महिलाओं को मिलेगा तीसरे बच्चे के जन्म पर भी मातृत्व अवकाश: हार्इ कोर्ट
नैनीताल : यह खबर उन कामकाजी महिलाओं के लिए है जिन्हे तीसरे बच्चे के पैदा होने के दौरान मातृत्व अवकाश की जरुरत हैं क्योंकि अब तक राज्य सरकार केवल दो बच्चों के पैदा होने के दौरान ही मातृत्व अवकाश देती आयी है और तीसरे बच्चे के पैदा होने के दौरान मातृत्व अवकाश का प्रावधान ही सरकार के नियमों में वर्णित नहीं था जिसके कारण ऐसी महिलायें मातृत्व अवकाश से वंचित रह जाती रही थी और वे मेडिकल अथवा आकस्मिक छुट्टी लेकर ही बच्चे की देखभाल किया करती थी ।
मामले में नैनीताल हार्इ कोर्ट ने तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश नहीं देने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। हार्इ कोर्ट ने साफ किया कि है कि यह नियम मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा-27 के प्रावधान के खिलाफ है। साथ ही यह हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 42 की भावना के विपरीत है।
गौरतलब हो कि उत्तराखंड राज्य में राज्य की सरकारी, अर्द्ध सरकारी और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत हजारों महिला कामगारों को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व का लाभ नहीं दिया जाता है। इस मामले पर सुनवार्इ करते हुए वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की एकलपीठ ने महिला को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश नहीं देने वाले नियम को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है।
मामला राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी की स्टाफ नर्स उर्मिला मैसी का है जिन्होंने साल 2015 में पांच महीने के मातृत्व अवकाश के लिए विभाग को आवेदन किया था। जिसे विभाग ने ये कहते हुए निरस्त कर दिया कि तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश की अनुमति देने वाला नियम है ही नहीं। इसके बाद उर्मिला ने याचिका के माध्यम से उत्तर प्रदेश मौलिक नियम 153 को चुनौती दी। इस नियम को उत्तराखंड सरकार ने भी स्वीकार किया। इसी नियम के तहत दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ से वंचित किया है।
अधिवक्ता सनप्रीत आजमानी का कहना है कि इस आदेश से राज्य की हजारों महिलाएं लाभान्वित होंगी। साथ ही तीसरे बच्चे वाली महिलाएं भी मातृत्व का लाभ ले सकेंगी। इधर, महिला संगठनों ने कोर्ट के इस आदेश का स्वागत किया है। महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत विमर्श संस्था की कंचन भंडारी ने अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि कौन कितने बच्चे पैदा करता है, यह उसका व्यक्तिगत अधिकार है। अन्य महिला संगठनों ने भी कोर्ट के आदेश को ऐतिहासिक बताया है।