हेरवाल गांव के दबंगो और पुलिस के डर से 14 परिवार पलायन को हुए मजबूर
पलायन को रोकने के लिए बड़ी बड़ी बातें लेकिन प्रवासियों के परिजनों की कौन करेगा हिफाजत
हेरवाल गांव में आज भी महिलाओं का सरेआम हो रहा अपमान
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : जिले के प्रतापनागर ब्लॉक के अंतर्गत हेरवाल गांव में गांव के राजनीतिक संरक्षण प्राप्त दबंगों और इनका साथ दे रही स्थानीय पुलिस के डर से गाँव के 14 परिवार गांव छोड़ने को मजबूर हैं। शांत कहे जाने वाले उत्तराखंड के इस गांव का आलम यह है कि शाम ढलते ही पांच बजने के बाद गांव के इन लोगों पर अत्याचार की शुरुआत शराबी दबंगो द्वारा भद्दी गली गलौज और महिलाओ का सरेआम अपमान करने से होती है। अपने ही गांव में रहने वाले ये 14 परिवार गांव में अल्प संख्यक होकर रह गए हैं और इनके ज्यादातर लोग देश -विदेश में रोजी रोटी कमाने के लिए गए हुए हैं जिसका फायदा गांव के ये दबंग उठा रहे हैं। रोज़गार की तलाश में बाहर गए इन 14 परिवारो में कोई भी पुरुष घर पर नहीं रहता, सिर्फ महिलायें बच्चे और बुजुर्ग ही गांव में रहते हैं। जो डर और भय के माहौल में जीने को मज़बूर हैं।
गांव के अल्पसंख्यक की जिंदगी जीने को मज़बूर हुए इन लोगों पर दबंगों का बढ़ते अत्याचार तब शुरू हुआ जब हाल ही में संपन्न हुए ग्राम पंचायत के चुनाव में इन परिवारों ने दबंग गुट न तो सपोर्ट ही किया और न ही ऐसे लोगों को वोट ही दिया इसके बाद तो दबंग गुट येन केन प्रकारेण विजयी तो हो गया और उसके बाद दबंगों ने गांव के इन 14 परिवारों का बहिष्कार शुरू कर दिया, वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि लंबगाव पुलिस भी इनकी कोई मदद नहीं करती,ऊपर से इनको ही विदेशी नागरिक बता कर प्रताड़ित कर रही है।
ग्रामीणों के अनुसार कुछ वर्षो पहले इन्ही 14 परिवारों में से एक परिवार की महिला के साथ बदसलूकी की घटना घटित हुई और मामला सही पाए जाने पर दोषी को जिला अदालत ने सजा भी दी। लेकिन फिर भी दबंग नहीं सुधरे। इतना ही नहीं घटना के बाद दहशत में आए इन परिवारों की कई महिलाएं अपने बच्चो के साथ नई टिहरी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी में किराये के मकानों में अपने बच्चो के साथ रहने को मज़बूर हैं।
ग्रामवासियों के अनुसार ग्राम प्रधान के चुनाव में दबंगो ने जबरदस्त फर्जीवोटिंग करवाई, कई फर्जी वोटरों को तो मतदान अधिकारियों ने भी पकड़ा जो सरकार के संज्ञान में भी है, मतदान अधिकारियों को भी डराया धमकाया गया, इनके खिलाफ फर्जी वोटिंग का केस उत्तराखंड उच्च न्यालय में आज भी विचाराधीन है। इतना ही नहीं पिछली बार जब इन परिवारों के लोग वोट देने घर आये तो उनको डरा धमका कर 24 घंटे के अंदर गांव छोड़ने को बोला गया। जो जल्दी गांव छोड़ने को तैयार नहीं हुए उनके साथ मारपीट की गई। तमाम घटनाओ से स्थानीय पुलिस वाकिफ है।
ग्रामीणों का आरोप है कि स्थानीय पुलिस चौकी कोडार तो प्रधान की डीजल की दुकान के सामने ही है पुलिस का और उसका साथ खाने पीने का सम्बन्ध है जिसके कारण पुलिस इनके प्रभाव में आ चुकी है। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम प्रधान जो ठेकेदर और दबंग है ने इन परिवारों को मनरेगा में भी काम करने के लिए मना कर दिया, जब ये लोग क्षेत्र पंचायत अधिकारी को मिलने गए तो उन्होंने भी प्रधान की दबंगता से डरते हुए ग्रामीणों की मदद करने से साफ़ मना कर दिया।
इतना ही नहीं ग्रामीणों का आरोप है कि इलाके में दबंगों का पुलिस पर इतना प्रभाव है कि जब इनके परिवार की एक पीड़ित महिला उसके साथ हुए दुराचार की रिपोर्ट लिखवाने जब लंबगाव पुलिस स्टेशन में गई तो पुलिस ने उसे ही डराया धमकाया और मामले में आज तक उसकी एफआईआर दर्ज तक नहीं हुई है। इतना ही नहीं उल्टा पीड़ित परिवारों की महिलाओं और बच्चो को बयान लेने के नाम पर आज भी डराया और धमकाया जा रहा है।
ग्रामीणों का आरोप है कि दबंग प्रधान मिलावटी डीजल भी सरे आम बेचता है,वहीँ 20 वर्षो से सरकारी राशन की दुकान फर्जी नाम से चल रही थी। जिसे हाल ही में पूर्ति विभाग ने बंद की है। जबकि इन 14 परिवारों में किसी को यह दबंग प्रधान जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र भी नहीं देता है जिससे ग्रामीणों के सामने जिला मुख्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं।
इन्ही परिवारों में से एक वीरेंदर रावत है, जो गुजरात में रहते हैं और लगातार जिला प्रशासन को दबंगो के अत्याचारों की सूचना देते रहते है फिर भी गुनह्गारो को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया। हॉल ही में उन्होंने उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक को मेल कर घटनाओ की जानकारी दे दी है लेकिन पुलिस के द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
अहमदाबाद से उन्होंने फ़ोन पर बताया कि 14 परिवारो की महिलाये और बच्चे आगामी 12 मार्च को नई टिहरी में जिलाधिकारी को मिलने आ रहे है और अगर जिलाधिकारी से कोई न्याय नहीं मिला तो जिलाधिकारी कार्यालय के सामने ही धरने पर बैठ जाएंगे , क्योंकि गांव में अपराधियों द्वारा रोजबरोज़ अपमान सहन करने से अच्छा है कि प्रसाशन के सामने ही बैठा जाय।