सांसद बलूनी पंचायत चुनाव में वोट डालने नहीं आए अपने गांव
पहाड़ की जनता बलूनी की दो मुंही चाल से नाराज़
आठ नवंबर को इगास की आड़ में गांव-गांव खेलने की तैयारी!
क्या पत्नी का दिल्ली से वापस पहाड़ तबादला करवाएं बलूनी ?
देवभूमि मीडिया
देहरादून। अनाड़ी शिकारी अपने ही बुने जाल में फंस जाता है। अपने को चतुर सुजान समझ रहे भाजपा के राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी से देवभूमि मीडिया का एक सीधा सवाल यह है कि क्या वो हालिया पंचायत चुनाव में अपने गांव वोट देने आये कि नहीं। अगर आये तो अपनी हर छोटी बड़ी गतिविधि का फोटो छपवाने वाले पंचायत चुनाव में किये गए मतदान का फोटो सार्वजनिक करें। अगर पंचायत चुनाव में अपने गांव वोट देने नहीं आये तो सार्वजनिक रूप से माफी मांगे। इतना ही नहीं एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि जब उनकी नज़र में केवल लोकसभा या विधानसभा चुनाव ही महत्वपूर्ण हैं तो ऐसे में गांव की सरकार चुनने में अपने वोट का प्रयोग करने से आखिर उन्हें क्यों है परहेज , क्यों मतदान करने नहीं आये अपने नगोट ?
देवभूमि मीडिया यहां पूछना चाहता है कि बलूनी ने मेरा गांव मेरा वोट का भावनात्मक नारा देकर अपने को उत्तराखंड का सबसे बड़ा हमदर्द साबित करने की असफल चेष्टा की। हमारे सूत्रों ने खबर दी है कि बलूनी अपने गांव कोट विकास खंड स्थित नगोट गांव जो डांडा नागराजा जैसे प्रसिद्ध मंदिर के पास है, वोट देने नहीं पहुंचे। यहां यह भी बता दें कि बलूनी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कई नामचीन लोगों को मेरा वोट मेरा गांव मुहिम से जोड़ा है और जोड़ने का कार्य कर रहे हैं । अनिल बलूनी ने पंचायत चुनाव में वोट न देकर 1 करोड़ उत्तराखंडियों के साथ विश्वासघात किया है। दिल्ली में बैठकर पहाड़ियों को बेवकूफ बनाने की यह चाल बर्दाश्त नही की जाएगी। जनता सब समझ चुकी है।
बता दें कि बलूनी ने कुछ महीने पहले जिलाधिकारी पौड़ी को पत्र लिख कर अपना वोट अपने गांव में बनाने को कहा था। इस पत्र को सार्वजनिक कर बलूनी ने खूब वाहवाही बटोरी थी। लेकिन जब पंचायत चुनाव में वोट देने की बारी आई तो न तो वे अपने गांव ही आये और न उत्तराखंड ही आए। पहाड़ की जनता बलूनी की इस भूल को काफी गम्भीरता से ले रही है। जिन हस्तियों को इस अभियान से जोड़ा था वो भी अब सन्नाटे में है। कुछ भाजपा नेता भी सोशल मीडिया में बलूनी के इस अभियान के बड़े पैरोकार बने हुए हैं।
मेरा गांव मेरा वोट का भावनात्मक नारा उछाल कर एक्सपोज़ हो चुके उत्तराखंड सांसद अनिल बलूनी ने एक दूसरा पैंतरा भी चला है। बलूनी का कहना है कि प्रवासी लोग पहाड़ की दीवाली मनाने अपने गांव आये। उत्तराखंड में दीवाली के 11 दिन बाद पारम्परिक प्राकृतिक संसाधनों के जरिये इगास पर्व मनाया जाता है। इसी इगास के दिन 8 नवंबर को प्रवासी पहाड़ में आएं। प्रवासियों के आने से पहाड़ में पलायन की समस्या रुकेगी।
