देश को तिरंगा देने वाले पिंगली वेंकैया की हुई थी गरीबी से मौत
देहरादून : भारत 26 जनवरी 2017 को अपना 68वां गणतंत्र दिवस मनाएगा। चाहे गणतंत्र दिवस हो या 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस तिरंगे से प्यार और उसके लिए बलिदान के ढेरों गीत और भाषण सुने और दिए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का निर्माता कौन था? आज जो तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज है उसका सफर 1921 में आजादी से पहले शुरू हुआ था। उससे पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अलग-अलग मौकों पर भिन्न-भिन्न झंडों का प्रयोग करते थे। 1921 में आंध्र प्रदेश के रहने वाले पिंगली वेंकैया ने अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति के बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) सत्र में महात्मा गांधी के सामने भारत के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर लाल और हरे रंग का झंडा प्रस्तुत किया।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गांधीवादी पिंगली वेंकैया ने लाल और हरे रंग को भारत के दो बड़े समुदायों हिन्दू और मुसलमान के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया था। गांधी जी के सुझाव पर उन्होंने इस झंडे में अन्य समुदायों की प्रतीक सफेद रंग की पट्टी और लाला हरदयाल के सुझाव पर विकास के प्रतीक चरखे को जगह दी। कांग्रेस ने इस तिरंगे ध्वज को अाधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया। जल्द ही तिरंगा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में “स्वराज” ध्वज के रूप में लोकप्रिय हो गया। लाल रंग की जगह केसरिया को जगह देते हुए 1931 में कांग्रेस ने तिरंगे को अपना आधिकारिक ध्वज बना लिया। कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को ही भारत को पूर्ण स्वराज को घोषणा की थी।
भारत को आजादी मिलने से पहले संविधान सभा ने जून 1947 में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली समिति को भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी। मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू, सी राजागोपालचारी, केएम मुंशी और बीआर आंबेडकर इस समिति के सदस्य थे। समिति ने सुझाव दिया कि कांग्रेस के झंडे को ही कुछ बदलाव के साथ भारतीय के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए। समिति के सुझाव के अनुसार चरखे की जगह अशोक स्तम्भ के धम्म चक्र को ध्वज पर जगह दी गयी। जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 22 जुलाई 1947 को इसे भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकृत कर लिया गया।
कौन थे पिंगली वेंकैया- वेंकैया का जन्म दो अगस्त 1876 को वर्तमान आंध्र प्रदेश में हनुमंतारायुडु और वेंकटरत्नम्मा के घर हुआ था। उनकी आरंभिक स्कूली शिक्षा मछलीपत्तनम से हुई थी। बाद में सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा के लिए वो कोलंबो गए। कुछेक नौकरियां करने के बाद वो एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा की पढ़ायी करने लाहौर गए। वेंकैया 19 साल की उम्र में ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे। उन्होंने एंग्लो-बोअर युद्ध में हिस्सा लिया और उसी दौरान उनकी महात्मा गांधी से मुलाकात हुई थी।
पिंगली वेंकैया भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था। वो हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे इसलिए उन्हें ‘डायमंड वेंकैया’ भी कहा जाता था। वेंकैया 1906 से 1911 तक अपने जीवन का बड़ा हिस्सा कपास की विभिन्न किस्मों पर शोध में व्यतीत किया था इसलिए उन्हें ‘पट्टी (कपास) वेंकैया’ भी कहा जाता था। उन्होंने कंबोडियाई कपास की एक किस्म पर अपना शोध पत्र भी प्रकाशित करवाया था। माना जाता है कि पिंगली वेंकैया ने ध्वज का आरंभिक स्वरूप गांधीजी के सामने पेश करने से पहले करीब 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का विश्लेषण किया था।
गांधीवादी वेंकैया ने पूरा जीवन सादगी से गुजारा। चार जुलाई 1963 को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक झोपड़ी में उनका निधन हो गया। आजादी के बाद चार दशकों तक वेंकैया सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे। साल 2009 में भारत सरकार ने उनकी सुध लेते हुए उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। साल 2015 में विजयवाड़ा के आल इंडिया रेडियो भवन के बाहर केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने पिंगली वेंकैया की प्रतिमा का अनावरण किया। हालांकि देश को तिरंगा देने वाले वेंकेया के बारे में सरकार का रुख इस बात से भी बता चलता है कि भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर दिए “तिरंगे के इतिहास” में पिंगली वेंकैया का नाम तक नहीं है। उन्हें बस “आंध्र प्रदेश का एक युवक” बताया गया है।