POLITICS

Politics : न खण्डूरी जरुरी न सतपाल जरुरी और विधायक से भी दूरी !

  • शिलापट्टों पर नाम न लिखे जाना बना राजनीतिक द्वन्द का कारण 
  • भाजपा के लिए अब नहीं जरुरी रहे  खंडूरी
  • सतपाल महाराज से भी भाजपा को परहेज़ 
  • इलाके के विधायक मनोज रावत की नाराजगी से बबाल 

राजेन्द्र जोशी 

 देहरादून : वर्ष 1991 से उत्तराखंड में भाजपा का परचम लहरा रहे और कभी पार्टी के लिए खंडूरी हैं जरुरी का नारा देने वाली भाजपा के लिए अब न खंडूरी ही जरुरी रह गए हैं और न कांग्रेस छोड़कर भाजपा में पिछले दो साल पहले शामिल होने वाले सूबे के वर्तमान सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ही जरुरी नज़र आ रहे है जहाँ तक क्षेत्रीय विधायक मनोज रावत का सवाल है वे तो कभी भी भाजपा के लिए जरुरी इस लिए भी नहीं होंगे क्योंकि वे कांग्रेस के विधायक हैं। लेकिन स्वच्छ व शालीन राजनीति के एक नए अध्याय को शुरू करने की यदि भाजपा की मंशा होती तो केदारनाथ जैसे पवित्र स्थान पर होने वाले देश के प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के लिए ये तीनों ही जरुरी होते लेकिन इसे उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा यहाँ भी छोटी सोच की राजनीति के तहत भाजपा ने जहाँ अपने ही भुला दिए वहां विपक्षी विधायक की क्या बिसात जो उनका नाम उन शिलापट्टों पर अंकित होता जिनका अनावरण प्रधानमंत्री ने किया।

एक ज़माने से उत्तराखंड में भाजपा की चुनावी नैया को पार लगाने वाले या यूँ कहें जिनके नाम से भाजपा वर्ष 1991से उत्तराखंड में अपने पांव जमाती रही है आज वही भुवन चन्द्र खंडूरी भाजपा के लिए अछूत हो गए। पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाजपा ने ”खण्डूरी हैं जरुरी” के नारे को आगे कर पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूरी की साख को कैश करते हुए तमाम विपरीत परिस्थितियों में सूबे में चुनाव मैदान में अपने को उतारा लेकिन आज वही जो कल तक भाजपा के लिए जरुरी थे अब वे खंडूरी भाजपा के लिए जरुरी नहीं रहे और उनका नाम तक उन शिलापट्टों पर अंकित नहीं किया गया जिस लोकसभा क्षेत्र से वे सांसद हैं । कम से कम इलाकाई सांसद होने के नाते तो उनका नाम उन शिलापट्टों में लिखा जाना चाहिए था लेकिन नहीं लिखा गया । यह किस राजनीति के तहत नहीं लिखा गया यह तो भाजपा के वर्तमान खेवनहार ही जानें लेकिन गढ़वाल सहित समूचे उत्तराखंड की जनता में इसपर जरुर प्रतिक्रिया हो रही है और शायद भविष्य में भी होगी।

