जम्मू कश्मीर और धारा 35-ए हमेशा से ही लोगों में एक उत्सुकता का विषय

राज्यों में संविधान सभा का गठन होना था, जो आज तक नहीं हो सका
देहरादून। वर्तमान में चर्चित धारा 35-ए को स्पष्ट करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट एवं अतिरिक्त महाधिवक्ता हरियाणा सरकार संजय त्यागी ने कहा कि 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो लगभग 561 रियासतों ने विलय पत्र पर सहमति देते हुए अपने हस्ताक्षर किए थे। इस दौरान जब विलय की प्रक्रिया चल रही थी और भारत सरकार पृथक संविधान के निर्माण प्रक्रिया पर कार्य कर रही थी उस दौरान यह भी तय हुआ कि सभी राज्यों का संविधान अलग-अलग होगा। इसके लिए सभी राज्यों में संविधान सभा का गठन होना था, जो नहीं हो सका।
विश्व संवाद केन्द्र व अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद द्वारा आयोजित एक विचार गोष्ठी का आयोजन बार ऐसोसिएशन सभागार में धारा 35-ए, तथा जम्मू कश्मीर विषय पर किया गया।
बार ऐसोसिएशन सभागार, में विश्व संवाद केन्द्र व अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित विचार गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए सर्वोच्च न्यायालय के एडवोकेट एवं अतिरिक्त महाधिवक्ता हरियाणा सरकार संजय त्यागी ने कहा कि जम्मू कश्मीर और धारा 35-ए हमेशा से ही लोगों में एक उत्सुकता का विषय रहा है।
उन्होंने कहा उस दौरान यह तय हुआ था कि एक राज्य में मॉडल संविधान बनाया जाए, जिसके अनुसार सभी राज्यों का संविधान बनेगा और भारत सरकार के संविधान को सभी राज्यों से जोड़ा जाएगा। भारत-पाक विभाजन के समय पाकिस्तान के पश्चिम हिस्से से भारी संख्या में लोग जम्मू-कश्मीर में आये और उन्हें वहाँ बसा दिया गया। धारा 35-ए की आड़ में वहाँ की तत्कालीन सरकार ने कहा कि वह उनकी देखभाल करेंगे और रहने के लिए उन्हें स्थान उपलब्ध करायेंगे।
संजय त्यागी ने कहा कि धारा 35-ए और 370 को लेकर लोगों में भ्रम है कि भारत का कोई नागरिक वहाँ सम्पत्ति नहीं खरीद सकता और न ही भारत का संविधान वहाँ लागू होता है। जबकि जम्मू-कश्मीर का जो संविधान है उसके सेक्शन-6 में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि जो जम्मू कश्मीर का नागरिक है वह भारत का भी नागरिक है, लेकिन दुर्भाग्य कि धारा-35-ए की आड़ में जम्मू-कश्मीर को रोजगार, सम्पत्ति,स्कॉलरशिप व समझौते के तहत भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा जो अधिकार दिए गए, उसकी आड़ में पृथकता का खेल खेला गया। जबकि संविधान की धारा 35-ए में वर्णित अधिकार भारत के सभी नागरिकों के लिए समान हैं।
इसी धारा के तहत संविधान के भाग-3 में अनुबन्धित मूल अधिकारों पर भी प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं। इसी की आड़ में जम्मू कश्मीर में धारा-370 का इस्तेमाल कर वहाँ की नागरिकता और सम्पत्ति के अधिकार से देश के अन्य राज्यों के लोगों को वंचित रखा जाता रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बार एसोसिएशन, देहरादून के अध्यक्ष श्री राजीव शर्मा ने कहा कि धारा-35 ए को आधार बनाकर जम्मू कश्मीर में जो व्यवस्था दी गई, वह पिछले दरवाजे से लाभ वाली कहावत को चरितार्थ करती है।
विश्व संवाद केन्द्र व अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद द्वारा आयोजित विचार गोष्ठी में वि.सं.के. के सचिव राजकुमार टांक ने संवाद केन्द्र की गतिविधियों की जानकारी देते हुए उपस्थित मंचासीन अतिथियों का तुलसी माला भेंटकर स्वागत किया।
गोष्ठी में बार ऐसोसिएशन के महामंत्री अनिल पंडित, वि.सं.के. के निदेशक विजय कुमार, गोष्ठी के सह संयोजक विवेक शर्मा, शशिकान्त दीक्षित, लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल, ऐडवोकेट श्रीमती शैलबाला नेगी, सुखराम जोशी, रणजीत सिंह ज्याला, दयानन्द चन्दोला, श्रीमती रश्मि त्यागी रावत, श्रीमती गीता खन्ना, निशीथ सकलानी, धीरेन्द्र प्रताप सिंह, डाo दिनेश उपमन्यु, पुनीत मित्तल, आलोक चौहान आदि अनेक लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन गोष्ठी के संयोजक हिमांशु अग्रवाल ने किया। गोष्ठी का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर वन्देमातरम् गान के साथ किया गया और समापन जन गण मन गायन के साथ हुआ।