लगता है दिल्ली से अपनी राजनीतिक पतंग की डोर हिलाने वाले अनिल बलूनी ने भोले भाले पहाड़ियों को निखत बेवकूफ ही समझ लिया है। पहले बलूनी ने कहा अपने गांव में अपना वोट दर्ज करवाओ। इससे पलायन रुकेगा। उत्तराखंड से लड़े दोनों चुनाव में हार का मुंह देख चुके अनिल बलूनी को यह नहीं पता कि इन नारों से पलायन नहीं रुकेगा। धरातल पर ठोस कार्ययोजना के दम पर ही पलायन को रोका जा सकता है, और उसको रोकने के लिए पहाड़ जैसा हौसलों का होना जरुरी होता है।
लगता है अनिल बलूनी सिर्फ नारों के दम पर ही सब कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। देवभूमि मीडिया का अनिल बलूनी से सीधा सवाल यह है कि अगर उनको पलायन की इतनी ही चिंता है तो सबसे पहले अपनी पत्नी को वापस उत्तराखण्ड में तबादला करवा कर पश्चाताप करें ।
देवभूमि मीडिया के जागरूक पाठकों आपको अनिल बलूनी के चेहरे से नकाब हटा ही देना चाहिए। 2017 में त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद अनिल बलूनी ने सबसे पहले अपनी पत्नी को हल्द्वानी से तबादला करवा कर दिल्ली पोस्ट करवा दिया। पलायन-पलायन की रट लगाने वाले अनिल बलूनी का यही असली चेहरा है। खुद पत्नी समेत दिल्ली में हवा लेता रहूँ। जबकि जनता को अपने गांव भेजने का नारा देकर बेवकूफ बनाता रहूँ।
आपदा के समय भी सांसद अनिल बलूनी ने उत्तराखंड आने की जहमत नहीं उठाई। दिल्ली से ही सरकार के खिलाफ चालें चली जा रही है। राज्य को लूट रहे एक दलाल को इस मुहिम में लगाया हुआ है। इस बीच, इगास पूर्व को लेकर भी भावनाओं से खेलने की कोशिश की जा रही है। मीडिया में अपने इस काम को प्रचारित करने का खेल भी शुरू हो गया है। गौर करने वाली बात यह है कि बलूनी ने मुख्यमन्त्री से नाराज चल रहे दो कैबिनेट मन्त्रियों यशपाल आर्य व अरविंद पांडेय को भी अपने साथ जोड़ लिया। ये दोनों भी गांव में इगास मनाने की बात कर रहे हैं। इसके अलावा संस्कृतिकर्मी प्रीतम भरतवाण, हिमानी शिवपुरी, हेमंत पाण्डेय भी सांसद अनिल बलूनी की इस कथित मुहिम से जुड़ गए हैं।
अपनी सारी राजनीति दिल्ली से चलने वाले अनिल बलूनी का यह पैंतरा भी राजनीतिक नारा साबित होने जा रहा है। पहाड़ के गांवों में सैकड़ों वर्षों से ग्रामीण इगास पर्व को मनाते आ रहे हैं। उत्तराखंड की यह दीवाली बहुत अनूठी होती है। चीड़ की लकड़ी के भेले बना कर जलाए जाते है। पारम्परिक नृत्य व गायन भी होता है।
लेकिन इस बार सांसद अनिल बलूनी ने इगास को राजनीतिक टच दे दिया है। दीपावली के दिन हजारों प्रवासी अपने गांव पहुंचते ही है। गांव में अरसा, रोट व अन्य पकवान बनाये और वितरित किये जाते है। लेकिन इस बार सांसद बलूनी ने इगास का तड़का लगा दिया।
आम जनता अब इस इंतजार में है कि अनिल बलूनी अपनी पत्नी के साथ इगास आने गांव में मनाए। इसके अलावा पलायन के मुद्दे पर दिल्ली से लगातार फरमान जारी करने व चिंता जताने वाले सांसद महोदय अपनी पत्नी का वापस उत्तराखंड ट्रांसफर करवायें। जिस दिन बलूनी जी आप यह कर देंगे वहीं दिन उत्तराखंड में इगास का होगा, बग्वाळ का होगा । लोग पटाखे फोड़ेंगे, भेले जलाएंगे।