मानव कंकालों को समेटे रहस्यमयी रूपकुण्ड झील का जल्द खुलेगा राज़
समुद्र तल से 16, 499 फुट ऊंचाई पर स्थित है रहस्य समेटे रूप कुंड झील
1942 में नंदा देवी रिजर्व के रेंजर एचके मधवाल ने दी इन कंकालों की जानकारी
गोपेश्वर : चमोली जिले में त्रिशूल और नंदा घूंटी चोटियों के पास घाटी में रूप कुंड ग्लेशियर झील के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) फिर जुट गया है। लगभग दो मीटर गहरी इस झील के किनारे पड़े मानव अवशेषों के संबंध में अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है।
इसी से इस झील को ‘रहस्यमयी झील’ भी कहा जाता है। रूप कुंड के संबंध में अधिक जानकारी जुटाने के लिए एएसआई ने नए सिरे से शोध कार्य शुरू किया है। रूप कुंड एक विश्व प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टीनेशन भी है। समुद्र तल से 16, 499 फुट ऊंचाई पर स्थित रूप कुंड झील के किनारे पड़े मानव अवशेषों के संबंध में तरह-तरह की किवदंतियां प्रचलित हैं।
ये अवशेष नवीं शताब्दी के माने जाते हैं। मानव कंकालों में अभी तक थोड़ा-थोड़ा मांस लगा हुआ है। इनमें महिलाओं और बच्चों के अवशेष हैं। वर्ष 1942 में नंदा देवी गेम रिजर्व रेंजर एचके मधवाल ने इन कंकालों के संबंध जानकारी दी।
सबसे पहले ब्रिटेन के अधिकारियों ने इन कंकालों के संबंध में आशंका व्यक्त की कि ये जापानियों के आक्रमण का शिकार हुए। लेकिन जांच पाया गया कि यह शव जापानी हमलों के समय से भी बहुत पुराने हैं। इसके बाद हैदराबाद के सेंटर फॉर सेल्युलर एंड माइक्रोबायोलॉजी के शोधकर्ताओं ने यहां से लिए सैंपलों की जांच करके बताया कि 70 फीसदी मानव अवशेष ईरानी हैं और बाकी स्थानीय लोगों के।
यह कल्पना की गई कि ईरानी यहां घूमने आए होंगे और स्थानीय लोगों की मदद ली होगी। दोनों हादसे में मारे गए। स्थानीय लोग बताते हैं कि कन्नौज के राजा जसधवाल, रानी बालमपा और अन्य के साथ यहां नंदा देवी तीर्थ आए थे और बर्फीले तूफान में मारे गए।
यहां मानव कंकालों की खोपड़ी पर चोट के निशान भी मिले हैं। शोधकर्ता इन्हीं पहेलियों को सुलझाने में फिर जुट गए हैं। एएसआई के कार्यालयाध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि रूप कुंड में शोधकार्य शुरू हो गया है।