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जलवायु परिवर्तन पर केन्‍द्रीय बैंकों की कथनी और करनी में जानिए कितना है फ़र्क

शोध एवं अभियानकर्ता समूह‘पॉजिटिव मनी’ द्वारा आज प्रकाशित रिपोर्ट का खुलासा

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
 G-20 देशों के केंद्रीय बैंकों में है उच्‍च प्रभावशीलता वाली जलवायु सम्बन्धी नीतियों का गहरा अभाव, कहना है इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट का……
The responsible people of the top financial and monetary units of the world’s largest economies, who have given long speeches on the issue of climate change, are not following their own words. This has been revealed in the report published today by the research and campaigner group ‘Positive Money’.
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लम्‍बे-लम्‍बे भाषण देने वाले दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के शीर्ष वित्तीय और मौद्रिक इकाइयों के जिम्मेदार लोग अपनी ही कही बात पर अमल नहीं कर रहे हैं। शोध एवं अभियानकर्ता समूहपॉजिटिव मनी द्वारा आज प्रकाशित रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
दुनिया के 24 अग्रणी शोध संस्थानों और एनजीओ की सहभागिता वाले ‘पॉजिटिव मनी’ के ‘ग्रीन सेंट्रल बैंकिंग स्‍कोरकार्ड’ में जी20 देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा शोध एवं एडवोकेसी, मौद्रिक नीति, वित्तीय नीति तथा मिसाल पेश करने वाले अन्य रास्तों के आधार पर की गयी तुलनात्‍मक प्रगति का आकलन किया गया है। साथ ही यह भी जाहिर किया गया है कि नीतियां बनाने वाले लोग पर्यावरण सम्बन्धी आपात स्थिति से निपटने के लिये और क्‍या-क्‍या कदम उठा सकते थे।
इस अध्ययन के परिणाम यह दिखाते हैं कि जहां 20 में से 14 केंद्रीय बैंकों ने शोध और एडवोकेसी प्रयासों के मामले में पूरे अंक हासिल किये हैं, मगर जमीन पर प्रयास करने के मामले में वे मीलों पीछे हैं। समग्र स्‍कोरकार्ड प्रदूषण मुक्त अर्थव्यवस्था के अनुरूप मौद्रिक और वित्तीय नीतियों को लागू करने के मामले में उनकी दयनीय स्थिति की तरफ इशारा करता है।
130 में से 50 अंक लेकर चीन इस साल के स्‍कोरकार्ड में अव्वल रहा है, मगर स्‍कोरकार्ड पर यह भी ‘सी’ श्रेणी में ही नजर आता है। इससे यह तथ्‍य सामने आता है कि जहां चीन के वित्तीय और मौद्रिक क्षेत्र के जिम्मेदार लोगों ने प्रदूषण मुक्‍त गतिविधियों के लिये कर्ज देने में बढ़ोतरी की दिशा में कदम बढ़ाये हैं, मगर शीर्ष रैंकिंग वाले देशों के नीति निर्धारकों को अपनी-अपनी सरकार द्वारा जलवायु संरक्षण के लिये व्यक्त संकल्पों के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिये बहुत लम्‍बा सफर तय करना होगा।
इस रिपोर्ट में उन उच्‍च प्रभाव वाली नीतियों के अभाव का खुलासा किया गया है जिससे जी20 देशों में जीवाश्‍म ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं को वित्‍तीय सहयोग देने में अर्थपूर्ण कमी लायी जा सकती है। ऐसे मामलों में जहां केन्‍द्रीय बैंकों ने अपनी नीतियों में जलवायु संरक्षण के पहलू को भी जोड़ा है वहीं, जीवाश्‍म ईंधन पर आधारित और पारिस्थितिकी के लिये नुकसानदेह गतिविधियों को वित्‍तीय सहयोग में कमी लाने के लिये महत्‍वपूर्ण कदम उठाने के बजाय वित्‍तीय खुलासों, दबाव परीक्षणों और हरित सम्पत्तियों के लिये वित्तपोषण को प्रोत्‍साहन पर ध्‍यान दिया गया है।
