एनआरसी के लिए लोगों को जन्मदिन और स्थान से जुड़े साधारण ब्योरे ही देने होंगे
एनआरसी के लिए वर्ष 1971 से पहले के दस्तावेज या अपने माता-पिता से जुड़े दस्तावेज को देने की कोई अनिवार्यता नहीं
नई दिल्ली, प्रेट्र : राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से अफवाहों और संशयों की परत हटाते हुए सरकार ने एक बार फिर इन मुद्दों पर लोगों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार देश के लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए केवल अपने जन्मदिन और स्थान से संबंधित कोई भी दस्तावेज जमा करना होगा। एनआरसी के लिए वर्ष 1971 से पहले के दस्तावेज या अपने माता-पिता से जुड़े दस्तावेज को देने की कोई अनिवार्यता नहीं होगी।
आधिकारिक सूत्रों ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि असम की तरह एनआरसी के लिए किसी को भी 1971 से पहले के दस्तावेज देने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि असम राज्य का मामला दुलर्भ होने के चलते वहां ऐसा करना जरूरी था। भविष्य में देश भर में एनआरसी की व्यवस्था लागू होने के सिलसिले में लोगों को केवल अपने जन्मदिन और संबंधित स्थान से जुड़े साधारण ब्योरे ही देना पर्याप्त होगा। इसमें वह मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, बीमा के दस्तावेज, जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट, जमीन या मकान से जुड़े सरकारी दस्तावेजों में से भी किसी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
सरकार को यह स्पष्टीकरण तब देना पड़ा है जब विपक्षी दल और सामाजिक संगठन लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर मुसलमानों के प्रति भेदभाव और विभाजनकारी नीतियों के तहत लाया गया है। इन कानूनों के खिलाफ देश भर में विरोध-प्रदर्शन जारी हैं।
सूत्रों ने बताया कि एनआरसी को जब भी और जिस भी रूप में लागू किया जाएगा, उसका किसी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा। सरकार के सूत्रों के मुताबिक नागरिकता संशोधन कानून एक अलग कानून है, जिसे देश की संसद ने पारित किया है जबकि एनआरसी एक अलग प्रक्रिया है। देश के लिए एनआरसी के नियमों और प्रक्रिया को अभी तय किया जाना बाकी है। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संसद में कहा था कि एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाएगा। लेकिन अब तक इसके समय को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है।
एनआरसी के स्पष्टीकरण में साफ कहा गया है कि अगर कोई निरक्षर है और उसके पास कोई दस्तावेज नहीं हैं तो गवाहों और सामुदायिक पुष्टि से उसकी जानकारी हासिल की जाएगी। ऐसी किसी भी कवायद के तहत किसी भी भारतीय नागरिक को परेशान नहीं किया जाएगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी भी भारतीय की नागरिकता उसके किन्नर, दिव्यांग, आदिवासी, दलित आदि होने से नहीं जाएगी।
वहीं, सरकार ने पीआइबी (प्रेस इंफार्मेशन ब्यूरो) के जरिये नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर भी सफाई देते हुए कहा कि असम में किसी का भी निर्वासन नहीं हुआ है। सवाल-जवाब की तर्ज पर नौ सवालों के जवाब देते हुए पीआइबी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर बताया कि सीएए ने किसी भी विदेशी नागरिक को भारतीय नागरिकता के लिए नागरिकता अधिनियम,1955 के तहत आवेदन करने से नहीं रोका है। सीएए से भारतीयों के कोई हालात नहीं बदले हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के जिन अवैध आव्रजकों के पास पूरे कागज नहीं हैं और वह धार्मिक प्रताड़ना के बाद भारत में शरण लेने 31 दिसंबर, 2014 से पहले आए थे, उन्हें छह साल के प्रवास के बाद भारतीय नागरिकता मिल सकती है। लेकिन बाकी विदेशी नागरिकों के लिए भारत में प्रवास की शर्त कम से कम 12 साल ही रहेगी।