भाजपा और कांग्रेस को कहीं महंगा न पड़ जाय बाहरी प्रत्याशी को टिकट देना !
-रुद्रप्रयाग विधानसभा में बाहरी प्रत्याशी के खिलाफ लामबंद्ध है जनता
-भाजपा और कांग्रेस में टिकट को लेकर मचा है घमासान
-स्थानीय पर दाव खेला तो किसी एक को मिल सकती है जीत
रुद्रप्रयाग । रुद्रप्रयाग विधानसभा में इस बार कांग्रेस और भाजपा को बाहरी प्रत्याशी थोपना आसान नहीं है। दोनों ही राष्ट्रीय दलों को जनता पर बाहरी प्रत्याशी थोपा तो महंगा भी पड़ सकता है। क्योंकि इस बार के विधानसभा चुनाव में जनता बाहरी प्रत्याशियों को सबक सिखाने के लिये तैयार बैठी है।
राज्य निर्माण के बाद तीनों बार हुये विधानसभा चुनाव में बाहरी प्रत्याशियों का ही बोलबाला रहा। जिससे रुद्रप्रयाग विधानसभा विकास से अछूती नहीं रही। इस बार जनता ने अपने ही बीच से किसी को विधानसभा में भेजने का निर्णय लिया है। भाजपा एवं कांग्रेस ने स्थानीय पर ही दाव खेला तो किसी एक की जीत सुनिश्चित है, लेकिन बाहरी पर दाव खेला तो कांग्रेस एवं भाजपा के लिये महंगा भी साबित हो सकता है।
रुद्रप्रयाग विधानसभा से भाजपा और कांग्रेस में टिकट को लेकर घमासान मचा हुआ है। 18 मार्च 2016 को कांग्रेस विधायक डाॅ हरक सिंह रावत के बागी होकर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस में कई दावेदार खड़े हो गये हैं और सितम्बर 2012 को भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुये पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी के जाने के बाद भाजपा में भी कई दावेदार सामने आ गये हैं।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महामंत्री और 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़े वीरेन्द्र बिष्ट के भाजपा में शामिल होने के बाद कंडारी आग बबूला हो गये थे और बिष्ट के भाजपा में शामिल होने के बाद कंडारी ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव त्रिवेन्द्र सिंह रावत को खूब खरी-खोटी सुनाई थी। सितम्बर 2012 में भाजपा के पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने भाजपा से अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थामा और मार्च 2013 में कंडारी कांग्रेस छोड़कर फिर से भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा प्रदेश संगठन का कोई भी पदाधिकारी नहीं चाहता था कि फिर से श्री कंडारी को भाजपा में शामिल किया जाय, लेकिन भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता के दबाव के कारण भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने कंडारी को शामिल करवाया।
मई 2014 के लोकसभा चुनाव में श्री कंडारी ने भाजपा प्रत्याशी के लिये वोट मांगने के बजाय, अपना ही प्रचार किया कि मुझे तो शामिल नहीं किया जा रहा था, इसके बाद भी मैं शामिल हो गया। कंडारी नहीं चाहते थे कि भाजपा प्रत्याशी को रुद्रप्रयाग विधानसभा से बढ़त मिले, लेकिन मोदी लहर के सामने उनकी कही नहीं चली और लोकसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी भारी अंतर से जीते। जबकि रुद्रप्रयाग के विधायक और सरकार में काबीना मंत्री डाॅ हरक सिंह रावत कांग्रेस से लोकसभा प्रत्याशी थे।
सितम्बर 2012 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुये पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने देहरादून परेड ग्राउंड के मंच पर कहा था कि भाजपा में घुटन महसूस कर रहा था और कांग्रेस में शामिल होकर राहत की सांस ले रहा हूं और उत्तराखण्ड में भाजपा का नामोनिशान मिटा दूंगा और मैं अपने घर वापस आ गया हूं।
