AGRICULTURE

उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद – तल्ड या तैडू

डॉ.राजेन्द्र डोभाल 

तल्ड की सब्जी तो उत्तराखण्ड में शिवरात्रि के व्रत के समय अक्सर खाने को मिलती है तथा बाजार में ठेलियों में अक्सर बिकने को आता है। उत्तराखण्ड में तो यह प्राचीन समय से ही सूखी सब्जी के रूप में खाया जाता है जिसे स्थानीय लोग जंगलों से खोद कर लाते है। प्राचीन समय से ही तथा कई साहित्यों के अनुसार तल्ड निकालने का उचित समय नवम्बर से मार्च तक माना जाता है जब पौधे अधिकतम आकार प्राप्त कर चुका होता है। इस समय तल्ड के कंद में सर्वाधिक मात्रा में Diosgenise तथा Yamogenin की मात्रा पायी जाती है जिसका चिकित्सा विज्ञान अत्यधिक महत्व है।

तल्ड के बेल की तरह पौधा होता है जिसमें जमीन के अन्दर कन्द बनते है जो विभिन्न आकार के होते है। विश्वभर में डाइसकोरिया जीनस अन्तर्गत लगभग 600 प्रजातियां आती है जो डाइसकोरेइसी परिवार से सम्बंध रखती है। उत्तराखण्ड तथा अन्य हिमालय राज्यों में तो यह जंगली रूप में ही पाया जाता है परन्तु इसकी व्यवसायिक क्षमता देखते हुए भारत के कुछ राज्यों जैसे पंजाब, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश में इसकी व्यवसायिक खेती की जाती है।

विश्वभर में सामान्यतः यह Tropical क्षेत्र का पौधा है परन्तु कुछ प्रजातियां Temprate क्षेत्रों तक विस्तार पाया जाता है। तल्ड की कुछ जंगली प्रजातियां मानव स्वास्थ्य के लिए Steroidal saponins के मौजूद होने के कारण जहरीली पाई जाती है जिसको Detoxify करके खाने योग्य बनाया जाता है। प्राचीन समय से ही खाने योग्य तल्ड तथा जहरीले तल्ड की प्रजाति की पहचान उसकी पत्तियों से की जाती है क्योंकि खाद्य प्रजाति की पत्तियां विपरीत पाई जाती है तथा जहरीले प्रजाति में alternate पत्तियां पायी जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में तो जहरीली प्रजातियां में भी मौजूद Steroidal saponins को कई रासायनिक क्रियाओं से गुजारने के बाद Steroida hormones तथा गर्भ निरोधक के लिए प्रयोग किया जाता है।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में तल्ड का अत्यधिक महत्व है इसमें मौजूद Diosgenin की वजह से ही है जो इसका प्राकृतिक स्रोत है। तल्ड मे लगभग 4-8 प्रतिशत Diosgenin पाया जाता है। जो वर्तमान चिकित्सा विज्ञान में Progesterone तथा Steroid औषधि निर्माण में व्यवसायिक रूप से प्रयुक्त होता है। इसके साथ-साथ Diosgenin से Cortisone को भी Synthesis किया जाता है जो Arthritis के निवारण में प्रयुक्त होता है तथा Diosgenin से व्यवसायिक रूप Stigmasterol, Sapogenins, Cortisone, pregnenolone, Progesterone, बीटा- Sitosterol, Ergosterol बनाये जाते है जो Progestorone को Synthesis करने में सहायक होते है तथा शरीर में विटामिन D3को Synthesis करने में भी सहायक होते है। इसी गुणवत्ता की वजह से आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में लुप्त प्रायः माने जाने वाला तल्ड जिसको की केवल किसी व्रत के मौके पर ही खाया जाता था अचानक विश्व भर में एक नयी पहचान मिलने लगी है। जिसकी वजह से विश्वभर में फार्मास्यूटिकल उद्योगों में इसकी सर्वाधिक मांग रहती है।

तल्ड मे मौजूद Diosgenin जो सेक्स हॉरमोन तथा गर्भ-निरोधक के अलावा बॉडी बिर्ल्डस भी शरीर में टेस्टी स्ट्रोन का स्तर बढाने के लिए प्रयोग करते है। फार्मास्यूटिकल उद्योग में बढती मांग की वजह से इसका अवैज्ञानिक एवं अत्यधिक दोहन होने की वजह से रेड डाटा बुक ऑफ इण्डियन प्लाट्स ने Vulnerable पौधों की श्रेणी में रखा है। सन् 1998 में मोलर तथा वॉकर के सर्वे के अनुसार जंगलों में तल्ड की 80 प्रतिशत संख्या कम हो गयी है और तभी से इसे आशंकित पौधों की श्रेणी में रखा गया था। Convention on International trade in Endangered species (CITES) के अनुसार जंगलों से उत्पादित सभी उत्पादों के निर्यात पर रोक लगा दी गयी केवल व्यवसायिक रूप से उत्पादित उत्पादों को ही Legal Procurement Certificate (LPC) दिया जाता था। सन् 1997 से 2002 तक भारत की आयात-निर्यात नीति के तहत तल्ड तथा तल्ड से उत्पादित उत्पादों का फार्मालेशन के सिवाय पूर्णतः रोकथाम लगा दी गयी थी।

यदि तल्ड की पोष्टिकता की बात की जाय तो यह औषधीय गुणों के साथ-साथ पोष्टिकता के रूप में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसमें प्रोटीन 3.40 प्रतिशत, फाइबर-7.50 प्रतिशत, वसा-1.20 प्रतिशत तथा कार्बाहाइड्रेट- 22.6 प्रतिशत तक पाये जाते है।

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में एक कि0ग्रा0 सूखे तल्ड की कीमत 58.65 डॉलर तक पायी जाती है। उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है। प्राकृतिक रूप से जंगलों में पाये जाते है। इसका विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन तथा व्यवसायिक क्षमता का आंकलन कर यदि व्यवसायिक खेती की जाय तो यह प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर साधन बन सकती है।

डॉ. राजेन्द्र डोभाल
महानिदेशक
उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद
उत्तराखण्ड।

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