कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत के नतीजों ने चौंकाया
मोदी लहर के बीच मनोज की नैया हुई पार
चौथे नम्बर पर रही भाजपा प्रत्याशी शैला
रुद्रप्रयाग । केदारनाथ विधान सभा से कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत की जीत चैंकाने वाली रही। केदारनाथ की जनता ने न केवल बागियों को, बल्कि धन-बल को भी नकार दिया। एक ओर जहां पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर दिखाई दी। ऐसे में मनोज की जीत को कांग्रेसी केदारनाथ में सरकार द्वारा किए गये कार्यों पर जनता की मुहर बता रहे हैं। वहीं ऐसी लहर के बावजूद अगर भाजपा नहीं जीत पाई तो इसके भी कई कारण नजर आ रहे हैं।
मार्च 2016 में प्रदेश में हुए राजनैतिक घटनाक्रम में केदारनाथ की तत्कालीन कांग्रेस विधायक श्रीमती शैलारानी रावत भाजपा में शामिल हो गई थी। इसके बाद राजनैतिक विश्लेषकों ने कांग्रेस में प्रत्याशी का अभाव बताया था। ऐसे में हरीश रावत ने पुराने कांग्रेसियों को नजरअंदाज करते हुए नेता से पत्रकार और फिर पत्रकार से नेता बने मनोज रावत पर दांव खेला। उनके सामने पहली चुनौती अपने को साबित करने की थी। दूसरी चुनौती उनके सामने कांग्रेस को एकजुट करने की भी थी जो कि विकट कार्य था, लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों से पार पाया और किसी भी कांगे्रसी को बागी बनने नहीं दिया। वहीं भाजपा को हराने में कांग्रेस से अधिक अपनों ने ही सहयोग किया।
पूर्व विधायक आशा नौटियाल ने निर्दलीय चुनाव लड़कर भाजपा को हार के कगार पर पहुंचा दिया। कांग्रेस से बागी होने पर जनता की नाराजगी का दंश शैलारानी रावत को झेलना पड़ा। भाजपा की हार के लिए केन्द्रीय नेतृत्व भी काफी हद तक जिम्मेदार रहा। आशा नौटियाल के बागी होने पर उन्हें मनाने कोई भी शीर्ष नेतृत्व नहीं पहुंचा और आशा नौटियाल के चुनाव लड़ने पर अधिसंख्य भाजपा कार्यकर्ता उनके साथ हो लिए जिनके बल पर उन्होंने लगभग 11 हजार वोट समेट कर भाजपा को चैथे नम्बर पर धकेल दिया। वहीं निर्दलीय चुनाव लड़े कुलदीप ने 12 हजार वोट लाकर सबको कौन चौंका दिया।
मतगणना के हर चक्र में वे लगातार टक्कर देते दिखे, मगर आखिर में जनता ने उनके धनबल को नकार दिया। कुछ राजनैतिक विश्लेषक इस सीट पर दो निर्दलियों ंके बीच मुकाबला मान रहे थे, जो कि पूर्ण रूप से गलत निकला। इस सीट पर पहले से ही चतुष्कोणीय मुकाबला देखा जा रहा था, जो क अन्त तक रहा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जहां कांग्रेस अपने परम्परागत वोट को बचाने में सफल रही, वहीं भाजपा के परम्परागत वोट आशा व शैला में बंट गये। जो कि हार का प्रमुख कारण रहा। इस चुनाव ने यह तो सि़द्ध कर दिया कि केदारनाथ की जनता को यदि विकल्प मिला तो वह निर्णय लेने में पीछे नहीं रहती।