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प्रचण्ड जनादेश का मतलब लापरवाही कदापि नहीं !

  • जहर पीकर जान देने की घटना सिस्टम पर उठा गयी कई सवाल !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

प्रदेश सरकार के बहुचर्चित जनता दरबार में महीनों से फरियाद लेकर घूम रहे दुखी व्यवसाई की जहर पीकर जान देने की घटना सरकार के सिस्टम पर सवाल खड़े करती है। राज्य का एक संपन्न व्यवसाई जो ना आर्थिक सहायता के लिए भटक रहा था और ना किसी मुआवजे के लिये। चर्चा है कि उसका सरकार पर ही लाखों रूपया बकाया था। मृतक पाण्डे सरकारी सिस्टम से त्रस्त होकर निरंतर सरकार से संवाद कर रहा था। वहीँ हर जिम्मेदार चौखट पर दस्तक देने वाले इस हताश और टूट चुके इंसान ने मौत को गले लगाया।

प्रचंड बहुमत से चुनी गई डबल इंजन की सरकार में कमजोर सिस्टम, लचर व्यवस्था और नौकरशाही की मनमानी ने हल्द्वानी निवासी व्यवसाई प्रकाश पांडे जिनका सरकारी विभागों में लाखों रुपया फंसा है, सरकारों की मिन्नत करते हुए जिन्होंने अंत में  मौत को गले लगाया।  प्रकाश पांडे की यह सिस्टम के प्रति उदासीनता ही थी कि उन्होंने मंत्री से गुहार लगाने, चेतावनी देने के बजाय खुद जहर का सेवन करने के बाद सूचना दी। लेकिन एक बात और विडियो में सामने आ रही है कि जब प्रकाश पांडे ने जहर खाने की जानकारी जनता दर्शन में बैठे मंत्री और भाजपा नेताओं को दी उन्होंने उसका मजाक बनाते हुए उसे कार्यालय से बाहर करने का फरमान सुना दिया और कुछ लोग उसे भाजपा कार्यालय से बाहर करते भी विडियो में साफ़ दिखाई दे रहे हैं। इससे यह साफ़ है कि भाजपा कार्यालय में बैठे मंत्री से लेकर पदाधिकारी तक कितने असंवेदनशील हैं जो जिम्मेदारी से भाग रहे हैं।

प्रकाश पांडे के जितने भी वीडियो वायरल हो रहे हैं वे बताते हैं उत्तराखंड सरकार की नौकरशाही किस तरह भ्रष्टाचार के दलदल में धंसी हुई है । वह सालों से अपना, खुद की मेहनत का पैसा मांगने के लिए दर दर भटकता रहा। जीरो टॉलरेंस मुख्यमंत्री क्या कदम उठाएंगे, ये समय बतायेगा।  दुःखद है कि प्रकाश पांडे के जहर खाने के बाद भी सरकार नहीं जागी और ना उसने जिम्मेदार लोगों पर कारवाई करने की बात की बल्कि जिस समय प्रकाश पांडे जहर खाने की सूचना मंत्री को दे रहे थे तो मंत्री के इर्द-गिर्द बैठे हुए जिम्मेदार लोग हंसते से उस गरीब का उपहास उड़ाने की मुद्रा में थे ।

पुनः वीडियो को देखें……

 

प्रकाश पांडे की मौत ने सिस्टम पर सवाल छोड़ा है कि आखिर भ्रष्टाचार की जड़ें राज्य में कितनी मजबूत हो चुकी हैं। अंतिम वीडियो में प्रकाश पांडे ने कहा कि उन्होंने अपनी सारी पीड़ा तीन चार महीने से जनता दरबार वाले ओएसडी उर्बा दत्त भट्ट को बताई। निरंतर उनके संपर्क में रहा, सारी जानकारी के बाद भी  उर्बा भट्ट ने संबंधित जिम्मेदार अधिकारियों को फटकारने के बजाय  प्रकाश पांडे को बीपीएल कार्ड लाकर 40- 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देने का गैर जिम्मेदार और गैर कानूनी सुझाव दिया। इस घटना का दुःखद पहलू यह भी है कि सरकार ऐसे संवेदनहीन और कम जानकारी के व्यक्तियों के भरोसे जनतादरबार तो सजा देती है। लेकिन क्या उत्तराखंड सरकार में बैठे अन्य जिम्मेदार व्यक्ति अथवा पार्टी के किसी पढ़े लिखे जानकार व्यक्ति  को यह जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती थी।

प्रकाश पांडे खुद अपने वीडियो में कर रहे हैं  कि वह जनता दरबार देखने वाले ओएसडी उर्बा दत्त भट्ट को  महीनों से अपनी पीड़ा बता रहे हैं, किन्तु उसको नॉलेज की कमी है। फरियादी की ये टिप्पणी सरकार पर अंगुली खड़ी करती है कि योग्य कर्मचारी क्यों नहीं इन कामों को देखते हैं। उर्बा दत्त जैसे सरकार के ओएसडी पीआरओ जितनी मेहनत अपनी नाम छपी कतरनों को फेसबुक व्हाट्सअप पर पोस्ट करने में रुचि लेने तक ही सीमित नज़र आते हैं जबकि वे यदि किसी एक लाचार फरियादी की फ़रियाद को सरकार तक फॉलोअप करते तो ये नौबत नहीं आती।

आखिर इतने गैरजिम्मेदार सिस्टम के साथ भाजपा कार्यालय में जनता दरबार लगाने की आवश्यकता ही क्या पड़ गई। वैसे भी गाहे-बगाहे चर्चा उठने लग गई थी कि भाजपा कार्यालय में पार्टी के कार्यकर्ता ही अपने प्रार्थना पत्र देने में रुचि नहीं ले रहे हैं। तो बाहरी व्यक्तियों को कहाँ से जुटाया जाय। जबकि भाजपा कार्यालय का जनता दरबार आमजन की पीड़ाओं का समाधान नहीं कर पा रहा है और आखिर कब तक मुख्यमंत्री की जीरो टॉलरेंस और ईमानदार छवि के नाते भाजपा सरकार अपने सिस्टम के छेद बंद कर पाएगी। और कितने दिन जनता इस प्रबल जनादेश के सिंहासन पर बैठी सरकार की अच्छी नियत के अच्छे कामों और अच्छी घोषणाओं को साकार रुप से देख पाएंगे अब पार्टी के भीतर भी लाल बत्ती ना पाने वाले लोग , मंत्री पद की उम्मीदों पर बैठे विधायक भी अपना संयम तोड़ सार्वजनिक निंदा पर उतर रहे हैं। जनता दरबार में प्रभावशाली सरकारी अधिकारी या अनुभवी राजनेता या किसी तेजतर्रार मंत्री की जिम्मेदारी ना होना इसकी असफलता की प्रमुख वजह है क्योंकि अभी तक सभी मंत्री अपने निर्धारित दिवस पर कार्यालय में आकर सरकार और संगठन के आदेश बजाने भर की रस्म अदायगी कर मात्र जिम्मेदारी ही निभाते रहे हैं।

प्रकाश पाण्डे की मौत त्रिवेन्द्र सरकार के सामने अनगिनत सवाल छोड़ गई कि सरकार काबिल टीम, लायक कर्मचारी, संवेदनशील व्यवस्था और धमक से चलती है। प्रचण्ड जनादेश का मतलब लापरवाह होना कदापि नहीं है।

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