- सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने दिया महत्वपूर्ण फैसला
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने फैसला देते हुए कहा है कि जो व्यक्ति कब्जाई हुई संपत्ति को साझा करते हुए उस पर रह रहा है वह पंचायत सदस्य के लिए अयोग्य माना जाना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसले में दी गई व्यवस्था को पलटते हुए दिया है। सागर पांडुरंग धुंडारे के मामले में दिए गए निर्णय को पलटते हुए दिया। मामले में सागर पांडुरंग धुंडारे महाराष्ट्र के जनाबाई पंचायत के सदस्य के रूप में चुनी गई थीं लेकिन उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। फैसले में कहा गया कहा गया कि पंचायत सदस्य के ससुर और पति ने 1981 से सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है और वह उनके साथ रहती है। हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने पांडुरंग फैसले का हवाला दिया और कहा वह प्रथम अतिक्रमणकार्ता नहीं है।
पीठ ने कहा कि यदि सदस्य अतिक्रमित भूमि पर बना हुआ है तो यह हितों का टकराव है। यदि हम यह कहें कि यह सिर्फ उस पर लागू होगा जिसने पहले अतिक्रमण किया है तो यह मूर्खता होगी। नवंबर 2017 में पांडुरंग मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा था कि सरकारी या सार्वजिनक भूमि पर मूल अतिक्रमणकर्ता ही अयोग्यता के दायरे में आएगा। उसके परिजन या परिवार के अन्य सदस्य इसके दायरे में नहीं आएंगे। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र विलेज पंचायत एक्ट, 1958 की धारा 14 (1) (जे 3) में लिखा गया शब्द ‘व्यक्ति’ को तंग नजरिये से व्याख्यायित नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इसका नतीजा यह होगा कि अतिक्रमण का बुनियादी मुद्दा बेमतलब हो जाएगा। विधायिका का इरादा जैसा कि हम देख पा रहे हैं यह है कि अनधिकृत कब्जे को बहुत सख्ती से देखा जाए। कोर्ट ने कहा कि यह पंचायत ही है जो सरकारी भूमि से अनधिकृत कब्जे हटवाती है। यदि इसका सदस्य ही कब्जाई हुई भूमि पर रहेगा तो यह सीधे-सीधे हितों का टकराव होगा।
पीठ ने यदि यह व्याख्या की जाए कि प्रथम अतिक्रमणकर्ता या अतिक्रमण करने वाला ही अयोग्यता के दायरे में आएगा तो यह बेवकूफी होगी। पीठ ने कहा कि उद्देश्यपरक व्याख्या हमें मजबूर करती है कि कब्जाई भूमि को साझा करने वाला व्यक्ति अयोग्यता के प्रावधान से कवर होगा। यह व्याख्या ही इस प्रावधान की उचित व्याख्या है। इस प्रकार हमारी राय में पांडुरंग मामले में दी गई व्यवस्था सही कानून की स्थापना नहीं करती और इसलिए इसे निरस्त किया जाता है।