रिपोर्ट के लेखकों ने नीति निर्धारकों का आह्वान किया है कि वे अपने द्वारा खरीदी जाने वाली सम्‍पत्तियों से गैरसतत गतिविधियों को हटाकर और उसे वित्तपोषण के समानांतर नुकसान के तौर पर स्‍वीकार करके, उच्‍च कार्बन उत्‍सर्जन वाली परियोजनाओं को वित्‍तपोषण पर दण्‍ड देने के लिये वित्‍तीय नियमन तैयार करके, जिसमें जीवाश्‍म ईंधन से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश से उत्‍पन्‍न होने वाले जोखिमों को और बेहतर तरीके से जाहिर करने के लिये उच्‍च पूंजी आवश्‍यकता हो, के माध्‍यम  से नीति सम्‍बन्‍धी कमियों को फौरन दूर करें।
केन्‍द्रीय बैंकों के लिये कीमतों को बरकरार रखने, सरकारी नीति के समर्थन और वित्‍तीय स्थिरता के लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिये जरूरी पूर्व शर्त होने के मद्देनजर इस रिपोर्ट में यह आग्रह भी किया गया है कि कोविड-19 महामारी ने इस जरूरत को और भी शिद्दत से उभारा है कि सततता (सस्‍टेनेबिलिटी) को प्रोत्‍साहित करने के लिये केन्‍द्रीय बैंकों को और भी मुस्‍तैदी भरी तथा समाधान देने वाली भूमिका निभानी ही पड़ेगी।
पॉजिटिव मनी की यह रिपोर्ट रेनफॉरेस्‍ट एक्‍शन नेटवर्क, बैंकट्रैक तथा अन्‍य एनजीओ द्वारा पिछले हफ्ते जारी ‘बैंकिंग ऑन क्‍लाइमेट चेंज’ रिपोर्ट के बाद आयी है। इन संगठनों की रिपोर्ट में हुए खुलासे के मुताबिक दुनिया के 60 सबसे बड़े निजी बैंकों ने वर्ष 2015 में पैरिस समझौते के बाद से जीवाश्‍म ईंधन आधारित परियोजनाओं के लिये 3.8 ट्रिलियन डॉलर जारी किये हैं। वर्ष 2020 में जीवाश्‍म ईंधन विस्‍तार सम्‍बन्‍धी परियोजनाओं में 10 प्रतिशत का इजाफा भी हुआ है।
यह रिपोर्ट ऐसे वक्‍त आयी है जब जी20 देशों के वित्‍त मंत्री और केन्‍द्रीय बैंकर्स आगामी 7-8 अप्रैल को एक बैठक करने जा रहे हैं, जिसमें जलवायु तथा पर्यावरण सम्‍बन्‍धी जोखिमों समेत विभिन्‍न वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये नयी कार्ययोजना पर विचार-विमश होगा।
पॉजिटिव मनी के अर्थशास्‍त्री और इस रिपोर्ट के मुख्‍य लेखक डेविड बारमेस ने कहा, “जहां यह सकारात्‍मक बात है कि केन्‍द्रीय बैंकर अपने भाषणों और अनुसंधानों में जलवायु को ज्‍यादा प्रमुखता देते हुए बात कर रहे हैं, वहीं अफसोस की बात यह है कि अपने इन शब्‍दों को अमली जामा पहनाने में वे बुरी तरह नाकाम साबित हुए हैं।’’
“वर्ष 2008 में आयी मंदी ने यह जाहिर कर दिया कि व्‍यवस्थित जोखिम में वित्‍तीय बाजारों को आत्‍म-नियमन के लिये अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, बल्कि जलवायु सम्‍बन्‍धी संकट से मुकाबला करने में नाकाम होकर हम उसी गलती को पहले से ज्‍यादा बड़े पैमाने पर दोहरा रहे हैं। वैश्विक वित्‍तपोषण से तब तक अस्थिरता और पर्यावरणीय आपात स्थिति बनती रहेगी जब तक केन्‍द्रीय बैंक और निगरानीकर्ता जिम्‍मेदार लोग वित्‍तीय प्रणाली को तमाम इंसानों और धरती की बेहतर तरीके से सेवा करने लायक आकार नहीं देते।
“वित्‍तीय और मौद्रिक स्थिरता बनाये रखने के लिये पर्यावरणीय स्‍थायित्‍व का होना पहली शर्त है। अगर केन्‍द्रीय बैंकों को अपने मुख्‍य उद्देश्‍यों को पूरा करते हुए जलवायु सम्‍बन्‍धी अपने लक्ष्‍यों की पूर्ति के सरकार के लक्ष्‍यों की प्राप्ति में सहयोग करना है तो उन्‍हें खराब वित्‍तीय प्रवाहों में कमी लाने के लिये फौरन कदम उठाने होंगे।”

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