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जरा समझिये : सरकार के खिलाफ नहीं, कुछ विधायकों के खिलाफ है आक्रोश !

विभिन्न दलों की यात्राएं कर अपने समर्थकों के साथ भाजपा तक पहुंचे ऐसे नेताओं के कारण ही हो रही संगठन और सरकार की छिछलेदारी  

राजेन्द्र जोशी 
भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता हो या राज्य की जनता दोनों ही त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल से बेहद संतुष्ट नजर आ रही है। लेकिन रह रह कर सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर होने की बात सार्वजनिक होती आ रही है। हम लंबे समय से देख रहे है कि कुछ विधायक सरकार के प्रति नाराजगी दिखाते रहे हैं कि उनके कार्य नहीं हो रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हर विधानसभा की स्वयं समीक्षा कर रहे हैं और विकास कार्यों को बढ़ावा दे रहे हैं। यही नहीं अधिकारियों को भी साफ निर्देश है कि जनप्रतिनिधि की बात को महत्व दिया जाना आवश्यक है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कुछ विधायक जो अपनी विधानसभाओं को लेकर मुखर हो रहे हैं उनकी ग्राउंड रिपोर्ट क्या है?
हमने देखा कि पिछले कुछ दिनों में एक बार फिर से यह प्रचारित करने की कोशिश की गई कि उत्तराखंड की जनता में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आक्रोश बना हुआ है, जबकि असलियत में ऐसा कुछ था ही नहीं और है भी नहीं। हां, जनता में आक्रोश तो है मगर सीएम के खिलाफ नहीं, बल्कि कई स्थानीय विधायकों के खिलाफ। खासतौर पर उन विधायकों के खिलाफ जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे और दोबारा चुनाव जीतकर इस सरकार में भी अच्छे पदों पर बैठे हैं। इन विधायकों ने भाजपा कार्यकर्ताओं सहित संघ के कई अनुसांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को तरजीह न देते हुए अपने समर्थकों को अच्छे पदों पर विराजमान कराया। सबसे बड़ा असंतोष यहीं से पनपना समझा जाता है। फिर उसके बाद ऐसे विधायकों द्वारा लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी और गुट विशेष को तरजीह देना असंतोष का प्रमुख कारण बनने लगा।
हम उन विधायकों की भी बात कर रहे हैं जो एक तरफ सरकार के ऊपर समय-समय पर यह आरोप लगाते हैं कि उनकी विधानसभा क्षेत्र में कार्य नहीं हो रहे हैं या उन्हें तवज्जो नहीं दी जा रही है। हमने एक सर्वे में पाया है कि आरोप लगाने वाले अधिकतर लोग अपनी अपनी विधानसभाओं में अपने खिलाफ पनप रहे आक्रोश को यह कहकर दबाना चाहते हैं कि हमारे काम नहीं हो रही हैं। इसके पीछे का कारण अपने चंद समर्थकों को अच्छे पदों पर बिठाना उन्हीं के माध्यम से विधायक निधि के कार्य करवाना स्थानीय निकायों के चुनाव में उन्हीं को पद बांटना उन्हें चुनाव लड़ वाना आदि शामिल है जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में और स्थानीय लोगों में स्थानीय विधायकों के प्रति आक्रोश है।
यहां गौर करने वाली बात है कि ऐसे विधायक अपने समर्थकों को जहां अच्छा काम भी दिला रहे हैं और अच्छे पदों पर भी बैठा रहे हैं, इसके कई उदाहरण बीते काफी समय से सामने भी आते रहे हैं, लेकिन जब दूसरा भाजपा कार्यकर्ता या आम जनता उनके पास काम के लिए जाती है तो वह यह कह कर कि सरकार में हमारी कोई सुनवाई नहीं होती है अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। अब कार्यकर्ता और स्थानीय जनता और भाजपा कार्यकर्ता इतने समझदार तो हैं ही कि माननीय विधायक गण अपने चहेतों  को तो हर प्रकार से लाभान्वित कर रहे हैं लेकिन उन्हें क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं ।
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि संगठन भी इन सभी के कामों की मॉनिटरिंग कर रहा है और भविष्य में ऐसे कई विधायकों के टिकट भी कर सकते हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत तो कांग्रेस से भाजपा में आए विधायकों को हो रही है। जिस समय कांग्रेस सरकार से बगावत करके यह विधायक भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय उनके साथ कांग्रेस विचारधारा के उनके समर्थक भी भाजपा का दामन थामे बैठे थे। मगर, मन से वह अभी भी कांग्रेसी ही रहे और सबसे बड़ी बात यह है कि उन विधायकों ने अपने समर्थकों को उच्चस्थ पदों पर भी विराजित किया, जिसके असल हकदार वे भाजपा कार्यकर्ता थे, जो अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत से ही पहले संघ और फिर भाजपा से जुडे़ हुए थे।
चर्चा है कि ऐसे विधायकों ने लाभस्थ पदों पर अपने ही समर्थकों को बैठाया जिन्हे वे कांग्रेस या अपने तरह अन्य दलों की यात्रा करते -करते भाजपा तक पहुंचे, यह भी एक कारण है कि कांग्रेस पृष्ठभूमि वाले विधायकों ने भाजपाईयों का मान न रखते हुए जनता के साथ भी धोखा किया और नतीजतन जनता में भी भारी संख्या में ऐसे विधायकों के खिलाफ जनाक्रोश देखा जा रहा है। इसके अलावा यह विधायक अपनी विधानसभा में विधायक निधि खर्च कर पाने में भी फिसड्डी रहे हैं लेकिन माल बटोरने में अव्वल रहे हैं । ऐसे ही कई कारण हैं जिस कारण जनता और पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं में आक्रोश है। हम एक बार पुनः बता दें कि यह आक्रोश मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ नहीं बल्कि, स्थानीय विधायकों के खिलाफ है और यही सच्चाई भी है।

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