राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित लोकगायिका कबूतरी देवी का निधन

- लोकसंगीत का एक अध्याय हुआ समाप्त
पिथौरागढ़ : पर्वतीय लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने वाली और उत्तराखंड की तीजनबाई ने नाम से विख्यात लोकगायिका कबूतरी देवी का शनिवार को पिथौरागढ़ जिला चिकित्सालय में बीमारी के चलते निधन हो गया। वे पिथौड़ागढ़ के क्वीतड़ ब्लॉक के मूनाकोट की रहने वाली थीं।लोक गायिका कबूतरी देवी के निधन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सहित लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व संस्कृतिप्रेमियों ने गहरा दुःख जताया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यहाँ जारी एक सन्देश में कबूतरी देवी के निधन पर शोक जताते हुए दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की है। वहीं उनके देहांत के बाद शनिवार को ही लोक गायिका कबूतरी देवी का सरयू ओर रामगंगा नदी के संगम स्थल रामेश्वर घाट में हुआ अंतिम संस्कार क्र दिया गया। उनके पार्थिव शरीर को उनकी बेटी ने उन्हें मुखाग्नि दी।उनकी शव यात्रा में इलाके के कई संस्कृति कर्मी रंग कर्मी ओर गणमान्य लोग शामिल हुए। सभी ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदार्इ दी।
पिथौरागढ़ जिले के क्वीतड़ गांव की रहने वाली कबूतरी देवी प्रदेश की जानी मानी लोक गायिका थीं। गायन की कई विधाओं में माहिर लोक गायिका राज्य की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन देश भर में कर चुकी हैं।
70 वर्ष की हो चुकी कबूतरी देवी का स्वास्थ शुक्रवार को अचानक खराब हो गया। परिजन उन्हें जिला चिकित्सालय लाए। वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एसएस कुंवर ने उनके स्वास्थ की जांच की। जांच के बाद उन्होंने बताया कि कबूतरी देवी का ब्लड प्रेशर कम है और उनका हॉर्ट कमजोर हो रहा है।तमाम प्रयासों के बाद भी डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके। कबूतरी देवी ने पहली बार उत्तराखंड के लोकगीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रचारित किया था।
कबूतरी देवी उस वक्त आकाशवाणी के लिए गाती थी जब कोई महिला आकाशवाणी के लिए नहीं गाती थीं। 70 के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोक गीतों को नई पहचान दिलाई थी। कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए। जीवन के 20 साल गरीबी में बिताने के बाद 2002 से उनकी प्रतिभा को सम्मान मिलना शुरू हुआ। उन्हें कई राष्ट्रूपति पुरूस्कार सहित कई और भी सम्मान मिले।