संयम,अनुशासन और धैर्य की सीख भी दें उपदेशक
!!संयम,अनुशासन और धैर्य की सीख भी दें उपदेशक!!
(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)
रुड़की, हरिद्वार (उत्तराखंड)
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की घटना पर कल से बड़ी संख्या में मृतकों के प्रति शोक संवेदनाओं एवं घायलों के लिए शीघ्र स्वस्थता की कामनाओं का तांता लगा हुआ है,लेकिन क्या शोकाकुल होने वाले ऐसे कोई उपाय भी सुनिश्चित कर सकेंगे जिससे भविष्य में प्रदेश व देश को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटनाएं न हो? धर्म-कर्म का उपदेश देने वाले उपदेशकों को अपने श्रद्धालुओं को संयम, अनुशासन और धैर्य की सीख भी देनी होगी।…
कल एक धार्मिक समागम में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में भगदड़ मचने से सौ से अधिक लोगों की मौत एक ह्रदय विदारक भयावह घटना है। यह घटना इसीलिए घटी,क्योंकि इस समागम में अनुमान से कहीं अधिक संख्या में लोग सम्मिलित हुए और जब वे आयोजन के उपरांत श्रद्धालु गंतव्य की ओर जाने तो अव्यवस्था के चलते आयोजन स्थल पर भगदड़ मच गई और लोगों ने ही एक-दूसरे को कुचल दिया। हथरस जिले जैसी घटित घटनाएं केवल जनहानि का कारण ही नहीं बनतीं,बल्कि प्रदेश और देश की बदनामी भी कराती हैं। हाथरस की घटना कितनी अधिक गंभीर है,इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता कि देश के प्रधानमंत्री को संसद सत्र में अपने संबोधन के बीच हाथरस हादसे की जानकारी देनी पड़ी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा घटना पर जांच के आदेश व दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने भर के आश्वासन से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता।क्योंकि आमतौर पर यही देखने में आता है कि इस तरह के मामलों में कार्रवाई के नाम पर कुछ अधिक नहीं होता।आमतौर पर हाथरस जैसी घटनाएं रह-रहकर होती रहती हैं और उनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी जान गंवाते हैं। इसके बावजूद कोई सबक सीखने से इन्कार किया जाता है। धार्मिक आयोजनों में अव्यवस्था और अनदेखी के चलते लोगों की जान जाने के सिलसिले पर इसलिए विराम नहीं लग पा रहा है, क्योंकि दोषी लोगों के खिलाफ कभी ऐसी कार्रवाई नहीं की जाती,जो इस तरह की घटनाओं पर कानून की शक्ल दी जा सके।
हाथरस जिले में जिन महानुभाव के सत्संग में श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी भीड़ जुटी,वे बाबा पहले पुलिस सेवा में थे और उनके आयोजन की देख-रेख उनके अनुयायी करते हैं। यह हैरानी की बात है कि किसी ने यह देखने-समझने की कोई कोशिश नहीं की कि भारी भीड़ को संभालने की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं?
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी कागजी खानापूरी करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली। आयोजन या कार्यक्रम की अनुमति देने वाले सरकारी तंत्र के नुमाइंदों को इस बात पर अवश्य ध्यान दिया चाहिए था कि आयोजन स्थल के पास का गड्ढे लोगों की जान जोखिम में डाल सकता है। ऐसा लगता है कि अपने देश में धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में कोई इसकी परवाह नहीं करता कि यदि भारी भीड़ के चलते अव्यवस्था फैल गई तो उसे कैसे संभाला जाएगा? इसलिए प्रायः देखा जाता है कि घटित स्थल पर मारे जाने वाले लोग निर्धन वर्ग के होते हैं।
कल से हाथरस में घटित घटना पर बड़ी संख्या में मृतकों पर शोक संवेदनाओं एवं घायलों के शीघ्र स्वस्थता की कामना के लिए तांता लगा हुआ है, लेकिन क्या शोकाकुल होने वाले ऐसे कोई उपाय भी सुनिश्चित कर सकेंगे, जिससे भविष्य में हाथरस जैसी देश को शर्मिंदा करने वाली घटनाएं न हो सके? प्रश्न यह भी है कि आखिर धार्मिक आयोजनों में धर्म-कर्म का उपदेश देने वाले लोगों को संयम और अनुशासन की सीख क्यों नहीं दे पाते? यह प्रश्न इसलिए,क्योंकि कई बार ऐसे आयोजनों में भगदड़ का कारण लोगों का असंयमित व्यवहार ही दिखता है।