जहाँ तक सतपाल महाराज के नाम को शिलापट्टों पर अंकित न करने की बात है तो यह भी लोगों के गले नहीं उतर रहा है जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ में जिन कार्यों का शिलापट्टों में अनावरण किया उनमें से अधिकाँश कार्य सिंचाई विभाग से सम्बंधित हैं, और वर्तमान में सूबे के सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज हैं। इतना ही नहीं राजनीतिक वरिष्ठता का जहाँ तक सवाल है सतपाल महाराज अब भाजपा के लिए जरुरी नहीं रह गए खण्डूरी से पूर्व गढ़वाल लोकसभा से सांसद रहे हैं और ऋषिकेश -कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाले ही नहीं अपितु ऋषिकेश में इस कार्य के लिए सबसे पहले शिलान्यास करने वाले वे पहले व्यक्ति थे।सूबे में हरीश रावत सरकार के दौरान उनसे मतभिन्नता के बाद उन्होंने सबसे पहले कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन संभाला था वहीँ राजनीतिक पकड़ के अलावा उनका धार्मिक क्षेत्र में भी खासी पकड़ है लिहाज़ा इसी पकड़ के चलते बीते दिन प्रधानमन्त्री ने उनको गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में समय देने की पेशकश की जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया। ऐसे में सतपाल महाराज का नाम शिलापट्टों में अंकित न किये जाने को भी कांग्रेस ने राजनीतिक मुद्दा बनाया है और कहा महाराज का सम्मान भाजपा में नहीं है।

भाजपा ने प्रधानमंत्री के केदारनाथ कार्यक्रम के दौरान इलाके के विधायक को तवज्जो न देने को लेकर खुद विधायक मनोज रावत ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है उन्होंने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया अपने फेसबुक वाल पर देते हुए कहा कि……

”नाम तो भगवान का होता है। आज केदारनाथ में भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी ने कुछ शिलान्यास किया। इन शिलापटों पर , जिस विभाग की योजना थी उसके विभागीय मंत्री के अलावा मेरा नाम भी नही था। जबकि परंपरा के अनुसार जिस विधानसभा में कोई विभागीय कार्यक्रम होता है , उसकी अध्यक्षता स्थानीय विधायक करता है। नाम तो वे गढ़वाल के सांसद ओर भीष्म पितामह हो चुके जनरल खण्डूड़ी का कब का भूल गए हैं। केदारनाथ के प्रधानमंत्री के 2 दौरों के अनुभवों से लगता है कि भाजपा लोकतांत्रिक शिष्ठाचार भूल चुकी है।
इस पर मेरा यही कहना है कि, “नाम तो भगवान का होता है “। वो किसीके लिखने से न तो अमर होता है न मिटाने से मिटता है।
फिर केदारनाथ की धरती का पाखंड अधिक दिन नही टिकता। हमारा तो छोड़िए वो ” सतपाल महाराज जी ” का तो लिख देते। । अधिकांश योजनाएं उनसे संबंधित विभागों की थी। पर यंहा भी “नए नाम बीर मंत्री”, धन सिंह जी ने बाजी मार ली, जिनके बिभाग की किसी योजना का शिलान्यास नही हुआ पर सभी शिलापटों पर केवल उनका ही नाम था। ये जलालत झेलने के बाद, अब महाराज जी कांग्रेस और भा ज पा में सही अंतर को समझ सकते हैं।
खैर पिछले 2 दिन धर्म , संस्कृति और परंपरा की ठेकेदार कहने वाली पार्टी के नेताओं ओर मंत्रियों के साथ हंसते -खेलते अच्छे कटे।
वे मंत्री ओर नेता भी शिलापट को पड़ते हुए अंदर से फुक रहे थे।

विधायक मनोज रावत की इस प्रतिक्रया पर फेसबुक पर खूब चर्चा हो रही है लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार भाजपा के इस कृत्य को किसी भी मायने में लोकतान्त्रिक शिष्टाचार के लायक नहीं माना जा सकता है। लोगों का कहना है कि चलो मान भी लिया जाय कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल के दौरान भाजप के नेताओं के साथ इस तरह का ही व्यवहार किया होगा लेकिन भाजपा से इस तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह कांग्रेस को छोड़ अपने सांसद और मंत्री तक को भूल जायेंगे।
बहरहाल केदारनाथ में प्रधानमन्त्री के बीते दिन हुए कार्यक्रम को लेकर सत्ता के गलियों से लेकर आमजन में तरह-तरह की चर्चाएँ आम हैं जिसे हर कोई लोकतान्त्रिक आचार -व्यवहार के खिलाफ बता रहा है।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »