नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बीते दिनों भारत के लिए जिस बोली का प्रयोग किया था शायद उन्हें अपनी भूल का एहसास हो गया है और अपनी भूल को सुधारना शुरू कर दिया है।
कमल किशोर डुकलान
नेपाल भारत का निकटतम पड़ोसी है। और दोनों देशों के बीच सही मायने में रोटी-बेटी के संबंध भी हैं। सैकड़ों वर्षो से नेपाल के लोग बिना किसी रोक-टोक के भारत में आते रहे हैं और भारत के लोग भी नेपाल जाते रहते हैं। परन्तु कुछ समय से चीन को नेपाल और भारत की दोस्ती सुहाती लगने लगी है। चीन हर तरह से ऐसे सभी देशों को निरंतर भारत के विरुद्ध उकसाने का काम करता रहता है जो देश भारत के निकट हैं। हाल की घटनाओं से ऐसा लगता है कि चीन ने नेपाल को भारत के सैकड़ों वर्ष पुराने मित्रवत संबंधों में काफी हद तक दरार डालने का काम किया जिस कारण नेपाल एक प्रकार से चीन की गोद में बैठ गया है।
हाल में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत के खिलाफ बहुत दुष्प्रचार किया है। सबसे बड़ी बात यह रही कि भारतीय भूभाग में स्थित एक अनेकों क्षेत्रों को ओली ने नेपाल का होने का दावा किया। भारत ने इसका कड़ा विरोध किया। इतना ही नहीं, चीन के बहकावे में आकर ओली ने नेपाल के नए नक्शे को नेपाल की संसद में भी पास करा लिया है और नेपाली संसद में ने नक्शे को मंजूरी भी मिल गई। उस समय भारत ने खून का घूंट पीकर यह सब बर्दाश्त कर लिया, परंतु यह भी कह दिया कि देर सबेर इस समस्या का समाधान होना निश्चित है।
नेपाल के साथ भारत की महत्वपूर्ण संधि वर्ष 1950 में हुई थी जिसमें भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और नेपाल की ओर से वहां के शासक महेंद्र वीर विक्रम शाह थे। तब से सब कुछ ठीक चल रहा था और भारत की ओर से नेपाल को हर तरह की सुविधा भी मिल रही थी। जैसा कि सर्वविदित है नेपाल एक लैंडलॉक्ड देश है, जिसकी सीमा समुद्र से कहीं भी नहीं लगती। आयात-निर्यात के मामले में नेपाल को पूरी तरह भारत पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत ने कभी इस बात का विरोध नहीं किया कि नेपाल कहां से आयात करता है और किस देश को क्या निर्यात करता है। नेपाल और भारत के बीच एक संधि है, जिसके अुनसार नेपाल बिना भारत की इजाजत के विदेशों से अस्त्र-शस्त्र नहीं खरीद सकता है। परंतु राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के समय नेपाल ने व्यापक मात्र में विदेशों से अस्त्र-शस्त्र खरीदें गये थे, राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत नेपाल के मित्रवत संबंधों में कटास आई थी।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी भारत नेपाल के मित्रवत संबंधों को सुधारने का पूरा प्रयास हुआ था,परंतु हर बार नेपाल इसको अनसुना कर देता था। भारत के नेताओं को यह बात समझ में आ गई कि नेपाल पूरी तरह से चीन के चंगुल में आ गया है। इसके जवाब में भारत ने नेपाल जाने वाले पेट्रोलियम पदार्थो के आयात को पूरी तरह से रोक दिया। जिससे नेपाल में हाहाकार मच गया। नेपाल के तराई क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश लोग, जिन्हें वहां की भाषा में मधेशी कहा जाता है, उन्होंने नेपाल की सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। अंत में लाचार होकर नेपाल को झुकना पड़ा और नेपाल की सरकार ने भारत को विश्वास दिलाया कि बिना भारत की मंजूरी से वह कहीं से अस्त्र-शस्त्र नहीं खरीदेगा। यह एक कठिन समस्या थी, परंतु दोनों देशों के नेताओं की सूझ-बूझ से इसका समाधान निकाला गया। जैसा कि सर्व विदित है,कि नेपाल में दो तरह के लोग रहते हैं, एक तो पहाड़ी और दूसरे तराई क्षेत्र के लोग,जो बिहार और उत्तर प्रदेश से नेपाल आकर सैकड़ों वर्षो से बसे हुए हैं। नेपाल ने कभी उन लोगों के आने-जाने में कोई अड़चन नहीं डाली। नेपाल में भारतीय मुद्रा पिछले सैकड़ों वर्षो से सहज भाव से चलन में है। बीते वर्षो चीन के बहकावे में आकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार शुरू कर दिया। इससे नेपाल में रहने वाले पहाड़ी और मधेशी दोनों नाराज हो गए और मांग होने लगी कि केपी शर्मा ओली को उनके पद से हटाया जाए। नेपाल में दूसरे महत्वपूर्ण नेता प्रचंड हैं। प्रचंड ने भी ओली के भारत के विरुद्ध किए गए विषवमन की निंदा की।
पहले भी जब भारत से नेपाल के संबंधों में खटास आ जाती थी, तब चीन नेपाल को आश्वस्त करता था कि वह उसके पेट्रोलियम पदार्थो की पूर्ति कर देगा। परंतु ऐसा संभव नहीं था,क्योंकि तिब्बत होकर उबड़-खाबड़ पहाड़ियों के बीच नेपाल तक पेट्रोलियम पदार्थ पहुंचाना संभव नहीं था। लिहाजा नेपाल को भारत की तरफ झुकने को विवश होना पड़ा और दोनों देशों के संबंध सामान्य हो गए। आज भी प्रतिदिन हजारों लोग जीविकोपार्जन के लिए नेपाल से भारत बिना किसी वीजा या पासपोर्ट के आते हैं और पैसे कमाकर नेपाल लौट जाते हैं। भारत ने कभी इसका विरोध नहीं किया है। जब नेपाल के प्रधानमंत्री ने भारत के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया तो भारत में भी यह आवाज उठने लगी कि नेपाल के नागरिकों को भी भारत में रोजी-रोटी नहीं दी जाए। इससे नेपाल में भी नए सिरे से विमर्श शुरू हुआ। भारतीय स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त को ओली ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन पर स्वतंत्रता दिवस की बधाई दी। दरअसल नेपाल में जब जनता का रोष ओली के खिलाफ भड़क गया,तब उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ। देर-सबेर भारत के संबंध नेपाल से पूर्ववत होने ही आशा है। कुछ वर्ष पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल गए थे,तब उन्होंने कहा था कि अयोध्या का जनकपुर से बहुत निकटतम संबंध है। इस संबंध को रामायण सर्किट का रूप दिया जाना चाहिए। हाल में जब ओली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की, तब उन्होंने आशा व्यक्त की कि रामायण सíकट मजबूती से दोनों देशों के संबंधों को प्रगाढ़ करेगा। ऐसा लगता है कि ओली को अपनी भूल का पूर्णत: एहसास हो गया है और संभवत: वह चीन के चंगुल से निकलकर स्वतंत्र रूप से नेपाल की सरकार का संचालन करेंगे। ऐसे में यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत और नेपाल के संबंध कुछ समय बात अवश्य पूर्ववत हो जाएंगे।