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जानिए वर्ष 1977 में उखीमठ से गौरीकुंड तक वाहन से क्यों ले जायी गई थी बाबा केदार की उत्सव डोली

ओंकारेश्वर मंदिर से बाबा केदार की उत्‍सव डोली वाहन से पहुंची गौरी मंदिर

29 अप्रैल को खुलेंगे केदारनाथ धाम के कपाट 

वर्ष 1977 में भी पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में वाहन से गई थी डोली 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून । पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली रविवार तड़के सादगीपूर्ण रूप से गौरीकुंड के लिए प्रस्थान कर गई। धाम के मुख्य पुजारी व देवस्थानम बोर्ड के दो अधिकारियों के साथ उत्‍सव डोली गौरीकुंड के लिए निकली। इससे पूर्व चल विग्रह डोली को ओंकारेश्वर मन्दिर की तीन परिक्रमा के बाद वाहन से केदार धाम के लिए रवाना किया गया। इस अवसर पर कोरोना संक्रमण को देखते हुए और भक्तों की कोई भीड़ ना लगे उत्सव डोली को तय समय से पहले ही गौरीकुंड रवाना किया गया।
उल्लेखनीय है कि आज से 43 वर्ष पूर्व भी एक बार ऊखीमठ से बाबा केदार की डोली को वाहन से गौरीकुंड ले लिए रवाना किया गया था। यह बात वर्ष 1977 की थी जब बाबा केदार की डोली को ऊखीमठ से गुप्तकाशी तक ले जाया गया था। मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 1977 से पहले तक पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में अश्विनी मास के नवरात्र की अष्टमी को चंडिका पूजन के दौरान मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही बलि दी जाती थी। उस दौरान बद्री -केदार के विधायक  प्रताप सिंह पुष्पवाण ने बलि प्रथा का विरोध करते हुए धरना दिया था। जिसके चलते डोली को वाहन से ले जाने का फैसला किया गया था। लेकिन विरोध के चलते डोली को गुप्तकाशी में ही उतारना पड़ा था। इसके बाद केदारधाम के कपाट खुलने के समय में विलम्ब को देखते हुए उत्सव डोली को सोनप्रयाग तक वाहन से ले जाया गया था।
गौरतलब हो कि अब डोली 28 अप्रैल को केदारनाथ धाम में पहुंचेगी जहां 29 अप्रैल की प्रातः छह बजकर दस मिनट पर बाबा केदार मंदिर के कपाट पूजा अर्चना के लिय खोल दिए जाएंगे। उत्सव डोली के विदा होने से पूर्व शनिवार देर शाम ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदारनाथ के क्षेत्रपाल और बाबा भैरवनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की गई थी। डोली के साथ सिर्फ 16 लोग ही धाम रवाना हुए। जबकि जिला प्रशासन की अनुमति के अनुसार कपाट खोलने की पूजा प्रक्रिया में भी इतने ही लोग रहेंगे।

वीडियो साभार पहाड़ी कनेक्ट 

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