राज्य निर्माण के बाद 2002 एवं 2007 के विधानसभा चुनाव में कंडारी रुद्रप्रयाग विधानसभा से निर्वाचित हुये और 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी और रिश्ते में अपने साढू भाई डाॅ हरक सिंह रावत से साथ चुनाव हार गये और चुनाव हारने के बाद भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल भी हो गये। कंडारी के भाजपा छोड़ने के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय लड़े भरत सिंह चौधरी भाजपा में शामिल हो गये और 2012 निर्दलीय चुनाव हारने के बाद लगातार जनता के बीच बने हुये हैं।
रुद्रप्रयाग विधानसभा से भाजपा में टिकट को लेकर घमासान मचा हुआ है। भाजपा के पूर्व प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भरत सिंह चौधरी, पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता वीरेन्द्र बिष्ट , भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष मदन सिंह रावत एवं भाजपा जिलाध्यक्ष डाॅ आनंद सिंह बोहरा ने भी दावेदारी की है।
भाजपा जिलाध्यक्ष डाॅ आनंद सिंह बोहरा की दावेदारी को प्रदेश नेतृत्व ने खारिज करते हुये उन्हें सख्त हिदायत दी कि दावेदारी नहीं करोगे और दोनों सीटें जिताके लानी हैं। भाजपा के पूर्व मंत्री मातबर सिंह कंडारी की उम्र आडे़ आने, पार्टी छोड़ना और बाहरी होने के आरोप होने के कारण पार्टी उनके नाम पर जोखिम लेने को तैयार नहीं है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता वीरेन्द्र बिष्ट भले ही संगठन के ओहदे पर हों, लेकिन उनकी जनता से दूरियां दावेदारी में आड़े आ रही है। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष मदन सिंह रावत सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में बैनर, पोस्टर लगाने में सबसे आगे हैं और भाजपा का प्रचार करने में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी है। प्रदेश के बड़े से बड़े नेता हो या फिर केन्द्र के नेता। उन्होंने हर किसी को बैनर व पोस्टरों में तवज्जो दी है। भाजपा के पूर्व कार्य समिति के सदस्य भरत सिंह चौधरी की दावेदारी इसलिये मजबूत मानी जा रही है कि वे संघ के पहली पहली पंसद हैं और लगातार जनता के जनसरोकारों के लिये संघ कर रहे हैं। पांच सालों तक लगातार जनता के बीच रहकर जनता की एक-एक समस्याओं के लिये गांव-गांव की खाक और पांच बार विधानसभा चुनाव हारने के कारण जनता में सहानुभूमि भी दिखाई दे रही है।
कांग्रेस से पार्टी के जिलाध्यक्ष प्रदीप थपलियाल, कांग्रेस प्रदेश महामंत्री वीरेन्द्र बुटोला और युवा कांग्रेस के प्रदेद्दा महामंत्री अंकुर रौथाण ने दावेदारी की है। अगस्त्यमुनि ब्लाॅक के प्रमुख जगमोहन रौथाण भी कांग्रेस से टिकट को लेकर दिल्ली एवं देहरादून में हाथ पांव मार रहे हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय जिताऊ दावेदार के उपर हाथ रखना चाहते हैं। क्योंकि रुद्रप्रयाग विधानसभा कांग्रेस के लिये प्रतिष्ठा का सवाल है। कांग्रेस विधायक डाॅ हरक सिंह रावत के पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस के लिये यह सीट नाक का सवाल बनी हुई है।
कांग्रेस जिलाध्यक्ष प्रदीप थपलियाल के सिर पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का हाथ होने के कारण थपलियाल की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है और युवा कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री अंकुर रौथाण के सिर मुख्यमंत्री हरीत रावत का हाथ बताया जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री वीरेन्द्र बुटोला दोनों मुखियाओं के सहारे टिकट की आस लगाये बैठे हैं। अगस्त्यमुनि के प्रमुख जगमोहन रौथाण की मुख्यमंत्री हरीश रावत से नजदीकियां टिकट पाने में मददगार हो सकती हैं। विधानसभा टिकट को लेकर भाजपा एवं कांग्रेस में इन दिनों माथापच्ची का खेल चल रहा है और सोशल मीडिया में संभावित दावेदारों के फर्जी नाम आने से समर्थकों की नींद हराम हो रखी है।