मनुष्य के बहुमुखी विकास के लिए संयुक्त परिवार व्यवस्था है आवश्यक
कमल किशोर डुकलान
मनुष्य को अपने बहुमुखी विकास के लिए सम्भल समाज की नितान्त आवश्यकता होती है। इसकी की पूर्ति के लिए समाज की प्रथम इकाई परिवार है।परिवार के बिना समाज की रचना के बारे में सोच पाना असंभव है।प्रत्येक व्यक्ति के समुचित विकास के लिए आर्थिक,शारीरिक ,मानसिक,बौद्धिक सुरक्षा का वातावरण होना आवश्यक है।
संयुक्त परिवार में रहते हुए परिजनों के कार्यों का वितरण आसान हो जाता है।साथ ही भावी पीढ़ि को सुरक्षित वातावरण एवं स्वस्थ पालन- पोषण मानव का भविष्य सुरक्षित रहता है। जिससे मनुष्य का समुचित विकास ठीक प्रकार से हो सकता है।
वर्तमान भौतिकवादी युग में संयुक्त परिवार तेजी से टूटकर एकल परिवारों में बदल रहे हैं। एकल परिवार भले ही आर्थिक रूप से साधन संपन्न कर्मों न हो, परन्तु एकल परिवारों में सहनशीलता, परस्पर सहयोग व संस्कारों की कमी आज स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। जिसके कारण वर्तमान समय में परिवार का प्रत्येक सदस्य चिंता से ग्रसित है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों की संस्कृति हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की शिक्षा देती है। अर्थात पूरी पृथ्वी व इसमें रहने वाले सभी प्राणी, जानवर व वनस्पति परस्पर परिवार के विभिन्न अंग हैं। जो हमें मिलजुलकर रहने की प्रेरणा देते हैं।
हमें अपने घरों से ही बच्चों को शैशव अवस्था से ही अच्छे संस्कार, माता-पिता का आदर,नियमित संध्या उपासना, बड़ों का सम्मान, छोटों से स्नेह,अपने समाज व देश सेवा की प्रतिदिन शिक्षा देनी चाहिए। किन्तु आज हम पश्चिमी संस्कृति को अपनाकर सनातन संस्कृति को भूल रहे है। जबकि विदेशी हमारे देश व भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षित हो रहे है।
मनुष्य के बहुमुखी विकास के लिए संयुक्त परिवार में रहते हुए भावी पीढ़ि को उचित मार्ग निर्देशन देकर जीवन स्नाग्राम के लिए तैयार किया जा सकता है।
प्राचीन संयुक्त परिवार व्यवस्था कायम रखने के लिए मानव को एकांकी भाव”मैं और मेरा”का भाव छोड़कर अपने बहुमुखी विकास के लिए “हम और हमारा” के भाव से सम्भल समाज को खड़ा कर वैचारिक दृष्टि से आत्म निर्भर बनाया जा सकता है।