हार के बाद किशोर उपाध्याय और हरीश रावत के मध्य तेज हुआ सियासी युद्ध

कांग्रेस की पराजय को लेकर एक-दूसरे पर फोड़ा जा रहा ठीकरा
देहरादून। राज्य में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के बाद से ही जहां पार्टी कार्यकर्ताओं में जबरदस्त मायूसी पसरी चली आ रही हैं वहीं चुनाव में पार्टी के दोनों मुख्य हीरो हरीश रावत तथा प्रदेश संगठन के मुखिया किशोर उपाध्याय के बीच सियायी युद्ध तेज होने लगा है। उपाध्याय द्वारा हरीश रावत के लिए यह कहे जाने के बाद कि पार्टी के कार्यकर्ता हरीश रावत की हार से सबक लें, को लेकर दोनों ही सूरमाओं के मध्य राजनैतिक रंजिश बढ़ती नजर आ रही है और इसका दुष्प्रभाव कांग्रेसपार्टी व उसके कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है।
राज्य में एक बार फिर से सत्ता का ख्वाब देखने वाली कांग्रेस में घरेलू कलह अब उपरी सतह पर आती नजर आ रही है। पूरी पार्टी बिखरी हुई दिखाई दे रही हैं। कांग्रेस के हारे हुए लीडर हरीश रावत तथा प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने पर आमादा हैं। बीते विधानसभा के चुनाव में सिर्फ 11 सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस को हाशिए पर लाने के लिए इन दोनों को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
देखा व समझा जाए तो राज्य में ये दोनों ही चुनाव में करारी हार के लिए बराबर-बराबर दोषी है। किशोर उपाध्याय सहसपुर क्षेत्र से दूर-दूर तक चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे लेकिन बावजूद इसके उपाध्याय को बिना हथियार के चुनावी अखाड़े में उतार दिया गया था। आज कांग्रेस में इसी करारी हार को लेकर दो गुट बन चुके है। एक गुट किशोर उपाध्याय का है तो दूसरा गुट पूर्व सीएम हरीश रावत का बना हुआ है।
रावत चूंकि अपनी ही मन पसंद दोनों सीटों से चुनाव हारे हैं तो वे राजनीति के पायदान पर डबल दोषी हैं। ऐसे में यदि किशोर ने पूर्व सीएम हरीश रावत को जनता के दरबार में पराजय के लिए ले जाकर खड़ा कर भी दिया है तो वह कोई गलत नहीं है। हरीश रावत की हार से कार्यकर्ताओं को सबक लेना चाहिए, वह अधिकतर कार्यकर्ता मान भी तो रहे है। हां, यह भी सही कहा जा रहा है कि किशोर भी पराजय के लिए दोषी हैं इसलिए उनको प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ देनी चाहिए और आगामी तैयारियों के लिए नये सिरे से कार्य प्रारंभ करना ही कांग्रेस के हित में होगा, यही अनेक पार्टी के लीडर चाह रहे हैं।