकिन मैकाले का ही कानून जो संभवतः ट्रेनिंग में भी आपको किसी ने बताया होगा,वह आपको याद नहीं रहा या कि अंग्रेजियत वाली साहबी बुद्धि ने आपको समझने ही नहीं दिया.अंग्रेजों के बाद आजाद भारत में भी ढेरों कानून और कंडक्ट रूल्स हैं,जो बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि आप जैसे अफसरान लोकसेवक हैं.अंग्रेजी में आप जैसे अफसरान की श्रेणी को कहा जाता है-ब्यूरोक्रेट.इसका हिंदी तर्जुमा है-नौकरशाह. शब्द पर गौर करियेगा.इसमें नौकर पहले है और शाह बाद में.यानि प्रमुख बात आपकी श्रेणी के पदों में नौकर वाली है.और नौकर किसका-जनता का.एस.डी.एम. बाबू,उसी जनता को आप दबंगों,लठैतों की तरह धमका रहे हैं,गजब है !
थोड़ा विचार करियेगा एस.डी.एम. महोदय कि जब लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठे तो यही सोच कर बैठे थे कि शराब वालों को घाटा नहीं होने देंगे.यही सोचा था कि एक दिन बनेंगे अफसर और जनता के बजाय शराब वालों से फरमाबरदारी निभायेंगे.अगर यही करना हो तो फिर डिप्टी कलेक्ट्री की जरूरत क्या है ! शराब वालों ने दुकान में खूब सारे शोहदे पाले होते हैं.ये काम तो वो भी बखूबी कर सकते हैं.उनका शराब वाले के हक़ में लठैती करना समझ में आता है.पर आप तो जनता के खजाने से तनख्वाह पाते हैं,जनाब.जी हाँ,जहाँ से तनख्वाह मिलती है आपको,जनता का खजाना ही कहा जाता है,उसे !
रही बात पी.ए.सी. के साये में दुकान खुलवाने की तो सिर्फ लठैती न करिए,थोड़ा कानून की जानकारी रखिये. संयुक्त प्रांत आबकारी अधिनियम 1910(उत्तराँचल में यथा अनुकूलित एवं उपांतरित) की धारा 59 के अनुसार- “लोक शांति के निमित्त दुकानें बंद करने की शक्ति- जिला मजिस्ट्रेट लाइसेंसधारी को लिखित नोटिस देकर यह अपेक्षा कर सकता है कि कोई भी दुकान जिसमें किसी मादक वस्तु का विक्रय किया जाता हो ऐसे समयों पर या ऐसी अवधि के लिए बन्द रखी जाये जिसे वह लोक शांति बनाये रखने के लिए आवश्यक समझे. यदि किसी ऐसी दुकान के समीप्य में कोई दंगा होने की या व्यक्तियों का अवैध जमाव होने की आशंका हो या वह हो जाये तो किसी भी श्रेणी का मजिस्ट्रेट या कांस्टेबिल से उच्च पंक्ति का कोई पुलिस अधिकारी जो उपस्थित हो, ऐसी दुकान को उस अवधि के लिए बन्द रखने की अपेक्षा कर सकता है जिसे वह आवश्यक समझे. ” इसका मतलब समझ रहे हैं,एस.डी.एम. महोदय ? कानून कह रहा है कि शराब की दुकान के बाहर दंगा या अवैध जमाव हो तो दुकान बंद करनी होगी .आप कह रहे हैं कि पी.ए.सी.बुला कर दुकान खुलवा देंगे.जैसे ही पी.ए.सी. आएगी तो यह सिद्ध हो जायेगा कि उस शराब की दुकान के बाहर दंगा होने की आशंका है.ऐसे में जनाब एस.डी.एम.साहब कानून के अनुसार आपको दुकान खोलने नहीं बंद करने का आदेश देना होगा.
एक बात यह कि बहुतेरे लोगों की तरह एस.डी.एम.महोदय को भी गलतफहमी होगी कि राज्य में शराब न होगी तो राज्य नहीं चलेगा,कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं निकलेगी ब्ला,ब्ला,ब्ला ….तो जनाब इससे बड़ा झूठ कोई नहीं है.तथ्य देखिये.2016-17 में राज्य का कुल बजट 40 हजार करोड़ रूपया था,इसमें वेतन,भत्ते,पेंशन आदि पर खर्च कितना था? 11हजार करोड़ रूपया वेतन, भत्ते, पेंशन आदि पर खर्च था और शराब से हुई आय कितनी थी? शराब से हुई आय मात्र 19 सौ करोड़ रूपया थी. 2017-18 का बजट 45 हजार करोड़ रूपया का है.शराब से वाली अनुमानित आय कितनी है- 23 सौ करोड़.वेतन,भत्तों आदि पर खर्च की धनराशि है-18 हजार करोड़ रूपया.इन आंकड़ों से साफ़ है कि न तो राज्य शराब से चलता है,न कर्मचारियों की तन्खवाह शराब से होने वाली आय से पूरी हो सकती है.
हाँ,अंडर द टेबल अर्थव्यवस्था यानि ऊपरी आय वाली व्यवस्था जरुर शराब के कारोबार से चलने की बात मुमकिन हो सकती है ! अगर यमकेश्वर वाले जनाब उस अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से बौखलाए हुए तो उनकी बौखलाहट पर तरस ही खाया जा सकता है.
अंत में पुनः यही कहना है कि इस व्यवस्था का नाम लोकतंत्र है.यानि लोक पहले है तंत्र बाद में है.लेकिन यदि तंत्र को लोक के साथ इस तरह की दबंगई और लठैती करने की छूट हो जाए तो काहे का लोकतंत्र ?
https://youtu.be/zKwnx2QEdWI