मैथिलीशरण गुप्त की कविताओं में दार्शनिकता
कमल किशोर डुकलान
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना,धार्मिक भावना,मानवीय उत्थान, प्रकृति प्रेम,अध्यात्म और दार्शनिकता का भाव प्रमुख है।…
हमारे विद्यार्थी जीवन में हमारे गुरुजनों द्वारा हाईस्कूल की परीक्षा में अलंकार कंठस्थ करा दिए जाते थे। जिनके लिए हम अलंकारों से संबंधित कविता या अन्य पंक्तियां कंठस्थ कर देते थे। उन्हीं में से एक कविता थी:-
”चारुचंद्र की चंचल किरणें,
खेल रहीं हैं जल थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,
अवनि और अम्बरतल में..
यद्यपि उस समय हमारे लिए इन कविता की पंक्तियों का केवल इतना ही महत्व था कि जब भी प्रश्नपत्र में अनुप्रास अलंकार के बारे आते तो मे उदहारण रुप में हम मैथिलीशरण गुप्त जी की इस कविता की पंक्तियों को प्रश्नपत्र में लिख देते थे। अन्य अलंकारों की तरह अनुप्रास अलंकार की व्याख्या भी कंठस्थ होती थी-‘जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है.’परीक्षा में हमारा इतना भर लिखने से दो नंबर पक्के हो जाते थे।हाईस्कूल करने के बाद जब धीरे-धीरे पढ़ाई का आगे बढ़ी तो इन लाइनों का मूल अर्थ और इनके रचियता के बारे में भी धीरे-धीरे ज्ञान होने लगा। उसी हाईस्कूल वाले ‘अनुप्रास’ अलंकार के उदाहरण वाली कविता के रचियता मैथिलीशरण गुप्त का आज जन्मदिन है।
हिंदी साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली के अहम कवि,राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का
गुप्त जी न केवल हिंदी साहित्य का प्रकाण्ड विद्वान थे बल्कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। उनकी श्रेष्ठ रचना ‘भारत-भारती’ स्वतंत्रता संग्राम में बहुत ही असरकारी साबित हुई। इसी कविता के चलते खुद महात्मा गांधी ने गुप्तजी को राष्ट्र कवि कहकर संबोधित किया था। आज़ादी की लड़ाई में उनके योगदान के चलते तत्कालीन भारत सरकार ने उन्हें 1952 में पद्मभूषण से सम्मानित किया था। आज के दिन उनका ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ‘पंचवटी’,‘जयद्रथ वध’,‘यशोधरा’और ‘साकेत’ आदि प्रमुख रचनाएं शामिल हैं। इसमें भी ‘साकेत’ उनकी कालजयी रचना है।
भावी पीढ़ी के लिए नैतिकता और पवित्रता मैथिलीशरण गुप्त जी के प्रथम गुण थे। जिसे भावी पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।
उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना,धार्मिक भावना, मानवीय उत्थान,प्रकृति प्रेम, अध्यात्म और दार्शनिकता का भाव प्रमुख है।