चाहे आम हो या ख़ास छोटा हो या बड़ा आज से ही नहीं बल्कि उनके कालेज के युवा दिनो से लोग उन्हें प्यार से भगत दा बुलाते हैं । उत्तराखंड में जनसंघ और भाजपा को खड़ा करने वाले भगत सिंह कोश्यारी चाहे कुमाऊँ हो या गढ़वाल हर जगह भगत दा नाम से आम जन के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं ।
१७ जून १९४२ को हिमालय कि तलहटी पर सरयू किनारे बसे पालनधूरा चेटा बगड ( कपकोट) में श्री गोपाल सिंह एवं मोतिमा देवी के घर जन्मे भगत सिंह कोश्यारी का वास्तविक नाम हयात सिंह पड़ा लेकिन इसी नाम के चचेरे भाई होने और उन्मे देश सेवा का जज़्बा भरने के लिए पिता ने नाम भगत सिंह कर दिया ८ बहनो और तीन भाई मिलाकर भगत दा लोग कुल ११ भाई बहन थे ।सीमांत क्षेत्र और आभावों से भरे ग्रामीण पहाड़ी ग्राम से पैदल निकलकर भगत दा ने अपनी उच्च शिक्षा आगरा विवि के अलमोडा केम्पस से प्राप्त की वह वर्ष १९६२-६३ में एम.ए अंग्रेज़ी साहित्य में प्रवेश लेने वाले एकमात्र छात्र थे । इसी वर्ष वह महाविद्यालय में छात्र संघ के महासचिव निर्वाचित हुए ।
अलमोडा में युवावस्था से ही उन्होंने संघ कि शाखा में जाना शुरू किया उनके तब के रूम पार्ट्नर और सीनियर सेवा निव्रत प्राचार्य खड़क सिंह बिष्ट आज भी उन्हें भगत दा बुलाते हैं । १९६४-६६ तक कोश्यारी इंटर कालेज राजा का रामपुर एटा ( उ.प्र) में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता पद पर रहे । देश प्रेम कि भावना और संघ संगठन को मजबूत करने के उद्देश्य से वरिष्ठ प्रचारक भावराव जी देशमुख कि प्रेरणा से वह चीन से लगे सीमांत जनपद पिथोरागड़ आ गए यहाँ से उन्होंने कुमाऊँ अंचल में सरस्वती शिशु मंदिर , विध्या भारती एवं विवेकानंद स्कूल कि स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया साथ साथ वह प्राचार्य के साथ संघ का काम एवं पर्वत पीयूष नामक साप्ताहिक अख़बार का संचालन करते रहे ।
१९७७ में आपातकाल में कोश्यारी को मीसा क़ानून में दोषी क़रार देते हुए १९ महीने कि सज़ा हुई जो उन्होंने अलमोडा और फतेहगड़ जेल में बिताए ।बाद में भगत दा को संघ ने प्रथक उत्तराखंड राज्य निर्माणहेतु कार्य में लगाया और उत्तरांचल संघर्ष समिति का महासचिव बनाया गया। आरआरएस कि योजना से उन्हें भाजपा गठन के साथ ही राजनीतिक कार्यों में लगाया गया । भगत दा लम्बे समय तक स्वर्गीय सोबन सिंह जीना और स्वर्गीय गोविंद सिंह बिष्ट के मार्गदर्शन में संगठन को मजबूत करने के लिए पहाड़ के गाँवो कि ख़ाक छानते रहे । वह बताते हैं कांग्रेस के गड़ रहे सलाम पट्टी में एकबार उनपर पत्थर तक बरसाए गए ।
शांत सरल मिलनसार एवं ईमानदार स्वाभाव के भगत दा को भाजपा ने अलमोडा से १९८९ में लोकसभा का चुनाव लड़ाया और वह ३८,००० वोट लेकर आए इस चुनाव में कांग्रेस के हरीश रावत विजयी हुए लेकिन यूकेडी के काशी सिंह ऐरी महज़ छोटे अंतराल से चुनाव हारे और यूकेडी दूसरी शक्ति के रूप में स्थापित नहीं हो सकी जिसको पहाड़ कि राजनीति में बड़ा टर्निंग पोईंट माना जाता है । इसके बाद १९९७ में पत्रकार के कोटे से भगत दा यूपी विधानपरिषद के सदस्य मनोनीत हुए और उत्तराखंड छाया प्रदेश के अध्यक्ष भी बने ।
वर्ष २००० में नवगठित उत्तरांचल राज्य कि सरकार में वह संसदीय कार्य , ऊर्जा एवं सिंचाई मंत्री बनाए गए और फिर ठीक चुनाव से ५ महीने पहले नित्यानंद स्वामी को हटाकर उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। २००२ में एन डी तिवारी सरकार के सामने वह नेता प्रतिपक्ष बनाए गए । २००४ से २००७ तक वह प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए और उनके नेतृत्व में भाजपा जीतकर आयी लेकिन 28 से अधिक विधायकों के समर्थन मूल कार्यकर्ताओं के बुलंद सहयोग के बावजूद देहरादून में पार्टी पर्यवेक्षक गोपीनाथ मूँडे और रविशंकर प्रसाद ने केंद्रीय नेतृत्व के आदेश पर जनरल खंडूरी को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव पारित किया।
२००८-२०१३ तक कोश्यारी राज्यसभा के सांसद रहे और ११ अशोक रोड दिल्ली स्थित अपने बंगले का आधा भाग पार्टी संगठन को कार्यलय हेतु दे दिया। २०१४ में उन्हें नैनीताल ऊधम सिंह नगर लोकसभा से उम्मीदवार बनाया गया और वह रेकॉर्ड २.८५ लाख मतों से चुनाव जीते । भगत दा को उत्तराखंड को में हर व्यक्ति के दुःख सुख में शामिल होने वाले नेता के रूप में जाना जाता है । ३१ अगस्त सूचना के दिन भी वह दिल्ली से हल्द्वानी चलकर अपने मित्र पूर्व एमएलसी नवीन तिवारी के युवा पुत्र के निधन में शोक प्रकट करने आए हुए थे।
(ध्रुव रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और लम्बे समय से भगत दा के क़रीबी होने के साथ उनका मीडिया प्रबंधन का कार्य देख रहे हैं )