देहरादून में बैठे अधिकारियों को पहाड़ की भौगोलिक स्थिति की नहीं जानकारी !
पौड़ी जिले की पांच टीम कम कर इन टीमों को देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में भेजने का तुगलकी फरमान
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : राज्य के अस्तित्व में आने के 20 वर्ष पूर्व लखनऊ से उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में गन्ने की फसल उगाए जाने के तुगलकी फरमान की याद उस दौरान के नेताओं ,अधिकारियों और कर्मचारियों को होगी ही लेकिन अब राज्य के 20 साल के हो जाने के बाद भी राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों से अनविज्ञ अधिकारी आज भी देहरादून से लखनऊ ऐसा आदेश पारित कर रहे हैं। जिसे किसी भी हाल में उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के लिए ठीक नहीं समझा जा सकता है।
गौरतलब हो कि भारत सरकार के परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा भारत सरकार ने नेशनल हेल्थ कार्यक्रम के अंतर्गत RBSK Program चलाया जा रहा है। इसके तहत जन्म से लेकर 18 साल तक के बच्चों में किसी भी प्रकार की बीमारी हो तो सरकार उसका पूरा उपचार कराएगी। यह योजना खास तौर पे 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बनाई गई है। जिसमे मुख्य रूप से जन्मजात बच्चो की जन्म के समय की बीमारी का पता लगाकर उसका इलाज़ करना है। देश में जन्म लेने वाले 100 बच्चों में से 6-7 जन्म संबंधी विकार से ग्रस्त बच्चे होते हैं। भारत मे जन्म संबंधी विकार वाले बच्चो की अंदाजन संख्या 1.7 मिलियन / वार्षिक होगी। भारत मे सभी नवजातों में से 9.6 % की मृत्यु इसके कारण होती है। हमारे देश मे पोषण संबंधी विभिन्न कमियों की वजह से विधालय जाने से पूर्व अवस्था के 4 से 70 % बच्चे विभिन्न प्रकार के विकारों से ग्रस्त होते हैं। बच्चो में विकासात्मक अवरोध की बीमारी भी पाई जाती है, यदि इन पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह स्थायी विकलांगता का रूप धारण कर सकती है। बच्चों मे कुछ रोग बेहद आम होते है जेसे की दाँत, हृदय और श्वसन संबंधी रोग। यदि इन रोगो की शुरुआत मे पहचान कर ली जाए तो इनका इलाज़ संभव है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए Rashtriya Bal Swasthya Karyakram (RBSK) के तहत बाल स्वास्थ्य जांच और जल्द उपचार सेवाओं से ऐसे रोगो के सामने लड़ना इस योजना का उद्देश्य है।
मामला उत्तराखंड में चलने वाले राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का है जिसे वर्ष 2019 से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) में पौड़ी गढ़वाल के 15 विकासखण्डों में 15 टीम कार्यरत थी ,लेकिन इस वर्ष राजधानी से आए फरमान से पांच टीम कम करने के आदेश हुए हैं और इन टीमों को देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में भेज जा रहा है ।
जबकि शहरी क्षेत्रों में ज्यादा टीम बढ़ाएं जाने का कई औचित्य नहीं है । जब अस्थाई राजधानी देहरादून में बैठे अधिकारियों से कारण जानने की कोशिश की गई तो उनका कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में प्रतिदिन बच्चों की स्क्रीनिंग ,सरकार द्वारा तय लक्ष्य (70 प्रतिदिन) से कम है। लेकिन देहरादून में बैठे अधिकारियों को पहाड़ की भौगोलिक स्थिति की जानकारी है वहां चार-पांच किलोमीटर पैदल चलने के बाद एक टीम एक दिन में एक ही विद्यालय के बच्चों की स्क्रीनिंग कर सकती है । ऐसे में सवाल उठता है कि क्या स्वास्थ्य सचिव वातानुकूलित कमरे में बैठकर पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ हैं?
सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री के ही विकासखंड जयहरीखाल की RBSK टीम को ही बंद किया जा रहा है । जबकि RBSK टीम द्वारा कितने ही बच्चों की हार्ट सर्जरी, कुपोषण,कटे तालु, कटे हुए होंठ का इलाज़ करवाया गया है और टीम वर्ष 2013 से यहाँ कार्यरत है अब इसी टीम को अन्यत्र भेजा जा रहा है ।जयहरीखाल ब्लाक का कार्यभार अब द्वारीखाल ब्लाक की RBSK टीम को दिया जा रहा है ।भौगोलिक स्थिति के हिसाब से दोनों ही विकास खण्डों के अधिकांश क्षेत्र अत्यधिक दुर्गम हैं ।दोनों ही विकासखंडों में आंगन वाड़ी केन्द्रों की संख्या 517 है।
सालभर के 365 दिनों में से 48 रविवार और एक महीना जून व 15 दिन जनवरी में अवकाश के होते हैं और तीन राष्ट्रीय अवकाश भी होते हैं। इन परिस्थितियों एक टीम दोनों विकासखंडों का लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकेगी यह विचारणीय है । जबकि दोनों विकासखंडों में 75 फीसदी संस्थान अति दुर्गम इलाकों में हैं । जिनमें पैदल व गाड़ी दोनों की ही दूरी बहुत अधिक है । ऐसे में देहरादून में बैठे अधिकारियों की सोच पर सवालिया निशान स्वतः ही लगते हैं कि ये अधिकारी भी तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार के लखनऊ राजधानी की तरह तुगलकी आदेश देने लगे हैं ।