CHAMOLI

इस पवित्र नगर जोशीमठ के नैगर्सिक सौंदर्य को बचाने के लिए है कोई कार्ययोजना ?

मारवाड़ी बाईपास का मामले को लेकर स्थानीय लोग 75 दिनों से आन्दोलनरत 

कार्तिकेयपुरम ताम्र पत्रों में वर्णित योषि जहां देश के चार शंकराचार्य पीठों  में से एक है ज्योतिष पीठ

हरीश सती 

जोशीमठ  :  योषि या ज्योतिष्मठ या ज्योतिर्मठ यानि जोशीमठ को हाशिये में कर मारवाड़ी बाईपास का मामले को लेकर स्थानीय लोग 75 दिनों से आन्दोलन पर हैं।  इस  तरह से समझें कि एक बहुत रमणीक और ऐतिहासिक और आध्यत्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जोशीमठ नगर यानी कार्तिकेयपुरम ताम्र पत्रों में वर्णित योषि जहां देश के चार शंकराचार्य पीठों  में से एक ज्योतिष पीठ ( ज्योतिर्मठ) है।

यह नगर इसके अलावा प्राचीन समय से भारत तिब्बत , भारत चीन और भारत के मध्य एशिया से व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग पर सम्पन्न शहर था। इसके पृष्ठ प्रदेश में कभी सेब के बगीचों , चुरालु, पोलम, अखरोट , राजमा, औगल, फाफर, चौलाई उत्पादन और अनेकों बहुमूल्य जड़ी -बूटियों और ऊनी उत्पादों के क्षेत्र थे। जो पर्याप्त वित्तीय,तकनीकी और विपणन सहयोग के अपना अस्तित्व खोते ही जा रहें हैं।

जो लोग उत्तराखंड की विरासतों को और भारतीय प्राचीन वैदिक ज्योतिर्विज्ञान को गहराई से जानते हैं वे जोशीमठ(ज्योतिर्मठ, ज्योतिष्मठ) यानी योशिमठ के महत्व को समझ सकते हैं। प्राचीन काल में भी जब यात्री पैदल यात्रा करते थे तब भी अणिमठ से विष्णु प्रयाग के शार्ट कट मार्ग के होने के बावजूद यात्री ज्योतिषपीठ( ज्योतिर्मठ) यात्रा के बाद ही श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा को फलीभूत मानते थे।

लेकिन औली, सौली -डूंगरी, कल्पवृक्ष, शंकराचार्य वट वृक्ष, चित्रकांठा, तपोवन हॉट स्प्रिंग, नंदादेवी बायो स्फीयर, ऋंगी वैली, चेनाप घाटी, हाथी पर्वत, स्लीपिंग लेडी पर्वत, उत्तराखंड में नरसिंह भगवान के मूल मंदिर ,  उर्गम वैली,विष्णु गंगा वैली, फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, श्री बद्रीनाथ जैसे और न जाने कितने दुर्लभ और अछूते महत्वपूर्ण स्थलों का बेस कैम्प जोशीमठ यानी योशिमठ को बायपास करके जाना निश्चित ही जनभावनाओं की उपेक्षा तो है ही साथ ही देश के चारधामों और चार मठों की कल्पना को न समझने की सच्चाई है।

शायद बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि कैलाश मानसरोवर का सबसे निकटतम और सुगमतम मार्ग भी जोशीमठ से ही है। 1962 के युद्ध के बाद न केवल यह आसान पहुंच वाला सुगम मार्ग बंद हुआ बल्कि भारत तिब्बत, भारत चीन और भारत मध्य एशिया  का व्यापार भी बंद होने से इस नगर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।।शंकराचार्य द्वारा पुनर्स्थापित इस उच्च स्तर धार्मिक स्थलों को दुकानों की न समझा जाये ।

जोशीमठ ( योशिमठ) के बिल्कुल साथ एक बायपास निकाला जा सकता है। और यथाशीघ्र जोशीमठ( योशिमठ) के मुख्य बाजार के मार्ग को चौड़ा किया जाय व पार्किंग की व्यवस्था की जाए। जो यात्रा आये पूरे मनोयोग से आये। पिकनिक मनाने के उद्देश्य से नहीं । जोशीमठ(योशिमठ)  में यदि यातायात सुचारू किया जाएगा तो सिर्फ एक घंटा ही मारवाड़ी बायपास की तुलना में ज्यादा लगेंगे। और यात्री जोशीमठ(योशिमठ) जैसी उत्तराखंड की महान धरोहर से परिचित हो सकेंगे।

इस महत्वपूर्ण शहर को और अधिक आकर्षक बनाने की आवश्यकता है न कि भागमभाग के फार्मूले के चलते बायपास कर एक भरे पूरे शहर के अस्तित्व को खतरे में डालने की। आखिर एक ठेठ हिमालय के अंदर के सीमांत शहर को रौनक विहीन करने के प्रयास से पलायन रोकने का कौन सा फार्मूला सफल होगा? होना तो यह चाहिए था कि आदि शंकर और कार्तिकेयपुरम साम्राज्य के प्रारंभिक दिनों से ही बद्रीनाथ की परंपरा से जुड़े  सती लोगों की मूल बसावट डाडौं (देव  ढोउंण्ढ)से ही विस्तृत हुए अत्यधिक रमणीक और उत्तराखंड के प्राचीन इतिहास को संजोए इस पवित्र नगर के नैगर्सिक सौंदर्य को बचाने के लिए ही कोई कार्ययोजना बनती ।

लेकिन कोई उत्तराखंड को गहराई से तो समझे। ब्रिटिश और ज्यादा से ज्यादा मध्यकालीन ढर्रे के टेहरी रियासत के इतिहासबोध तक सीमित कर्ता धर्ताओं से अपेक्षा भी क्या करें। जिन्हें यह सोचने भी अवसर नहीं कि सारे हिमालय में क्या सारे भारत में उत्तराखंड को क्या सम्मान है और किनके त्याग, प्रतिभा और पराक्रमों के कारण है? दिल्ली से लोग हिमाचल और जे एंड के  के दूरस्थ क्षेत्रों में अच्छी सुविधाओं के चलते जाते हैं, लेकिन जोशीमठ( योशिमठ) से आगे अलौकिक विष्णु गंगा वैली जिसमें विश्व धरोहर नंदा देवी जैवमंडल है, को अपेक्षानुसार विकसित ही नहीं किया गया है।

कृपया प्राचीन योषि ( ज्योतिष्मठ) के महत्व को समझें और औरों को समझाएं। जोशीमठ ( योषि अथवा ज्योतिषपीठ अथवा ज्योतिर्मठ) को उत्तराखंड की धुंधली स्मृतियों में ही शेष रख दिये गये कार्तिकेयपुरम साम्राज्य के  प्राचीन ऐतिहासिक गौरव और आदिगुरु शंकरचार्य द्वारा की गई भारत की एकता और अखंडता और  हिंदू समाज के आध्यात्मिक  उन्नयन और उत्तरजीविता के प्रयास के परिप्रेक्ष्य में अवश्य देखना होगा।

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