अगर राजनीतिक भागीदारी करने वाले सभी दल ओर नेता लोकहित को त्यागते है तो उनका लोक से सम्बन्ध ही हो जायेगा समाप्त
राजेन्द्र सिंह जादौन
लोकतंत्र की अवधारणा लाने वालों ने जो ताना बाना बुना था उसमें यह तय किया गया था कि लोक के प्रति सभी जवाब देह होंगे। लोक के प्रति जवाबदेही में सत्ता में पहुंचने वालो के साथ ही सत्ता के दावेदार ओर लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली मै राजनीतिक भागीदारी करने वाले सभी दल ओर नेता भी लोकहित को साधते हुए जवाबदेह रहेंगे। अगर वे लोकहित को त्यागते है तो उनका लोक से सम्बन्ध ही समाप्त हो जाता है। फिर वे अलोकतांत्रिक ही कहे जा सकते है। लोकतंत्र से सहमत सभी दलो ओर उनके नेताओं को सत्ता में रहे या बाहर लोक के प्रति अपनी जवाबदेही साबित तो करनी ही होगी। लोकतंत्र की इस अवधारणा को लिखित रूप में संविधान में लाया गया। संविधान के तहत ही भारतीय राष्ट्र राज्य की स्थापना वर्तमान रूप में की गई। इसको स्थापित रखने ओर देश के समस्त नागरिकों के प्रति जवाबदेही के साथ इसे आगे बढ़ाने के लिए लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली लाई गई।
जाहिर है कि जो राजनीतिक दल इस व्यवस्था के हामी है उन्हे लोक के प्रति जवादेही को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी समझना चाहिए। अगर वे इस जिम्मेदारी से मुकरते है ती सीधे तौर पर वे अलोकतांत्रिक हो जाते है। लोक के प्रति इस व्यवस्था को जवाबदेह बनाए रखने के लिए ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी संविधान मै दी गई। इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ही मीडिया ओर प्रेस अपना काम लोक के हित में करता है। संवैधानिक दायित्वनिर्वाह में जहां कहीं कही कमी दिखाई देती है मीडिया लोक के सामने रखने का काम करता है। मीडिया कहीं चूक करता है तो लोक मै उसकी भी आलोचना की जाती है। लोकतंत्र का मूल आधार इस तरह से आलोचना ही बन जाता है।
लेकिन इन दिनों लोकतांत्रिक दायित्व निर्वाह के तहत मीडिया द्वारा राजनीतिक दलों या किसी खास राजनीतिक दल के नेता से किसी खास चैनल के पत्रकार द्वारा पूछे गए सवालों को लेकर एक उत्तेजना देखी गई है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। यह सवाल महाराष्ट्र के पालघर जिले के कासा गांव में एक बड़ी भीड़ द्वारा पुलिस की मौजूदगी में दो साधुओं की पीट पीट कर निर्मम हत्या को लेकर पूछे गए थे। सवाल इन राजनीतिक दलों के या दल के नेता के मोन को लेकर ही पूछे गए थे। सवाल यह है कि देश का संविधान हर नागरिक को सुरक्षित जीवन का अधिकार देता है तो लोकतंत्र में हर सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हर नागरिक को अपनी दलीय या निजी अवधारणाओं से हटकर सभी को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करे। इसमें किसी तरह का वर्ग विभाजन भी नहीं किया जा सकता है।
संविधान किसी तरह के विभाजन की इजाजत भी नहीं देता है। संविधान ने संकीर्ण अवधारणाओं को कोई स्थान नहीं दिया है। धर्म, जाति,भाषा ओर क्षेत्र आदि के आधार पर भेदभाव का कोई स्थान संविधान में नहीं है। जब संविधान में इन कमियों को रखा ही नहीं गया तो राजनीतिक दलों ओर उनके नेताओ को इन संकीर्णताओं से हटकर या मुक्त होकर ही सभी ने जीवन की रक्षा का व्यवहार करना होगा। देश में भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या किए जाने अथवा अंग्रेजी के प्रचलित शब्द लिंचिग की की घटनाएं हुई है। इसी सभी घटनाओं के लिए सरकार और उसका नेतृत्व कर रहे नेता जिम्मेदार है। उन्हे शर्मिंदा होना चाहिए कि लोकतांत्रिक जिम्मेदारी का वहन ठीक से नहीं कर पाए। देश ने जब कानून का राज है ओर दंड की व्यवस्था है तो लींचिंग की घटनाओं का होना अराजकता है ओर सरकार की नाकामी है।
लेकिन ऐसी घटनाओं पर राजनीतिक दलों ने आचरण में भी कमी दिखाई दी है। तमाम दलों के नेता ओर खास क्षेत्रो ने खास पहचान रखने वाले या अपने बुद्धिजीवी होने का अहसास रखने वाले लोग दोहरा आचरण करते दिखाई दिए है। वे लिनचिंग की कुछ घटनाओं पर खासा शोर करते दिखाई दिए है ओर कुछ पर उनका चेहरा ऐसा दिखाई दिया है मानो उन्हे इससे कोई गुरेज नहीं है। ऐसा क्यों किया जा रहा है। अगर उनके मोन को लेकर सवाल पूछे जा रहे है तो गलत क्या है। आखिर संवैधानिक दायरे में हर नागरिक के कीमती जीवन की परवाह नहीं की जाएगी तो व्यवस्था को नकारने जैसी स्थिति दिखाई देगी।
पालघर की घटना पर ना तो इंटोलरेंस के सवाल उठाए गए ओर ना ही किन्हीं बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री को पत्र भेजे। बडी बडी सेलेब्रिटी भी मौन है। आखिर में ऐसा क्यों हुआ है। अगर कानून के शासन के विपरीत किसी का जीवन छीना जाता है तो उतना ही क्षोभ पैदा होना चाहिए जो कि अन्य घटनाओं को लेकर पैदा होता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए घातक है। संविधान की समानता के विपरीत वर्ग विभाजन है। संविधान का विभाजन ही भी मानवीय संवेदनाओं का भी विभाजन हैं। लोकतंत्र में भागीदार दलों ने यह साबित करना शुरू कर दिया है कि वे वही चिंतित होंगे जहा उनके राजनीतिक हित जुड़े हुए है। संविधान रक्षा दिवस मनाने वाले दलों को यह समझ लेना चाहिए कि यह आचरण संविधान के विपरीत है।