भाजपा प्रत्याशी चंद्रा पंत के पास जहां सहानुभूति की लहर है वहीं भाजपा सरकार की पिछले ढाई साल से ज्यादा समय की उपलब्धियों का खज़ाना
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। थराली विधानसभा के उपचुनाव की तरह पिथौरागढ़ विधानसभा उपचुनाव भी भाजपा की झोली में आसानी से आता दिखाई दे रहा है। यहां से कांग्रेस के प्रबल दावेदार मेख महर के लंबे समय हां हां और ना ना के बाद आखिरकार साफ इंकार कर देने के बाद कांग्रेस के पास विधानसभा के इस उपचुनाव के लिए प्रत्याशी का टोटा पड़ गया है।
मयूख कांग्रेस से नाराज हैं या खुद ही अपने आप वे मात्र दो साल के लिए इस चुनाव को नहीं लड़ना चाहते यह तो वही जाने लेकिन उनके यह कहना कि वे किसी भी कीमत पर चुनाव नहीं लडेंगे की घोषणा ने जहां कांग्रेस के हौसलों को पस्त कर दिया है वहीं भाजपा की राह को आसान कर दिया है। हालांकि इससे पहले उन्होंने मानवीय संवेदनाओं का परिचय देते हुए कुछ समय पहले बयान दिया था कि यदि स्वर्गीय प्रकाश पंत की पत्नी इस चुनाव के लिए मैदान में उतरती हैं तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे और यही उनकी स्वर्गीय प्रकाश पंत के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
हालांकि मयूख महर जो कांग्रेस के लिए इस चुनाव में किसी तुरप के इक्के से कम नहीं समझे जा रहे थे उनके इंकार के बाद कांग्रेस के सामने अब एक ऐसी चुनौती पैदा हो गयी है कि उसके लिए कोई ऐसा प्रत्याशी तलाशना भी मुश्किल हो रहा है जो भाजपा प्रत्याशी को चुनौती भी दे सके।
यह अलग बात है कि कांग्रेस जो अब दूसरे विकल्पों पर विचार मंथन की बात कह रही है में कई दावेदार अपनी दावेदारी ठोक रहे है लेकिन वह जीत की दावेदारी करने के लायक एक भी नज़र नहीं आ रहा है कांग्रेस को इस चुनाव से बड़ी उम्मीदें मयूख महर से थी जो एक बार प्रकाश पंत जैसे नेता को हरा चुके थे तथा पिछले चुनाव में भी मामूली अंतर से हारे थे पर कांग्रेस को पूरा भरोसा था कि अगर वह चुनाव लड़ने पर राजी हो जाते है तो चुनावी गेम जरूर पलट सकता है लेकिन मयूख महर के इंकार से कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है।
यह बात भी काफी महत्वपूर्ण है कि विधानसभा के लिए होने जा रहा यह उप चुनाव 2022 के लिहाज से भाजपा के लिए महत्वपूर्ण तो है ही वहीं मृतप्राय कांग्रेस में जान फूंकने के लिए किसी ऑक्सीजन से काम भी नहीं है। हालांकि यह चुनाव दोनो दलों के लिए क्या महत्व रखता है यह सभी जानते हैं।
भले ही कांग्रेस के पास प्रदेश प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी, मुकेश पंत, कुंवर सिंह व प्रकाश जोशी जैसे कई दावेदार हो लेकिन उनमें से कोई भी चन्द्रा पंत के मुकाबले क्या मैदान में टिक पायेगा इसका अंदाजा कांग्रेेस को भी बखूबी है। इस उप चुनाव को लेकर कांग्रेस की दिक्कत यह है कि जहां भाजपा प्रत्याशी चंद्रा पंत के पास सहानुभूति की लहर है वहीँ भाजपा सरकार की पिछले ढाई साल से ज्यादा समय की उपलब्धियों का खज़ाना भी उनके पास इस चुनाव में होगा।
यही कारण है कि अब विकल्प की तलाश मुश्किल हो रही है वहीं भाजपा मयूख महर के इंकार के बाद स्वंय को कम्फर्ट जोन में पा रही है यह कहना भी कदापि गलत नहीं होगा कि कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मयूख को मैदान में न उतार कर भाजपा को एक तरह से वाकओवर का मौका दे रही है।